पैर धो कर मंदिर में प्रवेश करते है पर मन के कषाय साथ लेकर चलते है जिसे बाहर ही त्याग कर जाने की आदत डालें
न्यूज सौजन्य- राजेश जैन दद्दू
इंदौर । कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) को मंद रखने के लिए गुणों का चिंतन करना जरूरी है। गुणों के चिंतवन से ही गुणों की प्राप्ति होती है यह उद्गार मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने समोसरण मंदिर कंचन बाग में धर्म सभा के दौरान व्यक्त किए। मुनिश्री ने आगे कहा कि व्यक्ति को मेरा अस्तित्व था, है और रहेगा, मैं सामान्य भी हूं और विशेष भी हूं ऐसा चिंतवन करते रहना चाहिए। साथ ही कहा कि आप मंदिर में तो अपने पैर धोकर प्रवेश करते है लेकिन अपने मन को धोकर नहीं जाते। तो संकलेषता से मुक्त होकर और मान कषाय बाहर छोड़कर मंदिर में जाने की आदत डालें।
धर्म सभा में मुनि श्री सहज सागर जी ने भी संबोधित करते हुए कहा कि जीव किसी भी पर्याय में रहे उसे कर्मों के अधीन रहना ही पड़ेगा।
मीडिया प्रभारी राजेश जैन दद्दू ने धर्म सभा कि जानकारी देते हुए बताया कि धर्म सभा के शुरुआत मुनि श्री आदित्य सागर जी के गृहस्थ जीवन के भाई बंटी भैया जबलपुर व राकेश जैन इंदौर ने मांगलिक क्रियाएं संपन्न कर की। सभा का संचालन हंसमुख गांधी ने किया।