श्रीफल जैन न्यूज़ आपके लिए लाया है जैन संस्कार क्रियाओं का अर्थ और उन्हें पूरा करने के विधि-विधान। जैन शास्त्र कहते है कि जैन संस्कृति से जुड़ी 53 क्रियाओं के विधिवत पालन से श्रावक, परमत्व को प्राप्त हो सकता है। पहली कड़ियों में हमने गर्भान्वय की 53 क्रियाओं के लक्षण में से 22 लक्षण तक के बारे में बात की थी। आज की कड़ी में अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी की वाणी पर आधारित लेख में विस्तार से जानिए, दीक्षाद्य क्रिया, जिनरूपता क्रिया, मौनाध्ययन वृत्ति क्रिया, तीर्थ कृद्भावना क्रिया, गुरुस्थानाभ्युपगमन क्रिया, गणोपग्रहण क्रिया, स्वगुरु स्थानावाप्ति क्रिया, नि:संगत्वभावना क्रिया, योगनिर्वाणसंप्राप्ति क्रिया, योग निर्वाण साधन क्रिया के बारे में….
23. दीक्षाद्य क्रिया
क्षुल्लक व्रत रूप उत्कृष्ट श्रावक की दीक्षा लेता है।
24. जिनरूपता क्रिया
क्रम से यथा अवसर दिगंबर रूप वाले मुनिव्रत की दीक्षा।
25. मौनाध्ययन वृत्ति क्रिया
श्रुत अभ्यास की समाप्ति पर्यन्त गुरु के पास मौन धारण करें और शास्त्रों का अध्ययन करें।
26 . तीर्थ कृद्भावना क्रिया
श्रुत अभ्यास के बाद तीर्थंकर पद की कारणभूत सोलह भावनाओं को भाता है।
27. गुरुस्थानाभ्युपगमन क्रिया
प्रसन्नता पूर्वक उसे योग्य समझकर गुरु (आचार्य) अपने संघ के आधिपत्य का गुरुपद प्रदान करें तो उसे विनयपूर्वक स्वीकार करना यही क्रिया है।
28. गणोपग्रहण क्रिया
गुरुपदनिष्ठ होकर चतु:संघ की रक्षा व पालन करे तथा नवीन जिज्ञासुओं को उनकी शक्ति के अनुसार व्रत व दीक्षाएं दें।
29. स्वगुरु स्थानावाप्ति क्रिया
गुरु की भाँति स्वयं भी अवस्था विशेष को प्राप्त हो जाने पर, संघ में से योग्य शिष्य को छांटकर उसे गुरुपद का भार प्रदान करें।
30. नि:संगत्वभावना क्रिया
एकल विहारी होकर अत्यंत निर्ममता पूर्वक अधिकाधिक चारित्र में विशुद्धि करना। अब वह शिक्षा, दीक्षा कुछ नहीं दे सकता। मात्र अपने आत्मचिंतन में लगता है।
31. योगनिर्वाणसंप्राप्ति क्रिया
आयु का अंतिम भाग प्राप्त हो जाने पर वैराग्य की उत्कर्षता पूर्वक एकत्व व अन्यत्व भावना को भाता हुआ संल्लेखना धारण करके शरीर त्याग करने के लिए साम्यभाव सहित इसे धीरे-धीरे कृश करने लगता है।
32. योग निर्वाण साधन क्रिया
अंतिम अवस्था प्राप्त हो जाने पर साक्षात् समाधि या संल्लेखना को धारण करें।
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