समाचार

गया के श्रावकों को श्रमण मुनि विशल्यसागर जी का सानिध्य: श्री 1008 पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर में आयोजन

ain-news

 

राजकुमार अजमेरा- झारखंड सरकार की ओर से राजकीय अतिथि गुरुदेव जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हम सभी कल्याण के पथ पर चलें । अपनी आत्मा को परमात्मा बना सके । अपने अंदर की आत्मा की शक्ति को प्रकट कर सकें ।

इसी भावना को लेकर के सभी आचार्य भगवान अकलंक स्वामी द्वारा विरचित ग्रंथ स्वरूप सम्बोधन जो हमारे जीवन के लिए पथ भी देता है पाथेय भी देता है । हमारे जीवन के लिए मार्ग भी देता है और मार्ग दर्शन भी करता है, प्रकाश भी देता है । जीवन के लिए विकास भी करता है, यह अनुसंधान ग्रंथ है ।

आचार्य अकलंक देव जैन धर्म के प्रकाण्ड विद्धान

गाथाओं का प्रमाण दिया जाता है प्रमाण कहा जाता है जैन वाड़मय में, जैन प्रक्रांडों में अकलंक स्वामी का इतिहास भूला नहीं सकता । वह एक पाठी थे एक बार पढ़ लेने से जिन्हे याद हो जाता था ।

जिनकी प्रेज्ञा,मेघा विशाल थी जिन्होंने अपना जीवन जैन धर्म के लिए सर्मापित कर दिया था । ऐसे आचार्य का ग्रंथ हम यदि पढ़ते है तो हमारी भी मेघा,प्रेज्ञा विकास हो जाएंगे ।

लोग कह है कि याद नही होता लेकिन मैं कहता हूँ कि यदि इस ग्रंथ को बड़ी भक्ति भावना से पढ़ना चालू करता है तो पक्का बुद्धि का विकास हो जाऐगा । यह स्वरुप सम्बोधन ग्रंथ अपने ही स्वरुप का बोध कराने वाला है ।

आप को यह कंटेंट कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
+1
0
+1
0
+1
0

About the author

Shreephal Jain News

Add Comment

Click here to post a comment

× श्रीफल ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें