दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की 76वीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…
दीन गरीबी बंदगी साघुन, सो आधीन।
ताके संग में यौ, रहूं जो पानी संग मीन।।
कबीरदास जी का यह दोहा ” भक्ति, समर्पण और विनम्रता की गहराइयों को उजागर करता है। इस दोहे में कबीरदास जी एक आदर्श भक्त की विशेषताओं को प्रस्तुत करते हैं। “दीन”, “गरीबी” और “बंदगी” ये तीन शब्द समर्पण, विनम्रता और सेवा का प्रतीक हैं। जो व्यक्ति इन गुणों से सम्पन्न होता है, वह सच्चे अर्थों में परमात्मा के अधीन हो जाता है।
कबीरदास जी यहां भक्त की स्थिति को मछली और पानी के संबंध से जोड़ते हैं। जैसे मछली पानी के बिना जीवित नहीं रह सकती, वैसे ही भक्त भी अपने ईश्वर के बिना अधूरा है। इसका अर्थ है कि भक्ति का आदर्श तब है, जब भक्त और भगवान का भेद समाप्त हो जाता है, जैसे आत्मा और परमात्मा एक ही हैं।
कबीरदास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने अहंकार, माया और सांसारिक इच्छाओं से मुक्त होकर परमात्मा के प्रति समर्पित हो जाता है, वही सच्चा भक्त है। ऐसा भक्त गरीबों और दीन-दुखियों की सेवा करता है और समाज में प्रेम, करुणा और भाईचारे की भावना फैलाता है।
आज भी यह दोहा हमें सिखाता है कि यदि हम अपने स्वार्थ को छोड़कर समाज के कमजोर वर्ग की मदद करें, तो समाज में शांति और प्रेम बढ़ेगा। सच्ची भक्ति वही है जो अहंकार और घमंड को छोड़कर दूसरों की सेवा में समर्पित हो जाए।
इस दोहे में कबीरदास जी हमें आत्मसमर्पण, प्रेम, सेवा और आत्मबोध का मार्ग दिखाते हैं, जिससे हम अपने जीवन को सच्चे अर्थों में सार्थक बना सकते हैं।
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