आकिंचन धर्म में उस त्याग के प्रति होने वाले ममत्व का त्याग कराया जाता है। संसार में कोई भी वस्तु स्थाई रूप से हमारी नहीं हैं । यहां तक कि शरीर भी हमारा नही हैं, केवल आत्मा ही हमारी है । उक्त उद्गार मुनिराज श्री प्रशमानंद जी महाराज ने दसलक्षण धर्म के नौवे दिन बड़ा जैन मंदिर मुरैना में धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। पढ़िए मनोज जैन नायक की रिपोर्ट…
मुरैना। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं, वह भविष्य की योजनाएं बनाता है। उसकी योजनाएं कभी समाप्त नहीं होती, बल्कि दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जाती हैं । मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी इच्छाओं पर रोक, अंकुश लगाते हुए वैराग्य का पालन करना चाहिए। घर, द्वार, धन -दौलत, भाई -बंधु यहां तक कि शरीर भी मेरा नहीं हैं, इस प्रकार का अनासक्ति भाव उत्पन्न होना उत्तम आकिंचन्य धर्म है । इन सबका त्याग करने के बाद भी उस त्याग के प्रति ममत्व रह सकता है । आकिंचन धर्म में उस त्याग के प्रति होने वाले ममत्व का त्याग कराया जाता है। संसार में कोई भी वस्तु स्थाई रूप से हमारी नहीं हैं ।
यहां तक कि शरीर भी हमारा नही हैं, केवल आत्मा ही हमारी है । उक्त उद्गार युगल मुनिराज श्री प्रशमानंद जी महाराज ने दसलक्षण धर्म के नौवे दिन बड़ा जैन मंदिर मुरैना में धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन पंचायती बड़ा जैन मंदिर प्रबंध समिति के सदस्य कुशल जैन साहुला द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार दसलक्षण पर्व 8 सितम्बर को शुरू हुए थे और 17 सितम्बर अनंत चतुर्दशी को समाप्त होंगे। जैन धर्म में अनंत चतुर्थी का विशेष महत्व है । इस दिन प्रत्येक व्यक्ति श्री जिनेंद्र भगवान की पूजा अर्चना करता है और यथाशक्ति ब्रत उपवास करता है। अनंत चतुर्थी को शाम 04 बजे मुरैना में चतुर्मासरत युगल मुनिराज श्री शिवानंद जी महाराज एवम मुनिश्री प्रशमानंद जी महाराज के पावन सान्निध्य में श्री चंद्रप्रभु पल्लीवाल दिगंबर जैन मंदिर, लोहिया बाजार में श्री जिनेंद्र प्रभु के कलशाभिषेक एवम शांतिधारा का आयोजन रखा गया है।
श्री जैन के अनुसार दसलक्षण पर्व के समापन पर बुधवार 18 सितम्बर को बड़ा जैन मंदिर मुरैना में पूज्य युगल मुनिराजों के पावन सान्निध्य में क्षमावाणी पर्व मनाया जायेगा । इस दिन सभी सधर्मी बंधु विगत वर्ष जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा याचना करते हैं। सभी लोग एक दूसरे से क्षमा मांगते हैं और एक दूसरे को क्षमा करते हैं ।
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