“सम्मेद शिखर पर सरकारों का रूख़, जैन समाज की भावनाओं को आहत कर रही है । यह वो पावन स्थल है जहां हमारे तीर्थंकरों ने मोक्ष लिया है । सोचिए, अगर यहां मांसाहार होगा, शराब बिकेगी, पर्यटन के नाम पर पाश्चात्य संस्कृति का नंगा नाच होगा तो भी कैसे रोकेंगे ? मुझे ये बताइए कि क्या कोई काशी, उज्जैन महाकाल या बद्रीनाथ में ऐसा कर सकता है ? ये ऐसा पावन स्थल है जिसकी पवित्रता ही जैन समाज के प्राण है । इस पूरे क्षेत्र की प्राकृतिक स्वरूप जैन धर्म के अनुकूल है । सरकारों ने भी इसे माना है कि तभी तो यहां की पर्वत श्रृंखलाएं पारसनाथ के नाम से जानी जाती है ।
हम सरकारों से सिर्फ यह कहना चाहते हैं कि जैन, समाज देश के लिए बडा योगदान देते हैं । हम कहीं भी प्रतिफल नहीं मांगते हैं । आपदा-विपदा,उत्सव,अतिवृष्टि सब में हम साथ खड़े हैं । चाहे राम मंदिर हो या कुछ और, जैन समाज हिन्दूओं के साथ खड़ा रहा है । इस मामले में हिन्दूओं को भी हमारे साथ आना चाहिए । आप स्वयं देखिए कि जैन समाज के आंदोलन में कहीं भी पत्थरबाजी,तोड़-फोड़ नहीं हुई है । जैन समाज अपने हक़ की लड़ाई अहिंसा के मार्ग पर चल कर लड़ रहा है । शुरु में, राज्य सरकार जिसमें रघुबरदास जी सरकार थी, उन्होनें प्रस्ताव बनाया और केन्द्र ने मंजूरी दे दी । दोनों वक्त बीजेपी की सरकार की थी । ख़ैर, उस वक्त जो हुआ वो हुआ लेकिन अब तो इसे रोकना चाहिए । समस्त जैन समाज सड़कों पर है । सम्मेद शिखर जी ही नहीं, पालिताना में वहां पर भी दूसरे लोग अतिक्रमण कर रहे हैं । गिरिनार में पवित्र स्थान में दर्शन नहीं करने दिया जा रहा है । सरकारें अपने वोटों पर देख रही है । सरकार को समाज की भावनाएं आहत नहीं करनी चाहिए । सम्मेद शिखर समेत हमारे सभी तीर्थों के लिए हमारा एक-एक बच्चा मरने को तैयार है ।
जैन समाज के लोगों ये यही अपील करना चाहता हूं कि हम अपने हक के लिए लड़ेंगे, हमें अपना हक़ चाहिए । हमारे जैन धर्म पवित्रतम स्थान है । वह सिर्फ और सिर्फ जैनियों का स्थान है । आंदोलन करें लेकिन अब तक जिस तरह से अहिंसात्मक आंदोलन चल रहा है । उसी रूप में इसे आगे बढ़ाना है । झारखंड के स्थानीय लोग, जो सम्मेद शिखर जी के आस-पास रहते हैं वो भी एक तरह से हमारे परिवार का ही हिस्सा है । उनके पूर्वज, हमारे पूर्वज वहां सदियों से रहते और आते-जाते रहे हैं । देश भर से जैन श्रद्धालू आते हैं तो वहां की धर्मशालाओं, बाजारों में, डोली वालों को यहां रोजगार मिलता है । इसकी पवित्रता बनी रहेगी तभी रोजगार के साधन मिलते रहेंगे । सभी की भलाई इसी में हैं कि हम मिलकर तीर्थराज को उसका गौरव लौटाएं । समाज के अलग-अलग संगठन आंदोलन कर रहे हैं । मेरे विचार से अगर सभी का उद्देश्य एक है तो आंदोलन के कई रास्ते हो सकते हैं । मुबंई का आंदोलन आप सभी लोगों ने देखा । जैन समाज का इतना बड़ा आंदोलन इतिहास में बहुत कम हुआ है । साधु-संतों ने अपनी भावनाएं प्रकट की, सबने मिलकर आयोजन को सफल बनाया है ।
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