दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की चौबीसवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय।
कबीरदास जी के इस दोहे का गहन भावार्थ जीवन की नश्वरता, मानव अहंकार का विनाश, और कर्मफल के गूढ़ सत्य को स्पष्ट करता है। यह दोहा हमें जीवन के उस अंतिम सत्य से जोड़ता है, जिसे हम अक्सर भौतिक उपलब्धियों और अपने घमंड के कारण भूल जाते हैं।
मिट्टी, जो सृष्टि के मूल तत्वों में से एक है, यह याद दिलाती है कि जीवन का हर रूप (मनुष्य, पशु, प्रकृति) उसी मिट्टी से उत्पन्न होता है और अंततः उसी में विलीन हो जाता है।
जीवन अस्थायी है और मृत्यु अटल सत्य है। हमें अहंकार त्यागने, विनम्रता अपनाने, और अच्छे कर्म करके जीवन को सुखी बनाने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही, यह दोहा यह भी याद दिलाता है कि प्रकृति और समय के आगे मनुष्य की शक्ति सीमित है। इसीलिए, हमें जीवन को सही मायनों में समझकर दूसरों के प्रति दया, समानता, और प्रेम का व्यवहार करना चाहिए। तभी मनुष्य जीवन सफल होगा। मनुष्य का जीवन पानी के बुलबुले के समान क्षणभंगुर है। अतः अहंकार की भावनाओं को त्यागकर और दूसरों को नीचा न दिखाकर, परहित में जुट जाना ही इस मनुष्य जीवन को सफल बनाने का एक आसान मार्ग होगा।
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