शरीर से राग और ममत्व को समाप्त करने ,जीवो की सुरक्षार्थ, अहिंसा धर्म के पालनार्थ एवं स्वयं के संयम की साधना में वृद्धि हेतु जैन संतों के द्वारा केश लोचन किया जाता है। उक्त उद्गार जैन साध्वी विश्रेय श्री माता जी के केशलोंच के अवसर पर श्री आदिनाथ महिला मंडल की संस्थापक श्री मती ऊषा भण्डारी ने व्यक्त किए।श्री मती भण्डारी ने बताया कि जैन संतों की साधना की कठिन परीक्षा यदि कोई है तो वह केशलोंच ही है, पढ़िए अजय जैन की रिपोर्ट ……
शरीर तो एक पुदगल है और पुदगल से जैन संत राग और ममत्व नहीं रखते हैं इसी कारण केश लोच की क्रिया की जाती है। शरीर से राग और ममत्व को समाप्त करने ,जीवो की सुरक्षार्थ, अहिंसा धर्म के पालनार्थ एवं स्वयं के संयम की साधना में वृद्धि हेतु जैन संतों के द्वारा केश लोचन किया जाता है। उक्त उद्गार जैन साध्वी विश्रेय श्री माता जी के केशलोंच के अवसर पर श्री आदिनाथ महिला मंडल की संस्थापक श्री मती ऊषा भण्डारी ने व्यक्त किए।श्री मती भण्डारी ने बताया कि जैन संतों की साधना की कठिन परीक्षा यदि कोई है तो वह केशलोंच ही है, दीक्षा से पूर्व भी पंच मुष्ठी केशलोंच किया जाता है। संयम की साधना में जैन संत को परिपक्व बनाने के लिए एवं तपस्या की कसौटी पर कसने की क्रिया केशलोंच ही है। श्री मती जैन ने कहा की पंच इंद्रियों, दो हाथ दो पैर और एक मन पर नियंत्रण स्थापित कर हाथों से स्वयं का मुंडन किया जाता है जो केश लोंच कहलाता है।
28 मूलगुणों में से एक मूलगुण है केशलोंच
इस अवसर पर श्री मती जैन ने बताया गया कि केशलोंच साधु के 28 मूलगुणों में से एक मूलगुण है। जिसका सभी जैन साधु साध्वियों के द्वारा पालन किया जाता है। तप त्याग और तपस्या कर आत्मकल्याण करना ही सन्तों का प्रमुख उद्देश्य होता है । श्री मती भंडारी ने बताया कि केशलोंच में साध्वी जी द्वारा स्वयं के सिर के बालों को अपने हाथों से ही उखाड़ दिया जाता है।स्वयं के शरीर के प्रति इतना परिषह कहीं ओर नही दिखाई देता है। इस अवसर पर जैन साध्वी को केशलोंच करते हुए देख उपस्थित लोग भावुक हो गए।इस मौके पर श्री मती शकुंतला जैन, ऊषा भण्डारी,रिनी जैन,इशिका जैन,सलोनी जैन,मीना जैन,दीप्ती जैन,रजनी जैन सहित अनेक लोग मौजूद थे
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