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संथाल आदिवासी समाज के बिना जैन तीर्थयात्री आधे-अधूरे*- महामुनि प्रसन्नसागर जी: सम्मेद शिखर को लेकर सोशल मीडिया पर टिप्पणी न करने का आग्रह

 


सारांश 

जैन समाज के प्रमुख संतों ने सम्मेद शिखर को लेकर चल रही बहस को एक नई दिशा दिखानी शुरू कर दी हैं । इसकाउदाहरण आज जैन संत अन्तर्मना १०८ श्री प्रसन्नसागर जी महामुनिराज की मौन वाणी से निःसृत हुआ। महामुनिराज ने संथालआदिवासियों की प्रशंसा की है । तीर्थराज में उनके कथनों का संकलन कर रहे मीडिया प्रभारी और श्रीफल जैन न्यूज़ के सहयोगीराजकुमार अजमेरा ने इस बारे में विस्तार से बताया । पढ़िए ..


गुरुदेव ने मौन वाणी में कहा कि *किसी ने प्रश्न पूछा था- गुरुदेव, घर पर बहुत अशान्ति रहती है, क्या करें-? हमने कहा- कुछ मत करो, आप खुद शान्त हो जाओ, शान्ति अपने आप हो जायेगी।

*महाराज श्री ने कहा कि बात इतनी सी थी कि तीर्थराज सम्मेद शिखर पर्वत की स्वच्छता, पवित्रता, धार्मिकता को बरकरार रखने केलिए सरकार से अनुरोध किया था कि इसे पर्यटन स्थल नहीं बनाया जाये। लेकिन छोटी सी बात कहां से कहां पहुंच गई।

आचार्य श्री नेमौन वाणी में बताया कि संथाल आदिवासी समाज, जो वर्षों- वर्षों से पर्वत की सुरक्षा, व्यवस्था और संवर्द्धन में पारसनाथ भगवान एवंमरांग बुरू के प्रति अटूट आस्था विश्वास रखने वाले भक्त सदियों से पर्वत पर आते हैं, दर्शन वन्दन करके अपने भाग्य को सौभाग्य मेंतब्दील करके उतर जाते हैं। उन्होंने कहा कि संथाल आदिवासी समाज के बिना जैन तीर्थ यात्री आधे-अधूरे हैं क्योंकि यही लोग संपूर्णजैन समाज के यात्रियों को पर्वत की वंदना करवाते हैं और आराम से नीचे पहुंचा देते हैं ।

संथाल आदिवासी समाज के लोग रखते हैं ईमानदार,समझदार और समर्पित भाव-

आचार्य श्री ने मौन वाणी में कहा कि ये पहली बार था जब जैन समाज के बड़े,बुजुर्ग,माता-बहनें,बच्चे-बच्चियां सम्मेद शिखर कीपवित्रता,स्वच्छता और संरक्षण के लिए आंदोलित हुए । आचार्य श्री ने सम्मेद शिखरजी की व्यवस्थाओं का जिक्र करते हुए कहा कि वेदस माह से स्वर्णभद्र कूट पर विराजित हैं। अगर २४ घंटे कोई मेरी सेवा,सुरक्षा और व्यवस्था में तत्पर हैं वो संथाल आदिवासी समाज केलोग हैं।

पूरे पर्वत पर एक भी जैन कर्मचारी नहीं है । जो एक दो पुजारी हैं वो सराग जैन हैं, जिनको णमोकार मंत्र के अलावा कुछ नहींआता । जैन समाज कद,पद और अधिकार के लिेए करोड़ो रूपए बर्बाद कर देगा लेकिन तीर्थों की व्यवस्थाओं में हम न जाने क्यों पीछेरह जाते हैं ।

जैन परंपराओं का पालन कर धार्मिक लाभ में सहभागी बनें जैन श्रावक – 

प्रसन्नसागर जी की मौन वाणी में 08 जनवरी 2023 को गिरिडीह जिला प्रशासन, सम्पूर्ण जैन समाज, जनप्रतिनिधि और आदिवासीसमाज के प्रतिनिधियों की एक सफल सार्थक बैठक का जिक्र हुआ । जिसमें कहा गया कि सभी की भावनाओं का सम्मान करते हुयेतीर्थराज सम्मेद शिखर पारसनाथ पर्वत पर, जैन समाज और संथाल आदिवासी समाज पहले की तरह धार्मिक, नैतिक, व्यवहारिक रीतिरिवाज और परंपरा का पालन करते हुये धार्मिक लाभ में सहभागी बनेंगे।

संथाल आदिवासी वंदना मार्ग पर जैन माता-बहनों के रक्षक –

आचार्य श्री ने कहा कि सम्मेद शिखर क्षेत्र में सभी कर्मचारी और आदिवासी समाज के समर्पण,सेवा और अखंड विश्वास केकारण ही जैन समाज की माताएं,बहनें अकेले अपनी धार्मिक यात्रा पूरी करती हैं। इन्हीं के भरोसे महिलाएं वन्दना के लियेनिसंकोच, निडर होकर चली जाती हैं। अन्यथा आज का माहौल किसी पर भरोसा करने जैसा नहीं है।

आचार्य श्री ने कहा कि  तीर्थराज सम्मेद शिखर पर्वत की 27 किलोमीटर की पद यात्रा, इतनी दुर्गम और कठिन है कि अकेले अपने दम पर इसे पूरा करपाना संभव ही ना हो पाता। आदिवासी आज से नहीं बल्कि सदियों से इस यात्रा में हमारे सहयोगी रहे हैं, मददगार बने हैं ।इसलिए ऐसी कोई बात न करें कि जिन बातों से मन की अशान्ति बढ़े, आपसी रिश्तों में दरार पड़े, मन परेशान हो।

वैसा कोई भीकार्य ना करें और ना किसी को करने दें। तीर्थराज सम्मेद शिखर पर्वत पर दोनों पक्ष -एक दूसरे के बिना आधे अधूरे हैं। संत, सरिता, सूरज, धर्म और हवा पर कभी किसी एक का एकाधिकार हो ही नहीं सकता। सबका समान अधिकार है।

जैन समाज का कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर टीका-टिप्पणी न करे

आचार्य श्री की मौन वाणी में संदेश था कि  तीर्थराज सम्मेद शिखर जी की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए कोई भी जैन व्यक्तिकिसी भी प्रकार की टीका टिप्पणी सोशल मीडिया पर न करें। आचार्य श्री ने कहा कि स्थानीय आदिवासी समाज के साथ सहयोग केबिना आप हम ऐसे ही हैं जैसे धूप में टमाटर, बरसात में पापड़। इसलिए आपस में प्रेम, सदभाव बना रहे।

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