क्षेत्र के ठेकेदारों ने किया धर्म को शर्मिंदा
माताजी के पद को मानने से किया इंकार
माताजी का पद किसी शास्त्र में नही…. फिर क्यों करे नमस्कार…
बांसवाडा । महाराष्ट्र के कुंथलगिरी में परम पूज्य प्रथमाचार्य श्री शांतिसागरजी गुरुदेव की परंपरा की सुशिष्या ’प.पू. गणिनी आर्यिका सुप्रकाशमती माताजी के अपमान का प्रकरण सामने आया है। माताजी नांदगाव में भव्य चातुर्मास के बाद श्रवणबेलगोला की ओर विहार करते हुए कुंथलगिरी पहुंची थी, लेकिन वहां के ट्रस्ट ने उनके स्वागत, आहारचर्या आदि को कोई इंतजाम नहीं किया, बल्कि यह कहा गया कि शास्त्रों में माताजी पद का उल्लेख नहीं है, इसलिए हम माताजी को नहीं मानते।
माताजी की संघपति नूतन कासलीवाल ने बताया कि माताजी के कुंथलगिरी पहुंचने से पहले मैंने वहां के कार्यालय में फोन कर अध्यक्षजी का नंबर मांगा तो मैंनेजर ने नंबर देने से मना कर दिया। शाम को फिर उसी नंबर से एक फोन आया। वहां से एक महिला ने जो बोला उससे तो मेरे पैर के नीचे की जमनी खिसक गई।
उन्होंने स्पष्ट रुप से कह दिया कि ’हम माताजी के पद को नहीं मानते। आर्यिका का पादप्रक्षालन, पूजन आदि नही करते। .माताजी के पद का किसी भी शास्त्र में उल्लेख नही इसलिए हम उन्हें नही मानते। माताजी को आना है तो आएं, हमें कोई मतलब नही है।
उन्होने बताया कि ’ एक महिला द्वारा माताजी के पद का यह अपमान मेरे लिए एक सदमे जैसा था। शांतिसागरजी की परंपरा के माताजी को ही ये नहीं मानते तो दूसरों की तो क्या बात।
उन्होंने बताया कि माताजी के वहां पहुंचने पर कोई बैंड नही, कोई स्वागत नहीं, कोई पादपूजा, रंगोली कुछ भी नही हुआ। माताजी आये और कमरे में पहुंच गए। दूसरे दिन पता चला कि ’यहां पर भगवान का पंचामृत अभिषेक 15 दिन पहले ही बंद कर दिया गया है। पूछने पर बताया गया कि, ’इससे कीड़े होते है, मार्जन अच्छे से नहीं कर पाते है, इसलिए बंद कर दिया है। जबकि यहां सदियों से पंचामृत अभिषेक होता रहा है।’
माताजी के 2 दिन के प्रवास में संस्था के किसी भी व्यक्ति ने आहार एवं अन्य व्यवस्थाओं में कोई योगदान नहीं किया। अध्यक्ष, मंत्री या कोई भी पदाधिकारी दर्शन को भी नही आए। जिस महिला ने फोन पर बात कि थी वो तो गायब ही हो गई थी। उसकी कोई जानकारी भी कोई दे नही रहा था।
नूतनजी ने कहा कि आज देश की इतनी बडी आर्यिका जिनकी दीक्षा को 40 साल हो चुके है, उनके साथ यह दुर्व्यवहार समझ से बाहर था। पिछले 2 दिन से पूरे महाराष्ट्र में भयंकर बारिश एवं ठंड पडी है। कुंथलगिरी में भी यही आलम था। ऐसे में यहां के लोग आकर मुझसे ओंर परम पुज्य माताजी से पूछ रहे है कि ’माताजी आप कब जा रही हैं। ’
’मुझे शर्म आती है ऐसे धर्म के ठेकेदारों पर, ऐसे नौंकरों पर… जिन्हें इतनी भी इंसानियत नही कि इतनी भयानक ठंड में माताजी को रोकने की बजाय जाने का पूछ रहे है…। अगर इतने धंदेवाईक बन चुके हो तो इसे तीर्थ का नाम देने की बजाय किसी होटल का नाम दे देते… समय खत्म हुआ तो चेकआऊट करो भाई…’
नूतन जी ने सवाल उठाया कि क्या क्षेत्र अब ट्रस्टियों की बपौती बन गये हैं?. क्या अब उनकी दादागिरी चलेगी?. आज वो माताजी को नहीं मान रहे, कल वो महाराज को भी मानने से इंकार कर देंगे क्या? समाज के पैसों पर चल रहे इन क्षेत्रों पर समाज का कोई कंट्रोल नही क्या?
’पिछले कुछ वर्षों से क्षेत्रों को आर्थिक लालच देकर वहां की परंपराये बदलने का सिलसिला शायद अब महाराष्ट्र में भी दस्तक दे चुका है।
उन्होंने कहा कि सवाल सिर्फ इतना ही है. 2-4 लाख के लालच में अपनी परंपरा बदलनेवाले लोग क्या आचार्य शांतिसागरजी की समाधि स्थली पर ही इनकी परंपराओं को ख्तम कर देंगे? ’क्या अब माताजी के पद का भी कोई महत्व नही?
उन्होंने कहा कि महासभा, तीर्थरक्षा कमिटी, ग्लोबल महासभा, महासमिती एवं समाज की सभी राष्ट्रीय संस्थाओं से निवेदन हे कि इस विषय का संज्ञान लेकर उचित मार्गदर्शन करें… एवं कार्रवाई करें।