आज इस बात की तरफ आप सबका ध्यान लाना चाहता हूं कि पद्मपुराण के पर्व 5 में एक कथा आती है, जिसमें मुनि निंदा का फल बताया गया है। इस कथा से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि आनंद यानी हंसी-मजाक के भाव में भी निंदा नहीं करनी चाहिए।
कथा इस प्रकार हैं- मुनि, आर्यिका, क्षुल्लक, क्षुल्लिका सम्मेद शिखर की यात्रा में थे। इस यात्रा के दौरान वे लोग अन्तिका नामक ग्राम में पहुंचे। इन्हें देखकर गांव के लोगों ने कुवचन कहे। उनकी हंसी उड़ाई। वहीं गांव का एक कुम्भकार था। उससे सभी को ऐसा करने से मना किया और स्वयं मुनिराज व अन्य आगंतुकों की स्तुति की। उनकी वंदना की।
कुछ समय बाद उस गांव के एक व्यक्ति ने चोरी की। जब यह बात राजा को पता चली तो राजा ने अविवेक के कारण गांव को आग लगवा दी। पूरे गांव के लोग जलकर मर गए। पर, उस दिन वह कुम्भकार गांव में नहीं था, जिसने मुनियों की स्तुति की थी। इससे उसकी जान बच गई। गांव के अन्य लोगों की मृत्यु हो गई। अगले जन्म में वे लोग कौड़ी हुए। जबकि कुम्भकार सेठ हुआ। उसने सब कौड़ी खरीद ली।
फिर वह कुम्भकार राजा हुआ, तो गांव वाले गिजाई हुए, जो राजा के हाथी के पांव के नीचे दबकर मर गए। इस प्रकार कही भव भ्रमण किया और दु:खों को भोगा।
(अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज की डायरी)
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