पूर्व भव के बैर के कारण ही हम एक दूसरे को मारते, कष्ट देते हैं, इसलिए हमें अच्छे संस्कारों का जीवन मे बीजारोपण करना चाहिए। पद्मपुराण के पर्व 5 में एक कथा है जो संस्कारों के महत्व को दर्शाती है।
संजयन्त नाम के मुनिराज थे उन पर विद्युददृढ़ नाम के राजा ने उपसर्ग किया तो धरणेन्द्र देव ने उनका उपसर्ग दूर किया। तब धरणेन्द्र ने मुनिराज से पूछा था कि किस कारण राजा ने उपसर्ग किया। तब मुनिराज ने कहा कि सुनो मैं तुम्हें कथा सुनाता हूं।
मैं (संजयन्त मुनि) शकट नामक गाँव में वैश्य हुआ करता था। वहां से मरकर श्रीवर्द्धन नाम का राजा हुआ। उसी गांव में एक ब्राह्मण रहता था जो खोटे तप करता था। वह मरकर देव हुआ। वहां से मरणकर मैं वह्निशिख नाम का पुरोहित हुआ। यह पुरोहित सत्यवादी के नाम से प्रसिद्ध था पर अंदर से कपटी झूठा था। पुरोहित ने नियमदत्त नाम के वणिक का धन छिपा लिया। पुरोहित वणिक को वापस धन देना नही चाहता था। एक दिन रानी ने पुरोहित के साथ जुआ खेलकर अंगूठी जीत ली। रानी ने दासी के हाथ अंगूठी पुरोहित के घर भेजी और कहा कि पुरोहित की पत्नी को यह अंगूठी दिखाकर कर उसके पास से रत्न लेकर आओ।
पुरोहित की पत्नी ने अंगूठी देखकर रत्न दे दिए। रानी ने वह रत्न वापस वणिक को दे दिए और उस पुरोहित को अपमानित कर नगर से निकाल दिया। कुछ समय बाद उसकी बुद्धि ठीक हो गई तो उसने तपश्चरण किया जिसके प्रभाव से वह देव हुआ और वहां से आकर वह विद्युददृढ़ राजा हुआ। मैं (संजयन्त मुनि) देव हुआ वहां से मरणकर संजयन्त हुआ और मुनि बना इसलिए पूर्व बैर के संस्कार के कारण इस विद्युददृढ़ ने मुझ पर उपसर्ग किया। जो वणिक था वह मरकर तुम यानी धरणेन्द्र हुए और पूर्व भव के संस्कार के कारण तुमने मुझ पर आए उपसर्ग को दूर किया।
(अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज की डायरी)
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