जयपुर. मनीष गोधा । देश भर का जैन समाज और खासतौर पर दिगम्बर जैन समाज कई तरह के रचनात्मक कार्य करता है, जिनमें से ज्यादातर धार्मिक कार्यक्रम होते हैं जैसे कि पंचकल्याण प्रतिष्ठाएं, गजरथ महोत्सव, विभिन्न विधान आदि। धर्म की प्रभावना की दृष्टि से यह अच्छा भी है और जरूरी भी है, लेकिन धर्म की प्रभावना सिर्फ धार्मिक कार्यक्रमों से ही हो यह जरूरी नहीं है। इसके दूसरे तरीके भी हैं। समाज की कई संस्थाएं हैं जो विभिन्न समाजोपयोगी प्रकल्प चलाती हैं।
इन्हीें में से एक जरूरी प्रकल्प है जैन छात्रावासों की स्थापना, जिसकी आज समाज को बहुत ज्यादा जरूरत है। हम यदि एक नया मंदिर बना रहे हैं तो इस बात पर विचार जरूर करें कि उसके साथ जहां तक सम्भव हो एक छात्रावास का निर्माण भी किया जाए और अलग छात्रावास ना बना सके तो जो धर्मशाला बना रहे हैं, उसका एक विंग छात्र-छात्राओं के लिए आरक्षित करें।
शिक्षा और कामकाज की दृष्टि से आज समाज के छात्र-छात्राओ और युवक-युवतियो को दूसरे शहरों में पढ़ने जाना पड़ता है। यह एक आवश्यकता जैसी हो गई है।
छोटे शहरों और कस्बों के बच्चों के लिए तो यह इसलिए भी जरूरी हो गया है कि उनके यहां स्तरीय उच्च शिक्षण संस्थाएं नहीं होती हैं और उन्हें अपने अच्छे कॅरियर के लिए घर छोड़ना ही पड़ता है, लेकिन जैसे ही वे बडे़े शहर या किसी दूसरे शहर में जाते हैं, उनके सामने सबसे बडी समस्या आवास की होती है।
हर छात्र-छात्रा को सम्बन्धित कॉलेज या युनिवर्सिटी का हॉस्टल मिल जाए यह जरूरी नहीं है, क्योंकि वहां काफी आवेदन पहले ही होते हैं। ऐेसे मंे जिन्हें सम्बन्धित शिक्षण संस्थान का हॉस्टर नहीं मिलता वे किसी किराए के मकान, किसी पीजी या किसी ऐसे ही दूसरे हॉस्टल में रहते हैं।
यहां ना सिर्फ उन्हें पैसा ज्यादा देना पड़ता है, बल्कि बहुत सी चीजों में एडजस्ट करना पडता है जबकि जैन परिवारों के बच्चे ऐसे वातावरण में बड़े होते हैं कि उनके लिए एडजस्ट करना आसान नहीं होता। सबसे ज्यादा भोजन आदि को लेकर आती है और उन्हें बहुत कुछ ऐसा भी खाना पड़ जाता है जो उनके घर-परिवार में देखा ही नहीं गया था।
सबसे ज्यादा समस्या छात्राओ को होती है और बहुत से अभिभावक तो इसी वजह से अपनी बेटियों को दूसरे शहर नहीं भेजते कि वहां उन बच्चियों को सुरक्षित वातावरण मिलने की कोई गारंटी नहीं होती और जो हिम्मत कर के बच्चियों को भेज भी देते हैं, उन्हें बच्चियों की ंिचता हमेशा बनी रहती है।
इस संदर्भ मंें गुजरात के वडोदरा में संचालित एक छात्रावास का उदाहरण देना चाहूंगा। यहां श्री दिगम्बर जैन केलवाणी सहायक मंडल की ओर से एक जैन छात्रावास संचालित किया जाता है। यहां सिर्फ जैन समाज के बच्चों को ही प्रवेश दिया जाता है और बहुत कम राशि में बच्चों के लिए डबल शेयरिंग कमरे उपलब्ध हैं।
यह संस्था यहां लम्बे समय से चल रही है। छात्रावास कोई बहुत बडा नहीं है। दस-बारह कमरों का ही छात्रावास है, लेकिन रख-रखाव अच्छा है और वडोदरा में कोई जैन बच्चा पढना चाहता है तो बहुत कम खर्च में वहां रह कर पढाई कर सकता है। यहां सिुर्फ रहने की सुविधा मिलती है, लेकिन इतना भी मिल जाए तो बहुत है, क्योंकि यह छात्रावास शहर के बीचोंबीच है।
कुछ इसी तरह का प्रयास हर शहर में होना चाहिए। कोई जरूरी नहीं कि बहुत बडे छात्रावास बनाए जाएं। एक बडा छात्रावास बनाने के बजाए यदि चार-पांच छोटे-छोटे छात्रावास भी हों तो बच्चों को बहुत सुविधा हो सकती है।
यह भी किया जा सकता है कि मंदिर के साथ यदि धर्मशाला का निर्माण किया जा रहा है तो उसका एक विंग छात्रों के लिए आरक्षित कर दिया जाए। हमारे बहुत से मंदिरों के साथ पहले से ही धर्मशालाएं बनी हुई हैं और लगभग पूरे साल ये खाली पडी रहती हैं।
इनके कुछ कमरे छात्रो के लिए आरक्षित कर दिए जाएं तो धर्मशाला को नियमित आय भी होगी और बच्चों को मंदिर के पास ही रहने की जगह मिल सकेगी जहां वे जैन संस्कारो के साथ रहते हुए पढाई कर सकेंगे।
जयपुर, इंदौर, भोपाल, जबलपुर, कोटा, अजमेर, दिल्ली, मुम्बई, बंगलौर, पूना, अहमदाबाद, उदयपुर जैसे कई शहर हैं जहां जैन समाज के बच्चे बडी संख्या में पढने के लिए जाते हैं। इन शहरों के जैन समाजों को जैन छात्र-छात्राओं के लिए इस तरह की व्यवस्था पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
यह सही है कि हमें हमारे बच्चो को कुएं का मेंढक नहीं बनाना है और उन्हें वास्तविक जीवन की हर तरह की चुनौती के लिए तैयार करना है, लेकिन उच्च शिक्षा का समय हर छात्र या छात्रा के लिए बहुत महत्वपूर्ण समय होता है। यही वह समय भी होता है जब संस्कारों की असली परीक्षा भी होती है और जरा सी गलत संगत बच्चे या बच्ची का भविष्य खराब कर सकती है।
ऐसे में पढाई के लिए एक सुरक्षित वातावरण मिल जाए तो यह किसी वरदान से कम नहीं है। वैसे भी एक संस्कारित जैन छात्र या छात्रा ही भविष्य में जैन धर्म की प्रभावना अच्छे ढंग से कर सकत है, इसलिए इस विषय में सभी समाजजन और संस्थाएं गम्भीरता से विचार करें।