समीर जैन- जैन संत की कठिन तपश्चर्या का अभिन्न अंग होता है केशलोंच जिसे प्रत्येक साधु नियमित रूप से दो से चार माह के बीच करते हैं । केशलोंच साधु की स्वाधीन चर्या व सिंहवृत्ति का परिचायक होता है ।
दिगम्बर साधु साधनों में ना रमकर साधना की गहराइयों में डुबकियां लगाते हैं। दिगम्बर साधु अहिंसा महाव्रत का पालन करते हुए अपने सिर व दाढ़ी के बालों को घास की तरह उखाड़ फेंकते हैं।
इस अवसर पर भारी संख्या में भक्तों ने उपस्थित होकर धर्मलाभ प्राप्त किया। केशलोंच की पीड़ा के बीच भी आचार्य श्री की मंदमंद मुस्कान देखकर सभी भावविभोर हो उठे व दिगम्बर साधु की तपस्या के आगे नतमस्तक हो गए ।
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