तप के प्रभाव से रोग, शोक आदि अनेक प्रकार के संकट दूर हो जाते हैं। पद्मपुराण पर्व 92 में आता है कि मुनियों के प्रभाव से मधुरा नगरी भी रोग, शोक आदि से मुक्त हो गई। जानते हैं क्या है वह प्रसंग-
सुरमन्यु, श्रीमन्यु, श्रीनिचय, सर्वसुन्दर, जयवान, विनयललसा और जयमित्र यह सभी मुनिराज चरित्र में निर्दाेष और विशुद्ध थे। ये सभी मुनिराज राजा श्रीनन्दन की धरणी नामक रानी से उत्पन्न हुए पुत्र थे।
यह सब प्रभापुर नगर के रहने वाले थे और निर्दाेष गुणों के धारी थे। ये सब प्रीतिंकर मुनिराज के कैवलज्ञान के समय देवों का आगमन देख प्रतिबोध को प्राप्त हुए और पिता के साथ धर्ममार्ग पर चलने के लिए उद्यत हुए।
राजा श्रीनन्दन ने डमर मंगल नामक एक माह के बालक को राज्य सौंप दिया और अपने पुत्रों के साथ प्रीतिंकर मुनिराज के पास जाकर दीक्षा धारण कर ली। सातों पुत्र सप्तर्षि मुनि हुए। सातों मुनि सप्तर्षि मुनि बनकर ही मधुरा नगरी में आए और वर्षाकाल के समय में एक वटवृक्ष के नीचे वर्षा योग लेकर विराजमान हो हुए।
तप के प्रभाव से वहां की उपजाऊ भूमि बिना जोते ही धान्य सहित हो गई और तप के प्रभाव से ही मधुरा नगरी रोग मुक्त हो गई।
सीख- इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि तप का प्रभाव सभी तरह के संकटों का निवारण तो करता ही है, साथ ही उस स्थान को भी हरा-भरा कर देता है जहां पर बैठकर तप किया जाता है। इतना ही नहीं, तपस्या के द्वारा ही हर वस्तु साध्य हो जाती है।
(अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज की डायरी से
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