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चिंतन का विषय- जैन समाज के परिवारों की आर्थिक स्थिति चिंतनीय

चिंतन का विषय

जैन समाज के परिवारों की आर्थिक स्थिति चिंतनीय

 

समाज की संस्थाओं में समाज के ही युवाओं को मिले प्राथमिकता

 

जयपुर, 14 नवम्बर। बदलते कारोबारी एवं आर्थिक परिदृश्य, नीतिगत कारणों तथा देश में रोजगार के अवसरों की स्थितियों के चलते जैन समाज में भी बड़ी संख्या में परिवारों की आर्थिक स्थिति चिंतनीय बनती जा रही है। दान-पुण्य की प्रवृत्ति के चलते आमतौर पर जैन समाज को समृद्ध और सम्पन्न समाज की दृष्टि से देखा जाता है, लेकिन वास्तविक स्थिति इससे इतर है। अब जैन समाज के ही काफी परिवार विषम आर्थिक हालातों का सामना कर रहे हैं। कई परिवारों के सामने दैनिक आजीविका का संकट है तो कई परिवार अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा या रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने में सक्षम नहीं है, इसके चलते परिवारों में बिखराव, तनाव और असंतुष्टि का स्तर तेजी से बढ़ रहा है। साथ ही आर्थिक स्थिति प्रतिकूल होने के कारण धर्म से भी जुड़ाव धीरे-धीरे कम होने लगा है।

एक अनुमान के मुताबिक देशभर में लाखों की संख्या में ऐसे जैन परिवार हैं, जिनके पास ना अच्छा कारोबार है और ना ही अच्छी नौकरियां। कई परिवार मात्र 10-15 हजार की आय पर अपना भरण-पोषण करने को मजबूर हैं। जैन समाज की छवि धनाढ्य वर्ग के रूप में होने के कारण समाज के लोग अपनी प्रतिष्ठा के चलते ऐसे व्यवसाय से भी बचते हैं जो उनके स्वाभिमान के अनुकूल नहीं है, लेकिन कई परिवार मजबूरीवश अब ठेला, थड़ी, खेती, मजदूरी सहित अन्य व्यवसाय करने को विवश हैं। अपनी प्रतिष्ठा के चलते जैन समाज के परिवार सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं ले पा रहे हैं।

समाज के ऐसे हालात चिंतन का मुख्य विषय है। अन्यथा आने वाले समय में स्थिति और विकट हो सकती है, क्योंकि आरक्षण से संबंधित नीतियों और अन्य विभिन्न कारणों से पहले ही सरकारी सेवाओं में समाज के युवाओं को उचित अवसर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं।

दूसरी तरफ हर तरह के कारोबार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने भी नई चुनौतियां पैदा की हैं। ऐसे में आवश्यक हो गया है कि समाज का प्रबुद्ध वर्ग इस दिशा में सकारात्मक सोच के साथ कदम उठाए, ताकि समाज के युवाओं को शिक्षा और रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध हों।

गौरतलब है कि हमारे बुजुर्गों और समाज के प्रगतिशील लोगों ने दूरदर्शी सोच के साथ जैन समाज की कई ऐसी संस्थाएं स्थापित की हैं, जिनका उपयोग समाज के कल्याण में किया जा सकता है। इन संस्थाओं में विभिन्न पदों पर जैन समाज के लोगों को ही नियोजित कर आर्थिक संबल प्रदान किया जा सकता है।

इन संस्थाओं में समाज के ही व्यक्ति के पदस्थापित होने से न केवल उस परिवार को आर्थिक सशक्तीकरण मिलेगा, बल्कि धर्म और संस्कृति की जानकारी के कारण संस्थाओं में भी सुधार आ सकेगा। समाज के बंधु सामाजिक संस्थाओं की गरिमा को बनाए रखने में अधिक सहयोगी होंगे। इससे नई पीढ़ी का सामाजिक जुड़ाव भी बढे़गा और वे जैन संस्कृति को गहराई से जान सकेंगे। साथ ही नई संस्थाओं के उदय का मार्ग भी प्रशस्त हो सकेगा।

समाज में पैदा हो रहे चिंताजनक आर्थिक हालातों पर संतों एवं प्रबुद्धजनों से बात की तो उन्होंने विचार व्यक्त किए कि हर जैन मंदिर में देखभाल एवं प्रबंधन के लिए जैन समाज से ही जरूरतमंद व्यक्ति को जिम्मेदारी दी जा सकती है। वह मंदिर का प्रबंधन बेहतर ढंग से देखने के साथ ही जैन साधुओं की चर्या में भी सहयोगी बन सकेगा।

ऐसा करने से जैन परम्पराओं का संरक्षण होगा और समाज में आने वाली बुराइयों पर भी अंकुश लगेगा। आज बहुत से ऐसे जैन मंदिर हैं, जहां जैन समाज द्वारा अभिषेक भी नहीं किया जाता है। सारी व्यवस्था पुजारी के भरोसे चल रही है।

इसी प्रकार समाज की ओर से निर्मित कई संत भवन समुचित देखभाल के अभाव में जीर्ण-शीर्ण हो रहे हैं। उनका सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। इसका दायित्व भी जैन समाज के युवाओं को सौंपा जाना चाहिए, ताकि संतों के प्रवास की पर्याप्त व्यवस्था सुनिश्चित हो सके तथा युवाओं को रोजगार का अवसर मिल सके।

निष्कर्ष के रूप में यही कहा जा सकता है कि जैन समाज को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए समाज को आगे आना होगा। सम्पन्न परिवारों को अपने ही समाज के लोगों को रोजगार के अवसर प्राथमिकता से उपलब्ध करवाने होंगे। उन्हें समाज की संस्थाओं में प्राथमिकता देनी होगी।

समाज की ओर से संचालित शैक्षणिक एवं अन्य संस्थानों में रियायत देकर नई पीढ़ी को आगे बढ़ाना होगा। हमारे यह छोटे-छोट प्रयास ही एक दिन समाज में नया परिवर्तन लाने में सफल साबित होंगे।

अब चिंतन का विषय की ये पहली कड़ी भी पढ़िए

1. संतों के आहार-विहार से पीछे हट रहा समाज

जयपुर, 7 नवम्बर। जैन तीर्थंकरों ने दुनिया को शांति और अहिंसा का मार्ग दिखाया और जैन संत लगातार इन सिद्धांतों को जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अणुव्रतों और कठोर सिद्धांतों की पालना के साथ ही मानवमात्र को जीवन की सही राह दिखाने के कारण जैन संतों का पूरे विश्व में विशिष्ट मान-सम्मान है।

सम्पूर्ण जैन समाज को इस पर गर्व की अनुभूति भी होती है, लेकिन चिंता का विषय है कि अब जैन समाज ही जैन साधु-साध्वियों के मान-सम्मान और गौरवशाली विरासत को बरकरार रखने में पीछे हटने लगा है। (पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें )

 

 

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