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जो कुछ भी तुम करते हो, उसका शगुन धर्म से कर लिया करोः निर्यापक मुनिपुंगव सुधासागरजी महाराज


अंजुली के जल के समान जीवन प्रतिक्षण खाली हो रहा है, जो हमारे हाथ से निकल गया, उस पर हमारा कोई अधिकार नही है, जो हमारे पास बचा है वही हमारे हाथ मे है। 2025 अब आया नही है, जा रहा है। सूर्य उगता है एक सेकेंड के लिए, उसके बाद तो प्रभात काल जा रहा है। ये कहना हैं मुनिपुंगव सुधासागरजी महाराज का। पढ़िए सागर से राजीव सिंघई की पूरी खबर…


2025 अब आया नही है, जा रहा है 

अपन समझते हैं कि हम उम्र में बड़े हो रहे हैं लेकिन सत्य यह है कि प्रतिदिन उम्र में छोटे हो रहे हैं। अंजुली के जल के समान जीवन प्रतिक्षण खाली हो रहा है, जो हमारे हाथ से निकल गया, उस पर हमारा कोई अधिकार नही है, जो हमारे पास बचा है वही हमारे हाथ मे है। 2025 अब आया नही है, जा रहा है। सूर्य उगता है एक सेकेंड के लिए, उसके बाद तो प्रभात काल जा रहा है। उजाला जाता हुआ दिखता है, रात्रि आते हुई दिखती है।

ब्रह्ममुहूर्त का महत्व बताया

निर्यापक मुनिपुंगव सुधासागरजी महाराज कहते हैं-क्यों बदलते है 24 घण्टे में ये मुहूर्त, ये संकेत है हमारे भविष्य के निर्णायकों होते है, हम उन क्षणों में कैसे जी पाये। ब्रह्ममुहूर्त क्यों कहा जाता है, कुछ नही 24 घण्टे तो घण्टे है लेकिन हमें कहा जाता है कि प्रातः काल होने वाला है, ये एक मुहूर्त तुम कैसे व्यतीत करोगे, वही तुम्हारे दिन का निर्णय, भविष्यवाणी होगी। वह प्रभु का मुहूर्त क्यों कहा, ब्रह्म शब्द का अर्थ होता है निर्माता, बनाने वाला, तो पूरा हमारा दिनभर शुभ होगा, उसको बनाने वाला होता है ब्रह्ममुहूर्त क्योंकि इससे तुम्हारे दिन का निर्माण होगा, तुम्हारे दिन की उपलब्धि होगी। इसका निर्माता है ब्रह्ममुहूर्त। अब वो मुहूर्त तुमने कैसे निकाला जागते हुए या सोते हुए, अच्छा करते हुए या बुरा करते हुए निकाला।

शेष तुम्हारी किस्मत सँभाल लेगी 

महाराजजी आगे विस्तारपूर्वक अपने प्रवचन में कहते है-24 घण्टे तुम क्या करते हो इसकी चर्चा नहीं की, बस तुम ब्रह्ममुहूर्त संभाल लेना, बाकी तुम्हारी किस्मत सँभाल लेगी। जैनधर्म मे तो स्पष्ट कहा कि ब्रह्ममुहूर्त को मत जाने देना, ब्रह्ममुहूर्त को मत सोना, ब्रह्ममुहूर्त को मत खोना। हम साधुओ के लिए भी विशेष उपाधि, विशेष रूप दे दिया। इसी प्रकार से तुम्हारा जन्मदिन आता है, वो क्यों कहा जाता है कि अच्छे से मनाओ क्योंकि जैसा तुम्हारा पहला दिन जैसा गुजरा है वही जिंदगी का निर्णय है। क्यों मनाया गया नया साल, तुमने एक जनवरी को किस रूप में बिताया, सालभर वैसे ही निकलेगा।

तूफानों से आँख मिलाना सीखो, सैलाबों से प्यार करना 

तूफानों से आँख मिलाना सीखो, सैलाबों से प्यार करना सीखो, मल्लाहो के भरोसे मत बैठो, अपने हाथों से तैरना सीखो। परिस्थिति नहीं है तो उनसे आँख मिलाओ पर कभी ऐसी परिस्थिति आ जाए सैलाब की, उनसे प्यार करना सीखों, परिस्थितियों से भागो मत, परिस्थितियों का सामना करो और तैरकर पार करो, इस संसार को। कोई भी प्रारंभ हो शुभ करना चाहिए, रोटी भी खाओ, खाने के पहले रोटी को शुभ में लगाना चाहिए।

