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सम्मेद शिखर : आंदोलन की दिशा कहीं भटक न जाए, इसलिए झारखंड सरकार-जैन प्रतिनिधियों की निर्णायक बैठक से पहले ज़रूरी बात

दीपक जैन

जैन समाज अपने व्यापार कौशल ही नहीं बल्कि दान-पुण्य और अपने परोपकार के लिए भी जाना जाता है । इसीलिए ये समाज एक ‘आह’ भी करता तो पूरे देश में ‘बहस’ छिड़ जाती है । सम्मेद शिखर पर तो हम जैन समुदाय के लोग देशव्यापी आंदोलन कर रहे हैं । हर बात के दो पहलू होते हैं ।

इस आंदोलन के कारण भले ही सम्मेद शिखर पर बनी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियां हों लेकिन ये सौभाग्य भी बन गया कि सकल जैन समाज एक विषय पर एक जाजम पर आकर इकठ्ठा हो गया और सरकार से दो टूक संवाद कर रहा है ।

मैं यह मान कर लिख रहा हूं कि मेरा देश-विदेश में बैठा सकल जैन समाज एक जाजम पर है और मैं धरती पर सर्वोत्तम धैर्यवान लोगों के समाज में अपनी बात रख रहा हूं । बीते दिनों मैं सम्मेद शिखर पर काफी बांतों को सुन रहा हूं, मंथन के दौर से गुजरा हूं । मंथन से कुछ बातें निकल कर आई हैं । आपके सामने साझा कर रहा हूं । पवित्र भाव से लिखा है, इसे इसी भाव से समझने की कोशिश कीजिएगा । अगर मत भिन्नता है तो वो भी रखिएगा, मगर मेरी बात ज़रूर पूरी पढ़िएगा ।

सबसे पहली बात, क्या वाकई हम चाहते हैं कि सरकार या प्रशासनिक अमला सम्मेद शिखर तीर्थ से खुद को अलग कर ले और सारी व्यवस्थाएं हम खुद संभाल लें ?
युवा जोश भरे वॉट्सएप मैसेज,बाइक रैलियों में ये बात खूब जोर-शोर से कही है । लेकिन क्या हम ऐसा कर सकते हैं कि सम्मेद शिखर पर होने वाली सारी गतिविधियां हम नियंत्रित कर लें । सम्मेद शिखर पर सरकार का नोटिफिकेशन तो 2019 में ही निकल गया था ।

इसका मुद्दा तो तब बना जब कुछ युवकों का वीडियो वायरल हुआ जो हमारे पवित्र शिखरजी पर बोतलें लहरा रहे थे । आक्रोशित जैन समाज ने इसे मुद्दा बनाया और सरकार के नोटिफिकेशन का ही विरोध शुरु कर दिया । जबकि मेरा मानना है कि अगर ठीक से बात की जाए तो ये नोटफिकेशन तो हमें सरकारी सिस्टम में और ज्यादा मजबूती भी दे सकता है ।

समझिए, जैन समाज चाहे तो भी कानूनन किसी को भी शिखरजी पर आने के लिए रोक नहीं सकता । ऐसे में जैन समाज के पदाधिकारी प्राधिकरण में आने की शर्तों के बिन्दूओं को अमल में लाने पर जोर देंगे। सरकार,स्थानीय प्रशासन और जैन समाज के प्रतिनिधियों से बने प्राधिकरण में हुए फैसलों को लागू करवाने का काम प्रशासन का है ।

स्थानीय एसपी,कलेक्टर के लिए ये बाध्यता होगी कि प्राधिकरण के फैसले को लागू करवाएं । हमें कानून अपने हाथ में लेने की ज़रूरत ही नहीं है । हम सिर्फ निगरानी करेंगे कि व्यवस्थाएं हमारे अनुरुप हैं या नहीं ।

दूसरी बात, भारत में जैसी सामाजिक और धार्मिक विविधताएं है । सरकारें अपने स्तर पर कोशिश करती हैं कि अमुक स्थान के तीर्थ या घनी आबादी क्षेत्र में अमुक जाति या धर्म के ही अधिकारी लगाएं । ऐसा करना जातिवादी इसीलिए नहीं है क्योंकि ये अधिकारी अपने धर्म,अपनी जाति या अपने समाज की रीति-नीतियों को भी जानते हैं और सरकार के नियम-कायदे भी ।

इसीलिए 26 दिसंबर को झारखंड के मुख्यमंत्री के सचिव के साथ होने वाली जैन समाज की बैठक में ये मांग प्रमुखता से रखी जानी चाहिए कि पारसनाथ, सम्मेद शिखर जी में सरकार जैन समाज के आईएस,आईपीएस व वन अधिकारी, कर्मचारी लगाए जो स्वत:स्फूर्त समाज और सरकार के बीच संतुलन का काम करें ।

