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गुरु के कर कमलो से संस्कार मिलना सौभाग्य की बात-आचार्यश्री वर्धमान सागरजीः शिशु एवं बाल संस्कार का अनूठा व अद्भुत कार्यक्रम संपन्न 


संस्कार और धर्म जिनदर्शन अभिषेक पूजन स्वाध्याय दान आदि से प्राप्त होता है। सभी को बच्चों को संस्कारित कर बचपन से धर्मधारण करने के संस्कार देना चाहिए, धर्म प्रतिदिन देवदर्शन, अभिषेक, पूजन, स्वाध्याय, दान करने से प्राप्त होता है। धार्मिक संस्कारों से ही जीवन उत्कृष्ट बनकर जीवन का निर्माण होता है। उक्त उद्गार आचार्यश्री वर्धमान सागरजी ने व्यक्त किए। पढ़िए राजेश पंचोलिया द्वारा पारसोला की पूरी खबर…


पारसोला। आचार्यश्री वर्धमान सागरजी संघ सहित पारसोला में विराजित हैं। जैन शिशु एवं बाल संस्कार अनूठा एवं अद्भुत दिव्य आशीष कार्यक्रम पंचम पट्टाचार्य 108 श्री वर्धमान सागरजी महाराज ससंघ के सानिध्य एवं करकमलों से दिनाँक 14 जनवरी मकर संक्रांति मंगलवार को दोपहर 12.15 बजे से सन्मति भवन में जैन शिशु एवं बाल संस्कार का अनूठा एवं अद्भुत कार्यक्रम संपन्न हुआ। जिसमें जैन शिशु एवं बाल संस्कार विधि उम्र-46 दिन से 8 वर्ष तक ’नामकरण संस्कार बहिर्यान संस्कार ’निषद्या संस्कार’ व्युष्टि क्रिया संस्कार वर्षवर्धन संस्कार’ लिपिसंख्यान क्रिया संस्कार किए गए।

गुरु के कर कमलो से संस्कार मिलना सौभाग्य 

जयंतीलाल कोठारी अध्यक्ष दशा हूमड दिगंबर जैन समाज एवं ऋषभ पचोरी अध्यक्ष वर्षायोग समिति वीरेंद्र सेठ पारसोला ने बताया कि पारसोला में संघ सहित विराजित आचार्य श्री वर्धमान सागरजी ने इस अवसर पर धर्म देशना में बताया कि नवजात शिशु ,बालक यहां आए हैं। गुरु के कर कमलो से संस्कार मिलना सौभाग्य की बात है। जैन दर्शन में जिनसेन स्वामी ने संस्कारों का महत्व बताया है। वर्तमान में सब भौतिक फिल्मी दुनिया के कारण संस्कार भूल रहे हैं। जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया टीवी के माध्यम से परोसा जा रहा है। गर्भस्थ माता अपने बालक को गर्भ से संस्कार देती है।

संस्कार से ही जीवन उत्कृष्ट बनता है 

ब्रह्मचारी गजु भैया एवं राजेश पंचोलिया ने बताया कि आचार्यश्री वर्धमान सागरजी ने अर्जुन और अभिमन्यु की कथा के माध्यम से बताया कि गर्भवती महिला अवस्था में अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में प्रवेश की कहानी सबने सुनी होगी, बालकों को छोटी उम्र से ही संस्कार देने के कार्य करना चाहिए। संस्कार और धर्म जिनदर्शन अभिषेक पूजन स्वाध्याय दान आदि से प्राप्त होता है। सभी को बच्चों को संस्कारित कर बचपन से धर्मधारण करने के संस्कार देना चाहिए, धर्म प्रतिदिन देवदर्शन, अभिषेक, पूजन, स्वाध्याय, दान करने से प्राप्त होता है। माता को भी गर्भधारण करने के समय से लेकर जन्म देने के बाद तक शिशु को संस्कार देना जरूरी है, क्योंकि संस्कार से ही जीवन उत्कृष्ट बनता है।

जीवन के निर्माण हेतु संस्कारित करें 

आचार्य श्री वर्धमान सागरजी महाराज ने महान विदुषी माता सत्यवती का जिक्र कर बताया कि गर्भस्थ बालक श्री सातगोंडा श्री शांति सागरजी महाराज के गर्भावस्था में माता की 108 कमल से देव पूजा करने की भावना भाई। देव पूजन की मंगल भावना से रत्नत्रय धारण किया जाता है और जन्म के बाद प्रथमाचार्य श्री शांति सागरजी महाराज ने धर्म की बहुत प्रभावना की। इसलिए वर्तमान भौतिक परिवेश में जरूरत है कि बालकों को अभी से संस्कार देकर जीवन के निर्माण करने के लिए संस्कारित करें। गर्भ के संस्कारों से ही जीवन का निर्माण होकर निर्वाण का आधार बनता है। जो बालक संस्कारित होते हैं। वह धर्म को कभी छोड़ते नहीं है, क्योंकि संस्कार हमेशा मंगलकारी होता है, इससे जीवन में सुख शांति समृद्धि मिलती है। इसी कारण संस्काररोपण महत्वपूर्ण है।

रात्रि भोजन त्याग का नियम दिया

आचार्यश्री ने बताया कि आचार्य शांति सागरजी के एक गर्भवती महिला ने दर्शन कर आशीर्वाद लिया, तब आचार्य शांति सागरजी ने उन्हें रात्रि भोजन त्याग का नियम दिया। यद्यपि उस महिला का रात्रि भोजन त्याग था किंतु अवधि ज्ञानी, निमित्त ज्ञानी आचार्यश्री ने जब यह देशना दी तो गुरु के आशीर्वाद और माता के संस्कार से वह बालक जो आज लगभग 75 वर्ष से ऊपर के हैं। पुणे के डॉक्टर कल्याण गंगवाल वह गर्भावस्था में प्राप्त संस्कारों के कारण आचार्यश्री के आशीर्वाद कारण बचपन से आज तक रात्रि भोजन का उन्होंने सेवन नहीं किया है।

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