आहार दान करों

क्यों आहार के पहले आहार दान को कहा जाता है, आहार दान नहीं मिला तो भावना करने को कहा जाता है। क्यों पहली रोटी गाय की कही जाती, दूसरी तीसरी खिला दो, नही वो रोटी तुम्हे सिद्धि का कारण नही बनेगी, अन्नपूर्णा, शगुन नही बनेगी। पहली रोटी बनाई तो महिला को भाव आना चाहिए कि पहली रोटी पेट में नहीं, धर्म में, दान में जाएगी। रोटी, दवाई खाना मजबूरी है लेकिन जब रोटी, वही दवाई किसी दूसरे को दे देता है और तो पुण्यबन्ध का कारण बन जाती है।

पहला दिन सालभर के लिए शगुन है 

जन्म का जो पहले दिन हो उसमें कोई पाप मत करना, कोई अशुभ कार्य मत करना, बुरा मत देखना, बुरा मत सोचना क्योंकि वो पहला दिन तुम्हारे सालभर के लिए शगुन है। उस जन्म के दिन अच्छे कार्य करो अच्छे स्थान पर जाओ, एक दिन के धर्म करने से तुम धर्मात्मा नहीं बन जाओगे लेकिन एक दिन के धर्म करने से तुम्हारा साल भर सुरक्षित हो जाएगा। ऐसे ही तुम धन कमाते हो लेकिन बचा हुआ धन नहीं देना, बचा हुआ धन देने से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन वह तुम्हें सिद्धि का कारण नहीं बनेगा इसलिए धन का भोग करने के पहले संकल्प करना चाहिए कि जब तक मैं अपनी कमाई से कोई शुभ कार्य नहीं कर लूंगा तब तक मैं धन का उपयोग नहीं करूँगा। उस धन से जो बाद में तुम जो कुछ कार्य भी करोगे उससे तुम्हें सफलता मिलेगी।

पुण्य की कहानी छुपी है

निर्यापक मुनिपुंगव सुधासागरजी महाराज आगे कहते हैं-महानुभावों कुछ भी तुम्हें मिलता है उसके पीछे कोई न कोई पुण्य की कहानी छुपी रहती है, तुम्हारी आंख में ज्योति है जरूर तुमने किसी एकाध अजीव को बचाया होगा। कभी भगवान का दर्शन करके तुम्हारे मन में आनंद आया होगा। कान अच्छे मिले, जरूर तुमने किसी दुखिया की बात सुनकर कानों का उपयोग किया होगा। दो शब्द बोलने की ताकत है, कभी तुमने अपने मुख से किसी को दो शब्द सुनाएं होंगे।

प्रारंभ 9 बार णमोकार मंत्र से करना 

तुम्हारी जितनी भी इच्छाये है वो सब पूरी हो जाएगी, गुरु कहते हैं कि हमने जो कुछ मांगा मैं उसकी सफलता का आशीर्वाद देता हूँ लेकिन ध्यान रखना उसके बाद या तो सब छोड़ देना है या जो कुछ होगा उसको धर्ममय व्यतीत करना है, संकल्प करते ही गुरु उसे तथास्तु कह देते है। जो कुछ भी तुम करते हो उसका शगुन धर्म से कर लिया करो। जिंदगी की, दिन की, साल की, धन, रोटी, कपड़े जो तुम्हारी जिंदगी में आये उसकी शुरुआत धर्म से करना, सुबह की शुरुआत 9 बार णमोकार मंत्र से करना। कपड़ों की शुरुआत करो पहली बार कपड़े पहनकर के मैं 9 बार णमोकार मंत्र पढूँगा, मैं मंदिर जाऊँगा। गाड़ी ली है, सबसे पहले मैं किसी तीर्थ पर जाऊंगा। पहले पूजा करूंगा बाद में भोजन करूंगा। यह कहकर निर्यापक मुनिपुंगव सुधासागरजी अपना प्रवचन समाप्त करते है।

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