चीन के जियान शहर में सड़क के निर्माण के दौरान जमीन में लगभग 700 दिगंबर मूर्तियां प्राप्त हुई थी। चीन में महावीर के पहले जैन धर्म था। यह तथ्य आदिनाथ की प्रमाणिकता को बल देता है। इंदौर से पढ़िए ओम कीर्ति पटौदी की यह खबर…
इंदौर। यदि हम भगवान महावीर के पूर्व के इतिहास को देखें तो हम पाते हैं कि लगभग पूरा यूरेशिया जैनियों से भरा था। जिसमें कई देश में शामिल थे। ईसा के 500 वर्ष से भी पहले के चीन के इतिहास में जैन धर्म का अनुसरण करने वालों की संख्या कम नहीं थी। चीन पर साम्राज्य करने वाले कई राजवंश जैन श्रमण संस्कृति के नियमों को पालन करने वाले हुआ करते थे। ह्वान राजवंश का पांचवा शासक जिंग डी ताओवाद का प्रबल समर्थक था। ताओवाद को जैन धर्म पर्यायवाची माना जा सकता है। इस बात की पुष्टि इस बात से कि जा सकती है कि वह बहुत ही दयालु शासक था और वह जैन धर्म के 10 धर्म में से कई का पालन करत। जिंग डी ने 157 ईसा पूर्व से 141 ईसा पूर्व तक चीन पर शासन किया।
भारत और एशिया में रहा है प्रभाव
वर्द्धमानपुर शोध संस्थान के ओम पाटोदी ने बताया कि एशिया के लंका, पाकिस्तान, म्यांमार, इंडोनेशिया, यूरोप के बड़े हिस्से का जब हम पिछला इतिहास देखते हैं तो हम पाएंगे कि यहां जैन राजाओं का शासन था। इस बात की पुष्टि हमें जैन पुराणों से प्राप्त होती है। भगवान महावीर के समय जो स्थिति जैन धर्म की थी वह बाद की सदियों से कम होती चली गई फिर भी ईसा की शुरुआत तक भारत और एशिया में अधिकांश आबादी तीर्थंकरों के मार्ग, आत्मा धर्म का पालन करने वाली थी। आदि महावीर जन्मोत्सव पर यह विवरण जैन धर्म को महावीर स्वामी से शुरू बताने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण है।
जैन तीर्थंकर की होने का आभास देती है मूर्ति
पाटोदी ने बताया कि चीन के जियान शहर में हवाई अड्डे के पास एक सड़क के निर्माण के दौरान जमीन के अंदर लगभग 20 सुरंग पाई गईं। जिसमें 8 सुरंगों में लगभग 700 नग्न मूर्तियां प्राप्त हुई। जिसका उल्लेख डॉ. जिनेश्वर दास जैन ने अपने पुस्तक में किया है। उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि पदक्षिणी चीन को पूर्व विदेह के नाम से जाना जाता था। इन प्रतिमा की दिगंबर अवस्था इन्हें जैन तीर्थंकर मूर्ति होने का आभास देती है। इस घटना को देखते हुए हमारा विश्वास पक्का हो जाता है कि चीन पर जैनधर्म की जड़ें बहुत मजबूत थीं।
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