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कुंडलपुर में मुनि श्री निरंजन सागर जी महाराज का संबोधन: बड़ा बनना या बड़प्पन आना दोनों अलग बात: मुनि श्री 


कुंडलपुर में मुनि श्री निरंजन सागर जी महाराज का संबोधन हुआ। श्रावकों के मन में जिन वाणी का अमृत बरसाते मुनिश्री ने जीवन के प्रति अपना भाव प्रकट किया। आत्म उत्थान के लिए पढ़िए मुनि श्री की वाणी जिसे आप तक पहुंचा रहे हैं हमारे सहयोगी जयकुमार जलज हटा और राजेश रागी बकस्वाहा


कुण्डलपुर अपने प्रवचन में मुनि श्री निरंजन सागर जी महाराज ने जीवन दर्शन को लेकर कईं लाभकारी बातें की । मुनि श्री ने कहा –“साइंस ऑफ लिविंग इस सत्र में हम एक ऐसे विषय को छूने जा रहे हैं। जिसको लगभग हर व्यक्ति कहीं ना कहीं अपने जीवन में महसूस करता है। जो भी व्यक्ति सत्ता में आता है,पद पर आता है। वह अपनी सत्तागत शक्तियों से अपने आप को बहुत बड़ा समझने लगता है। यहां तक की अपने सामने किसी को कुछ भी नहीं समझता है।“

आचार्य कहते हैं “प्रत्येक द्रव्य में अस्तित्व गुण विद्यमान है “अर्थात प्रत्येक वस्तु का अपना अस्तित्व है। जो उस अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता,यह उसका अज्ञान है। ज्ञानी सभी का अस्तित्व जानता है और उसे स्वीकार भी करता है। वह योग्य को योग्य के रूप में और अयोग्य को अयोग्य के रूप में स्वीकार करता है। बड़ा बनने का अवसर जब छोटों ने दिया तब फिर उनकी उपेक्षा क्यों ? उपेक्षा करना ना करना यह कुछ ऐसे बिंदु हैं जो आपकी नकारात्मक सोच को विचार को प्रस्तुत करती है । अस्ति अर्थात सत (है )आचार्य कहते हैं “सत दृव्य लक्षणम”बगैर लक्षण को स्वीकार किए हम लक्ष्य तक कैसे पहुंच सकते हैं। आपके शरीर के छोटे-छोटे अवयव बड़े काम के हैं। आंख ,नाक ,कान आदि यह छोटे होकर भी अपनी उपयोगिता रखते हैं। इसलिए छोटो का ध्यान रखना चाहिए ।वही राजा श्रेष्ठ माना जाता है जिसकी प्रजा संतुष्ट है। छोटों की रक्षा करो क्योंकि छोटो के होने पर ही आप बड़े कहलाओगे। बिना प्रजा के राजा कभी शोभायमान नहीं होता। जिस प्रकार शरीर का एक-एक अवयव कार्यकारी है उसका महत्व है । उसकी उपयोगिता है, उसी प्रकार संगठन का एक एक व्यक्ति महत्वपूर्ण है,कार्यकारी है। विनय और वात्सल्य का भी अनोखा संयोग है।बड़े छोटों के प्रति वात्सल्य भाव रखें और छोटे भी बड़ों के प्रति विनय भाव रखें। हम विनय चाहते हैं तो वात्सल्य देना प्रारंभ करें और वात्सल्य चाहती हैं तो विनय करना प्रारंभ करें।

गाय का अपने बछड़े में जो प्रेम रहता है ऐसा उत्कृष्ट प्रेम अन्यत्र देखने को नहीं मिलता है। यह उत्कृष्ट प्रेम ही वात्सल्य है। आदर का उत्कृष्ट रूप ही विनय है। विनय के बिना वात्सल और वात्सल्य के बिना विनय नहीं रह सकते। यह पूरक संबंध है।जिसे अविनाभाव संबंध कहते हैं। पद की गरिमा का ख्याल रखकर ही कार्य करना चाहिए। यही बड़प्पन है। यहां पर आपका प्रश्न उठ सकता है कि क्या काम भी बड़ा छोटा होता है ? आप लोग ही तो कहते हो “किसी काम को छोटा मत समझो “यहां पर काम का अर्थ व्यवहार से है अर्थात बड़े बन कर बड़ो जैसा व्यवहार होना चाहिए। स्वामित्व बुद्धि ,कर्तव्य बुद्धि अर्थात कर्त्ता बुद्धि को छोड़कर कर्तव्य बुद्धि होना चाहिए ।हमारा कर्तव्य है हमारा सौभाग्य है जो हमें यह कार्य यह पद मिला है। एक प्रसिद्ध दोहा है “बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर” यह उदाहरण मात्र इस प्रसंग को समझने के लिए है। खजूर के भी अपने गुणधर्म है परंतु प्रसंग के अनुसार जो भूखा प्यासा राहगीर है उसके लिए उसका कोई महत्व नहीं है। इसलिए हम एक ऐसी उपजाऊ भूमि बने जिस पर हर तरह के वृक्ष लग सके। जो हर तरह के राहगीर को संतुष्ट कर सके। हमारी हृदय की विशालता हमारे चिंतन की विराटता ही हमें बड़ा बनाने का मूल आधार है। हम हमारे कर्तव्यों के माध्यम से जीवन की उस ऊंचाई को छुएं जिसके बाद हमें कभी पलट कर देखना ना पड़े। बड़ों की यही रीति है कि मुख से बोले बिना ही व्यवहार से छोटों को विनय सिखा देते हैं।

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