अगर ऐसा होगा तो फिर व्यस्थाओं में अंतर्द्वंद्ध या टकराव नहीं संतुलन होगा । हालांकि ऐसा नहीं है कि अन्य जाति या धर्म के अधिकारी ऐसा नहीं करते । लेकिन ये भी सही है कि उन्हें जैन समाज का सिस्टम समझना पड़ता है जबकि जैन परिवारों में बचपन से ये संस्कार मिलते हैं ।

यदि सरकार इस व्यावहारिक पक्ष को ध्यान में रखे और ज्यादा से ज्यादा जैन समुदाय के अफसर,कर्मचारियों को यहां नियुक्ति दे तो मुझे लगता है कि टकराव ही खत्म हो जाएगा ।

तीसरी बात, ये बात सही है कि सम्मेद शिखर जी हमारे लिए हमारे जीवन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं । जैन धर्म के पथ-प्रदर्शक,हमारे भगवान तीर्थंकरों ने यहां से महाप्रयाण और आत्मोत्सर्ग किया है । सरकार अगर यहां अवांछनीय कुछ करना चाहती है वो हम बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करेंगे ।

लेकिन सवाल यह कि इसका विरोध हम कैसे कर रहे है ? मैंने अख़बारों में यह ख़बर देखी है कि सम्मेद शिखर जी को बचाने के लिए खून से पत्र लिखे गए । आप बताइए अहिंसा का पर्याय कहे जाने वाले जैन समाज में हम कैसी परिपाटी शुरु कर रहे हैं । हमारे युवाओं को ये कौन समझाएगा कि ये तौर-तरीके जैन समाज के नहीं हैं ।

अन्य समाज, जैन समुदाय से इस बात की प्रेरणा लेते हैं कि जैन कभी हिंसा नहीं करते, लेकिन अपनी बात मनवाना उन्हें आता है । अपने जैन समाज के लोगों को उद्वेलित कर प्रशासन,सरकार के विरुद्ध इस स्तर तक ले जाना कि वे अपना ही खून निकालने लगें, कानून हाथ में लें और उनके विरुद्ध मुकदमे दर्ज हो जाएं फिर अदालतों के चक्कर काटते रहें ।

ये सब करने की कहीं जरूरत नहीं । जैन समाज इतना सक्षम है कि इस देश में अपनी आवाज कोई नहीं दबा सकता, ये विश्वास तो हमें रखना ही होगा ।

चौथी और महत्वपूर्ण बात यह कि – जैन समाज के इस आंदोलन में एकजुटता तो थी, मगर आंदोलन में एकरुपता कहीं नहीं दिख रही । सोचिए हमारे ईश्वरीय स्वरूप आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज, जिन्हें सदी का संत तक कहा गया है । उनके श्रीमुख से चंद उत्साही श्रावकों ने गलत उद्बोधन करवा दिया ।

क्या संत समाज हमें इसके लिए क्षमा कर पाएगा ? सोचिए, दुनियादारी की बातों से विरक्ति लिए संत समाज, अपने श्रावकों को अपनी आंख,नाक,कान इसीलिए बनाता है ताकि आज की सांसारिक समस्याओं में धर्म सम्मत वो अपनी राय दे सकें । मगर अगर हम अपने संतों को ही गलत जानकारी देंगे तो फिर उनका मान-सम्मान कैसे रख पाएंगे ।

वॉट्सएप पर चले मैसेज भी बताते हैं कि हम और खासकर हमारे युवा, अन्य जातियों व धर्मों के आंदोलन के सामने अपना भी एक उदाहरण खड़ा करना चाह रहे हैं । जान दे देंगे- जैसे शब्दों की जरूरत कहां है । आप लोग उफ भी करेंगे तो सरकारें दौड़ी चली आएंगी, फिर किस बात का डर, किस बात का शक्ति प्रदर्शन ।

सकल जैन समाज मौन,क्षमा,संयम जैसे गुणों से परिपूर्ण हैं । सम्मेद शिखर जी के नाम पर भावनाओं की अभिव्यक्ति को उग्र मत बनाइए । हमारे समाज की ऊर्जा, देश,दुनिया को दिशा देती है । कृपया भावुकता में इसी ऊर्जा को नकारात्मक दिशा में मत जाने कीजिए । यदि मेरी बात किसी को अच्छी न लगे तो मुझे क्षमा कीजिए, अगर सही लगी तो अपने आस-पास के लोगों को इसे पढ़ाइए, इसे आगे पहुंचाइए ।

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