आलेख

जिनेंद्र भगवान की भक्ति ही हरती है हमारे सारे संकट

झिलमिल जैन (आस्था) | जीवन में धर्म करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है और जब हम मेहनत धर्म के लिए करते हैं, तभी पुण्य को इकट्ठा कर पाते हैं। जब पुण्य इकट्ठा हो जाता है, तब सारे काम अपने आप बन जाते हैं। शत्रु भी हमारा मित्र हो जाता है। यह सब पुण्य की ही महिमा है। इसे हम आकृत पुण्य की कहानी से और अच्छी तरह से समझ सकते हैं। जब आकृत पुण्य का पाप का उदय था, तब सोना भी मिट्टी में बदल गया और जब उसने जिनेंद्र प्रभु और गुरुओं के सेवा की तो उसका पुण्य इकट्ठा हो गया।

पुण्य का संचय हुआ तो उसने एक दिन एक किसान को देखा। उसने देखा कि यह किसान कब से हल जोत रहा है और कितना थक गया। उसने उसकी मदद के लिए हल जोतना शुरू किया तो देखा हल चलते ही उसे हीरे-जवाहरात से भरा कलश मिल गया। उसने वह कलश देख कर उसी मिट्टी में छिपा दिया और वहां से जाने लगा। जब किसान ने हल चलाया और देखा तो उसने उसे आवाज लगाई और वह कलश आकृत पुण्य को देने लगा। आकृत पुण्य ने कहा, नहीं यह कलश आपका ही है।

मैं तो निमित मात्र हुं। यह जमीन आपकी, हल आपका तो फिर यह कलश भी आपका ही हुआ। किसान ने कहा कि आप बड़े पुण्यशाली और बड़े दिलवाले हो। यह कहकर किसान वहां से चला गया। इसलिए अपने पुण्य के संचय के लिए हमें निरंतर भगवान की सेवा करते रहनी चाहिए। हमें हमेशा अच्छा सोचना चाहिए। जिनेंद्र भगवान की भक्ति ही हमारे सारे संकट हरती है। इसलिए अपना सिर जिनेंद्र भगवान के चरणों में रखना चाहिए।

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