सारांश
किशनगढ़ में स्थापत्य कला की अनूठी मिसाल है चन्द्रप्रभु मंदिर। इस मंदिर में झूलती छत और मानस्तम्भ का सौंदर्य और कलाकृतियां देखते हुए श्रद्धालू कौतूहल से भर जाते हैं। जानिए इस मंदिर के बारे में सब कुछ विस्तार से श्याम मनोहर पाठक की रिपोर्ट में…
15 टन वजनी दादरी यानी झूलती छत वाला किशनगढ़ का श्वेत पत्थरों से बना चन्द्रप्रभु भगवान के मंदिर का सौंदर्य और वास्तुकला अद्भुत है। यह कृष्ण धाम वृन्दावन में बने प्रेम मंदिर की तर्ज पर तैयार किया गया है। मंदिर की बिना पिलर के बनाई 15 टन की झूलती छत व मंदिर में प्रवेश करते ही नजर आने वाला मानस्तंभ सभी के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। पूरे मंदिर का निर्माण गोयल स्टोनेक्स के उमेश गोयल के दिशा-निर्देशन में दूर-दूर से आए कुशल कारीगरों ने किया है। वैसे यह मंदिर 125 साल पुराना है। जब मंदिर निर्माण हो रहा था तो इसकी प्रसिद्धि सुनकर दो वर्ष पहले प्रेम मंदिर की निर्माण कमेटी के पदाधिकारि
बारीक महमोहक नक्काशी बढ़ाती मंदिर की सुंदरता
गोयल स्टोनेक्ट के प्रोपराइटर उमेश गोयल ने बताया कि मंदिर निर्माण में उपयोग में लिया गया मोरवड़ माइंस का पत्थर अत्यधिक कठोर होने के बावजूद कुशल कारीगरों ने इसी पत्थर पर नक्काशी का कार्य कर इसे बेजोड़ बना दिया है। पत्थरों पर की गई नक्काशी इस ओर से गुजरने वालों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। मंदिर में माउंट आबू के दिलवाड़ा मंदिर की भी झलक दिखती है। मंदिर में श्री जिनेन्द्र की 27 प्रतिमाएं हैं। मंदर प्रांगण में पीछे की ओर संघ के लिए दस कमरे भी बनाए गए हैं।
ऐसे बनी हैं मंदिर की झूलती छत
मंदिर निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले गोयल बताते हैं कि मंदिर में दिल्ली से स्टील रिंग मंगवा कर बिना पिलर के सपोर्ट के 15 टन वजनी दादरी (झूलती छत) का निर्माण नक्काशी के साथ किया गया है। यह अपने आप में सबको आकर्षित कर रही है। गोयल बताते हैं कि मोरवड़ माइंस के पत्थर का निर्माण में उपयोग किया गया, जो गढ़ाई के दृष्टिकोण से अत्यधिक कठोर है। इस कारण गढ़ाई की लागत अधिक होती है। पत्थर के सभी ब्लॉक आर के मार्बल परिवार की ओर से मंदिर को निशुल्क उपलब्ध कराए गए हैं। इन पत्थरों पर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा के कुशल कारीगरों ने शानदार कलाकृतियां उकेरी हैं। मंदिर निर्माण में दक्षिण भारत की शैली दिखाई देती है।
जिनालय में बना है पहला मानस्तंभ
मंदिर ट्रस्ट के सुरेंद दगड़ा ने बताया कि किशनगढ़ में पहला मानस्तंभ है, जो इस मंदिर में बना है। मानस्तंभ का निर्माण कुंथीलाल वैद एवं उनके पुत्र जयकुमार, राजकुमार, मुकेश कुमार के सहयोग से हुआ है। सिंहद्वार आर के मार्बल परिवार द्वारा माता चतर देवी पाटनी के नाम से बनाया गया है।
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