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ध्वजारोहण के साथ विश्व शांति महायज्ञ प्रारंभ

री तिलैया (कोडरमा) राजकुमार अजमेरा। जैन संत गुरुदेव विशल्य सागर जी के सानिध्य में जैन समाज के द्वारा भव्य ध्वजारोहण के साथ समवशरण कल्पद्रुम महामंडल विश्व शांति महायज्ञ प्रारंभ हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत में सम्मेद शिखर से यज्ञ विधान के लिए लाई गई भगवान की 100 प्रतिमा का महामस्तकाभिषेक विश्व शांति मंत्रों से किया गया। श्री दिगम्बर जैन मंदिर में विराजमान प. पू. राष्ट्रसंत गणाचार्य श्री 108 विरागसागर जी महामुनिराज के परम प्रभावक शिष्य झारखण्ड राजकीय अतिथि जिनश्रुत मनीषी श्रमण मुनि श्री विशल्यसागर जी मुनिराज के पावन ससंघ सानिध्य में पानी टंकी रोड स्थित नया मंदिर में शांति धारा का सौभाग्य ओम प्रकाश विनीत सेठी को प्राप्त हुआ। तत्पश्चात 25 समवशरण में चार-चार मूर्तियों को विराजमान किया गया। ध्वजारोहणकर्ता झाझंरी निवास से बग्गी में बैठाकर पूरा नगर भ्रमण करते हुए कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे, जहां समाज के द्वारा स्वागत कर मंडल स्थल पर परमपूज्य मुनि श्री 108 विशल्य सागर जी महामुनिराज के मुखारबृन्द से ध्वजारोहण कार्यक्रम ध्वजारोहण भारत के 5 राज्यों के प्रतिनिधित्व करने वाले विशेष समाज श्रेष्ठि मुख्य ध्वजारोहणकर्ता भारत वर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष

गजेंद्र जी पाटनी कुनकुरी, झारखंड के नरेन्द्र जी संतोष जी पांड्या, रांची के देवेन्द्र जी उषा जी अजमेरा, गया

ब के श्री अजित जी अजमेरा,धुलियान उड़ीसा के राहुल जी रश्मि जी जैन,कटक के बाद कुनकुरी छत्तीसगढ़ से आए रतन लाल जी बड़जात्या के कर कमलों से मंडप का उद्घाटन हुआ। इसके साथ ही महिला समाज के द्वारा भक्ति कार्यक्रम प्रस्तुत की गई। प.पू. विशल्यसागर जी मुनिराज ने समवशरण में विराजमान होकर कहा कि चौबीस समवशरण महामण्डल विधान एक ऋद्धि-सिद्धि प्रदायक है। सिद्धि में महासिद्धि है, जिसको भक्ति पूर्वक करने से जीवन में पुण्य को बढ़ाने वाला है। चौबीस भगवान की आराधना ,तीर्थंकर प्रकृति का बंध कराने में कारण है और परम्परा से निर्वाण का कारण भी है। उन्होंने कहा कि दान और पूजा श्रावक के दो मुख्य कर्तव्य हैं। इनके बिना श्रावक शोभा को प्राप्त नहीं होता। गृहस्थ कार्यों में संचित पाप कर्मों को धोने के लिए जिनेंद्र भगवान की भक्ति, अर्चना एक मुख्य साधन है। हमें हमेशा प्रभु और गुरु की वंदना एवं भक्ति अनुष्ठान करते रहना चाहिए। भक्ति-अनुष्ठान से पाप – ताप -संताप दूर होते है एवं स्तुति वंदना करने से विशेष पुण्य का संचय होता है। भगवान की भक्ति समस्त मनोरथ को पूर्ण करने वाली होती है। दान व पूजन करते रहने से गृहस्थ धर्म शोभायमान होता है। आत्मा को पवित्र करने का साधन है भक्ति-अनुष्ठान।इसके बाद सभी आगंतुकों का परिचय सुरेश झांझरी ने कराया। सभी का स्वागत कर सम्मान कर प्रतीक चिह्न दिया गया। दिल्ली से आये कोडरमा समाज के समाज श्रेष्ठी किशोर पांड्या, महेश सेठी, रांची से धर्म चंद जी रारा, संजय छाबड़ा का भी स्वागत समाज के अध्यक्ष प्रदीप पांड्या, मंत्री ललित सेठी, विधान संयोजक राज छाबड़ा, नरेंद झांझरी,दिलीप बाकलीवाल ने किया। यह जानकारी जैन समाज के मीडिया प्रभारी राजकुमार अजमेरा और नवीन जैन ने दी।

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