आलेख

अवश्य मिलता है धर्म की निंदा का फल

झिलमिल जैन (आस्था) | हे भव्य आत्म, जो जीव धर्म की निंदा करते हैं और धर्म को गाली देते हैं, धर्म के मार्ग पर चले वाले व्यक्ति को उल्टा-सीधा बोलते हैं, उनका अपमान करते हैं, अपशब्दों का प्रयोग करते हैं, तो यकीन मानो वे जीव अपने कर्मो का बंध कर के नीच गति का बंध करते हैं और एक भव से दूसरे भव में अपना गति काल बड़ा कर 84 लाख योनियों में भटकते रहते हैं। राजा क्षेणिक ने एक दिगम्बर मुनि का अपमान कर उन्हें ढोंगी साधु बोलकर उनके गले में मरा हुआ सांप डाल दिया। जिससे साधु के शरीर पर लाखों की संख्या में चींटियां आ गईं।

उसी क्षण राजा क्षेणिक ने सातवें नरक का बंध कर लिया। जब यह बात उन्होंने अपनी पत्नी को बताई, तो उनकी पत्नी चेलना को बहुत दुख हुआ। उसने राजा से कहा कि आपने मुनि के साथ इतना दुष्ट कार्य किया और वह भी दिगंबर मुनि के साथ। वह तुरंत उस स्थान पर गई। उसने वहां जाकर देखा कि मुनिराज तो ध्यान में तल्लीन हैं और चीटियां आने पर वह ध्यान से नहीं डिगे। तभी राजा ने उनके गले से सांप निकाल कर क्षमा मांगी। तभी उनके सातवें नरक का बंध पहले नरक में बदल गया। कहने का तात्पर्य है कि क्षमा मांगने से तो कर्म कम होगा लेकिन निंदा का फल तो मिलेगा ही।

इसलिए हमें कभी किसी भी साधु या त्यागी की निंदा नहीं करनी चाहिए। हमें हमेशा साधु की सेवा करनी चाहिए और उन्हें सम्मान देना चाहिए। अगर हम उनकी सेवा नहीं कर सकते तो उनकी निंदा भी न करें। याद रखें, सोशल मीडिया का उपयोग धर्म की निंदा करने में नहीं बल्कि धर्म को जिंदा रखने में करें। सोशल मीडिया पर धर्म की निंदा करके हम पाप कर्म का बंध करते हैं। याद रखें कि कर्मों ने तो तीर्थंकर को भी नहीं छोड़ा तो हमारा तो स्थान ही क्या है।

जिनधर्म मार्ग में बढ़ना है,
निज आत्म कल्याण करना है।

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