भारतीय संस्कृति में श्रमण संस्कृति की प्राचीनता का उल्लेख हर कही पर मिलता है लेकिन जैन संस्कृति में ऐसा क्या अलग है जो जन-सामान्य को समझ में आए, इस बात को लेकर कई प्रयास हुए है उन्हीं प्रयासों में से एक है – वीर गोम्टेशा ।
समाधि मरण, संथारा, सल्लेखना कई नामों से प्रचारित जीवन जीने की कला को आत्महत्या कहने का दुस्साहस भी किया गया, लेकिन जिस जैन धर्म की आत्मा ही समाधि हो, उसे या तो किसी ने समझा नहीं या जैन धर्मावलंबियों की आत्ममुग्धता के कारण भी यह विषय जन सामान्य तक नहीं पहुंच पाया । विगत दिनों रीलिज हुई 2 घण्टे 15 मिनिट की फिल्म वीर गोम्टेशा में यह बताने का सार्थक प्रयास किया गया कि जैन धर्म क्या है ? जैन रात्रि भोजन क्यों नहीं करते? जैनियों के द्वारा तामसिक भोजन प्याज, लहसून आदि का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता? महामस्तकाभिषेक क्या है ? किस तरह से युवाओं का हृदय परिवर्तन होता है ।
धर्म रटने, क्रियाकाण्ड करने की विषय वस्तु न होकर केवल और केवल समझने का विषय है, जो समझता है, वह भटकता नहीं । वह अड़ता नहीं, लड़ता नहीं । इन सारी बातों को एक श्रेष्ठ कथावस्तु के माध्यम से, श्रेष्ठ संवाद, व शानदार पिक्चराईजेषन के माध्यम से दिखाने का प्रयास हमारे निमाड़ के शशांक-षैलेन्द्र जैन ने किया है । संपूर्ण फिल्म दर्षक को न केवल सोचने पर मजबूर करती है बल्कि यह भान कराती है कि सही क्या है? गलत क्या है?
जैन धर्म की अनेकांतिक दृष्टि व स्याद्वाद की शैली जहां संपूर्ण विष्व को एक दृष्टि प्रदान करती है वहीं यह बताती है कि कर्म सिद्धांत क्या है । हमारे जीवन में अच्छा बुरा क्यों? व कैसे होता है । अभिनेता ने न केवल अपने चरित्र के साथ न्याय किया है बल्कि अपने अभिनय से सभी को बांधे रखते हुए विषय वस्तु के साथ न्याय किया है । फिल्म के निर्माता निर्देषक, पटकथा एवं संवाद लेखक शषांक शैलेन्द्र जैन खरगोन जिले के छोटे से ग्राम साटकुट (कसरावद) में जन्में है जो सिद्धक्षेत्र पावागिरीजी ऊन व सिद्धवरकूट, बावनगजा के नजदीक है । मात्र 30 वर्ष की उम्र में राजश्री पिक्चर्स मुंबई व प्रसिद्ध फिल्म निर्माता प्रकाष झा जैसे बड़े व्यक्तित्वों के साथ काम कर चुके शषांक ने अपने फिल्मी सफर में कई मुकाम हासिल किए । उनके द्वारा बनाई गई फिल्म वीर गोम्टेशा को कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुके है, जो कि संपूर्ण निमाड़ के साथ राष्ट्रीय स्तर की जैन समाज के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण उपलब्धि है ।
फिल्म में मुख्य अभिनेता रोहित मेहता, साधना मादावत, सुषील जोहरी, सौरभ जैन आदि कलाकार अपने आप में फिल्म के उद्देष्य के प्रति समर्पित व सक्षम दिखाई दिये है । अतिषयकारी तीर्थ श्रवणबेलगोला सिद्धक्षेत्र सिद्धवरकूट, इन्दौर, मुंबई आदि स्थानों पर फिल्मांकित वीर गोम्टेशा के दृष्यांकन को सार्थकता प्रदान करते है । इस फिल्म को श्रेष्ठतम् बनाने में अनेक संतों का आषीर्वाद व मार्गदर्षन मददगार साबित हुआ है ।
महासती मैना सुन्दरी के बाद जैन दर्षन की आत्मा, समाधि, संलेखना, संथारा के साथ जैन जीवन पद्धति को श्रेष्ठतम् रुप में दर्षाती यह फिल्म जैन-जैनेत्तर सभी को सार्थक संदेष प्रदान करती है, जिसे देखने का हम सबका कर्तव्य बनता है ।
– राजेन्द्र जैन महावीर