कुंडलपुर में विराजे मुनि श्री निरंजन सागर जी की पावन वाणी जैन श्रावकों को मन को पावन कर रही हैं । श्रीफल जैन न्यूज़ के लिए मुनि श्री की वाणी के कुछ अंश पढ़िए हमारे सहयोगी जयकुमार जलज हटा/राजेश रागी बकस्वाहा के इस आलेख में
“आज हम सभी फिर से अपने जीवन के उस विज्ञान को समझने के लिए एकत्रित हुए हैं । जिसके माध्यम से हम सभी अपना जीवन सुव्यवस्थित और सुनिश्चित तरीके से ऊपर की ओर उठा सकें ।”साइंस ऑफ लिविंग” के इस सत्र में हम सभी परिपक्वता कैसे आए इस विषय को समझने का प्रयास करेंगे । एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है
“करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान,
रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निशान
“अर्थात अभ्यास के माध्यम से मूर्ख भी विद्वत्ता को प्राप्त कर लेता है। जिस प्रकार रस्सी के लगातार आवागमन से कठोर पाषाण पर भी निशान पड़ जाता है । आप सभी ने महाकवि कालिदास जी का नाम सुना है । वे कालिदास किसी समय एकदम मूर्ख थे ।और उनकी पत्नी ने इसी मूर्खता के कारण उनका घोर तिरस्कार कर दिया । कालिदास ने वहां से सीधे विद्वानों की शरण में पहुंचकर ऐसा अभ्यास किया जिससे उन्होंने उच्च कोटि की विद्वत्ता हासिल की । जिससे उन्होंने मेघदूत नामक महाकाव्य की रचना कर डाली । आप लोग कहते हैं “प्रैक्टिस मेक्स मैन परफेक्ट” अर्थात अभ्यास के माध्यम से व्यक्ति परिपक्वता को प्राप्त होता है । क्या कालिदास एक बार में ही सफल हो गए थे । असफलताओं के अनुभव के बिना सफलता का लाभ नहीं उठाया जा सकता है ।
असफलताओं से घबराओ मत…
असफलताओं से घबराओ मत । आखिर बिना गिरे क्या कोई चलना सीख लेता है । कहते हैं “इफ यू वांट बेस्ट डोंट टेक रेस्ट ऑल द बेस्ट “अर्थात अगर आप अपने जीवन में सर्वश्रेष्ठ चाहते हैं तो आप आलस्य ना करें । आपके जीवन में अगर कोई सबसे बड़ा शत्रु है तो वह है आलस्य… । सबसे बड़ा मित्र है तो वह है अभ्यास…। अपने कार्य को इतनी लगन से कीजिए कि असफलता असंभव हो जाए । असफलता आपकी हार नहीं बल्कि आधी विजय है ।
क्योंकि अभ्यास व्यक्ति को पूर्ण बनाता है । कठिनाइयों से घबराकर कभी अपना आत्मविश्वास नहीं खोना चाहिए । आपत्तियों पर विजय प्राप्त करना ही जीवन का सबसे बड़ा आनंद है । एक सरल कृषक था । वह अपनी गर्भवती गाय की बहुत लगन से सेवा करता था । उसे प्रतिदिन अपने साथ ही घर से खेत ,खेत से घर ले जाता था । एक दिन गाय ने खेत में बछड़े को जन्म दिया ,और कृषक ने उसे साफ करके अपने कंधे पर रखकर ले आया। यह क्रम उसका प्रतिदिन का था ।बछड़े को कंधे पर रखकर लाना ले जाना ।ऐसा करते करते 2 साल हो गए । अब वह बछड़ा बैल बन गया था । परंतु कृषक को उसका भार मालूम ही नहीं होता था । क्यों? क्योंकि यह उसका प्रतिदिन का अभ्यास था। यह दृष्टांत इसलिए दिया ताकि विषय आपको जल्दी समझ में आ जाए । संदेश किसी से भी लिया जा सकता है ।चाहे वह छोटा बच्चा ही क्यों ना हो । गिरते पड़ते वह किस प्रकार चलना सीखता है सभी जानते हैं ।
अगर कालिदास प्रारंभ में ही उस परिस्थिति से घबरा जाते तो क्या वे महान कवि बन पाते । डर कर भागने वालों का कभी नाम नहीं होता। आपके अभ्यास की दशा और दिशा सही है तो आपका उत्थान निश्चित है ।आप अपने आप को जिस रूप में देखना चाहते हैं ,उस और आप अभ्यास कीजिए ।आपका लक्षण ही आपका लक्ष्य निर्धारित करता है। उम्मीदों को मत छोड़िए यही आपके जीवन का सबसे बड़ा सहारा है ।मनुष्य का जीवन अनुभवों का शास्त्र है, जिसका प्रत्येक अध्याय मार्गदर्शक है ।
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