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तीन दिवसीय विशेष प्रवचन माला में दूसरे दिन तीर्थ बचाओ, समाज और परिवार बचाओ विषय पर प्रवचन : तीर्थों के बिना जैनों का कोई अस्तित्व नहीं, उनकी वेदना समझें – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज


श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन पंचायती मंदिर, अंजनी नगर की ओर से आचार्य श्री अभिनंदन सागर जी दीक्षित एवं आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से शिक्षित अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज की तीन दिवसीय विशेष प्रवचन माला के दूसरे दिन अंजनी नगर के पार्श्व संत सदन में तीर्थ बचाओ, समाज और परिवार बचाओ विषय पर प्रवचन देते हुए मुनि श्री ने कहा तीर्थ हमारी संस्कृति, संस्कार और इतिहास के साक्षी हैं। जैसे मां के बिना बच्चा रोता है, उसी प्रकार आज हमारे तीर्थ रो रहे हैं, यह हमें सुनाई भी दे रहा है। पढ़िए यह विशेष रिपोर्ट….


इंदौर। श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन पंचायती मंदिर, अंजनी नगर की ओर से आचार्य श्री अभिनंदन सागर जी दीक्षित एवं आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से शिक्षित अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज की तीन दिवसीय विशेष प्रवचन माला के दूसरे दिन अंजनी नगर के पार्श्व संत सदन में तीर्थ बचाओ, समाज और परिवार बचाओ विषय पर प्रवचन देते हुए मुनि श्री ने कहा तीर्थ हमारी संस्कृति, संस्कार और इतिहास के साक्षी हैं। जैसे बिन मां का बच्चा प्यार के लिए, दूध के लिए, भोजन के लिए तरसता है, उसकी भाषा को समझने वाला कोई नहीं होता, उसी प्रकार हमें भी तीर्थों की वेदना को समझना चाहिए। मां बिन सुख नहीं, उसी प्रकार तीर्थों के बिना जैनों का कोई अस्तित्व नहीं है।

तीर्थ स्थलों पर होते जा रहे हैं कब्जे

मुनि श्री ने कहा कि जैसे मां के बिना बच्चा रोता है, उसी प्रकार आज हमारे तीर्थ रो रहे हैं, यह हमें सुनाई भी दे रहा है। आज हमारा दिल इतना कठोर कैसे बन गया कि हम अपने तीर्थों की वेदना नहीं सुन पा रहे हैं। क्या महावीर की संतान आज इतनी कमजोर हो गई है कि अपने तीर्थों के लिए समझौता कर रही है, मुझे तो ऐसा लगता है कि जैसे हम अपनी मां का ही बंटवारा कर रहे हैं। व्यापार, सम्मान, डर, धन आदि के कारण तीर्थों के नाम पर समझौता कर रहे हैं। तीर्थ स्थान ही तो वह उद्गम स्थल है, जहां से संस्कारों और संस्कृति का प्रवाह होता है और जिस समाज का इतिहास नहीं रहता, वह समाज पंगु बन जाता है। एक-एक करके हमारे कई तीर्थ स्थलों पर कब्जे होते जा रहे हैं।

आपसी लड़ाई में तीर्थ और धर्म का नाश

हमें अपने तीर्थों को बचाना है तो संतवाद, पंथवाद, संगठन के नाम पर राजनीति करना बंद करना होगा। आज एक संस्था, एक व्यक्ति, एक संत एक- दूसरे के साथ काम करने को तैयार नहीं है। एक संघर्ष करता है तो दूसरा जाकर बिना सोचे-समझे समझौता कर लेता है। आपसी लड़ाई में तीर्थ, धर्म और धर्मात्माओं का नाश हो रहा है। माता सीता के गर्भ में जब लव और कुश आए तो उन्होंने मंदिर में पूजा, तीर्थ यात्रा, गुरुओं की वंदना का मन बनाया। उसी का परिणाम था कि दोनों बच्चे सुंदर, शक्तिशाली, गुणवान पैदा हुए और जंगल में जन्म होने के बाद भी सुखी ही रहे और सारी विद्या सीखीं। यह होता है तीर्थों की वंदना का भाव करने मात्र से और आज हम उन्हीं तीर्थों की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।

आयोजन करें तीर्थस्थलों पर जाकर

मुनि श्री ने कहा कि कोई भी जगह तब तक आबाद रहती है, जब तक वहां लोगों का आना-जाना रहता है, उसी प्रकार हमने भी तीर्थों पर आना-जाना जारी रखा तो वे आबाद रहेंगे। तीर्थों को उजड़ने से बचाना है तो जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ जैसे आयोजन भी तीर्थों में जाकर मनाने होंगे। हम वहां जाकर पूजन, अभिषेक और विधान करें तो तीर्थ आबाद रहेंगे। अगर 100 रुपए कमाते हैं तो उसमें से एक रुपए की हिस्सेदारी तीर्थों को सुरक्षा और व्यवस्था में लगाने का संकल्प सभी परिवारों को लेना चाहिए। 1000 रुपए कमाते हैं तो 10 रुपए तीर्थों के लिए। जितने कमाई होगी, उसी के अनुसार निकलते जाएगा। यह संकल्प पूरा जैन समाज करे तो एक भी तीर्थ धन के अभाव में नहीं रहेगा।

इतिहास से सीख लें

मुनि पूज्य सागर ने कहा कि तीर्थों की रक्षा की सीख हमें अपने इतिहास से भी लेनी चाहिए। राजा खारवेल में 15 वर्ष की आयु तक राजोचित विद्याएं सीखीं। 16 वर्ष की आयु में वह युवराज बने। 24 वर्ष की आयु में उनका अभिषेक हुआ। वर्तमान के ओडिशा में उनका राज्य था। खारवेल का जन्म ईसा पूर्व 190 के लगभग हुआ था। आज भी ओडिशा के उद्यगिरी खंडगिरी में अनेक प्राचीन गुफाएं हैं, जिनमें भगवान की प्रतिमाएं है। जैन साधुओं की साधना के लिए गुफाएं और विश्राम के लिए पहाड़ बनाए हैं। खारवेल ने खुद भी यहीं साधना की थी। इसी प्रकार से गंगराज के नरेश राचमल्ल (राजमल्ल) के महामंत्री चामुण्डराय ने मां की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए आचार्य नेमीचंद्र की आज्ञा से श्रवणबेलगोला में भगवान बाहुबली की प्रतिमा का निर्माण करवाया । इस प्रतिमा के निर्माण से चंद्रगिरी पहाड़ की सुरक्षा भी हो सकी।

संत और पंथ के नाम पर नहीं, धर्म के नाम पर कल्याण पर प्रवचन

इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और मंगलाचरण से हुई। सभा में मुनि श्री का पाद पक्षालन ऋषभ पाटनी, संजय मोदी, चंदू कुमार गोधा, अशोक टोंग्या ने किया। शास्त्र भेंट छत्तीसगढ़ के अशोक जैन ने किया। वहीं श्रीफल भेंट राजस्थान से आए हितेश जैन द्वारा किया गया। धर्म सभा का संचालन समाज के उपाध्यक्ष ऋषभ पाटनी ने किया। आभार नितिन पाटोदी ने व्यक्त किया। समाज अध्यक्ष देवेन्द्र सोगानी ने बताया कि तीसरे तीन मुनि श्री के प्रवचन संत और पंथ के नाम पर नहीं, धर्म के नाम पर कल्याण विषय पर होंगे। इसके बाद दोपहर 2 बजे शंका समाधान और शाम 6 बजे आनंद यात्रा के साथ धर्म चर्चा होगी।

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