जैन धर्म के 14वें तीर्थंकर भगवान अनंतनाथ जी का ज्ञान और मोक्ष कल्याणक चैत्र कृष्ण अमावस के दिन आ रहा है। यह तिथि इस बार 29 मार्च शनिवार को आ रही है। इस भगवान की आराधना, पूजा और अभिषेक आदि के कार्यक्रम पूरे विधान के अनुसार किए जाएंगे। जिनालयों में भगवान का ज्ञान और मोक्ष कल्याणक मनाया जाएगा। श्रीफल जैन न्यूज की विशेष श्रंखला में आज पढ़िए उपसंपादक प्रीतम लखवाल की यह संयोजित प्रस्तुति…
इंदौर। जैन धर्म के अनुयायियों को सत्य की राह पर चलने की प्रेरणा देने वाले और जीवनपर्यन्त सत्य और अहिंसा के पथ पर अग्रसर रहने वाले 14वें तीर्थंकर भगवान अनंतनाथ जी का 29 मार्च को ज्ञान और मोक्ष कल्याणक महोत्सव आ रहा है। तीर्थंकर भगवानों में अनंतनाथ जी का स्थान भी बहुत अहम रहा है। उन्होंने धर्म उपदेशों के माध्यम से तीर्थ की रचना की और तीर्थंकर कहलाए। भगवान अनंतनाथ जी चैत्र कृष्ण अमावस के दिन खड़गासन अवस्था में सम्मेदशिखर पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया। भगवान अनंतनाथ जी को कैवल्य ज्ञान भी चैत्र कृष्ण अमावस के दिन ही प्राप्त हुआ था। इसलिए इस दिन भगवान अनंतनाथ की ज्ञान और मोक्ष कल्याणक एक साथ मनाया जाता है। जैन धर्म ग्रंथों में वर्णित जानकारी के आधार पर श्री अनंतनाथ भगवान वर्तमान काल चक्र के 14वें तीर्थंकर थे। उनकी ऊंचाई 50 धनुष थी। भगवान श्री अनंतनाथ का प्रतीक बाज़ है। पाताल यक्ष देव और अंकुश यक्षिणी देवी क्रमशः उनके शासन देव और शासन देवी हैं। घातकी खंड के प्राग्विदेह क्षेत्र में स्थित ऐरावत विजय की अरिष्ट नगरी में राजा पद्मरथ थे। उन्होंने सांसारिक जीवन में राज सिंहासन प्राप्त करने के बाद दीक्षा ली। बड़ी भक्ति से उन्होंने तीर्थंकर गोत्र का बंधन किया और देवलोक में पुनर्जन्म लिया। दिव्य जीवन पूर्ण करने के बाद तीर्थंकर भगवान श्री अनंतनाथ ने भरत क्षेत्र की अयोध्या नगरी में राजा सिंहसेन एवं रानी सुयशा के घर जन्म लिया। तभी राजा सिंह सेन ने शत्रुओं की असीम शक्ति पर विजय प्राप्त की और तभी से भगवान का नाम ‘अनंतनाथ’ पड़ा। युवावस्था में ही उनका विवाह हुआ और फिर वे राज सिंहासन पर बैठे। कुछ समय बाद देवताओं के अनुरोध पर उन्होंने दीक्षा ले ली। तीन वर्षों तक श्री अनंतनाथ भगवान एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते रहे। दीक्षा लेने के तीन वर्ष बाद उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। भगवान को केवल ज्ञान प्राप्त होने पर देव गणों ने एक समवसरण बनाया। जहां से भगवान ने देशना दी।
भगवान की देशना के अनुसार मोक्ष दो चरणों में है
भगवान अनंतनाथ जी ने बताया कि मोक्ष की पहली अवस्था, जिसका अनुभव हम यहीं जीवित रहते हुए करते हैं, उसे मुक्ति की अवस्था कहते हैं। सभी दुखों से मुक्ति ही मोक्ष की पहली अवस्था है। मोक्ष की दूसरी अवस्था में हमारे सारे कर्म, सारी आसक्ति समाप्त हो जाती है। सारे परमाणु ( निर्जीव पदार्थ के कण जो शुद्ध रूप में नहीं हैं) समाप्त हो जाते हैं। व्यक्ति केवल परम आत्मा की अवस्था में आता है। उसके बाद जब अंतिम आयुष्य कर्म (जीवन-काल निर्धारित करने वाला कर्म) समाप्त हो जाता है तो व्यक्ति मोक्ष में चला जाता है। यह परम मोक्ष है। सभी आत्माएं सिद्ध क्षेत्र में विराजमान हैं। भगवान अनंतनाथ की देशना सुनकर लोगों के हृदय परिवर्तित हो गए। तीर्थंकर की वाणी इतनी शक्तिशाली होती है कि वह श्रोता के भीतर के सभी कर्मों के आवरणों को चीरकर सीधे उसकी आत्मा तक पहुंच जाती है। उस वाणी को सुनकर अनेक लोग जीवन-मृत्यु के भवसागर से पार होकर मोक्ष को प्राप्त हुए हैं। वह ‘स्याद्वाद वाणी’ (जिससे किसी भी जीव के अहंकार को किंचित भी ठेस न पहुंचे) वह देशना इस संसार में कहीं भी देखने को नहीं मिलती।
श्री अनंतनाथ भगवान निर्वाण
भगवान श्री अनंतनाथ ने अपना शेष जीवन देशना में बिताया। उनके संघ में 50 गणधर (तीर्थंकर के मुख्य शिष्य) थे। लाखों लोगों ने भगवान की वाणी का लाभ उठाया और दीक्षा लेकर मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़े। पुरुषोत्तम वासुदेव और सुप्रभ बलदेव भी अनंतनाथ भगवान के पास गए और उनके शक्तिशाली वचनों को सुनकर सही दृष्टि प्राप्त की। सुप्रभ बलदेव उनके शिष्य बन गए और अपने सभी कर्मों को साफ करने के बाद मोक्ष प्राप्त किया। अनंतनाथ भगवान हजारों साधुओं, साध्वियों और केवलियों के साथ शिखरजी पर्वत से मोक्ष की ओर चले गए।
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