शब्द के बगैर मानव गूंगा ही है साथ ही बेकार और आधारहीन है। मुनि विनय कुमार आलोक कहते है-‘शब्दों की ताकत, तलवार और गोली की ताकत से भी अधिक होती है। शब्दों के प्रभाव की सीमा को परिभाषित करना मुश्किल है। वेद में तो शब्द को ब्रह्म कहा गया है। शब्दों का यदि समझदारी के साथ उचित उपयोग किया जाए, तो आधी सफलता पहले से ही तय हो जाती है। इसके उलट शब्दों के गलत इस्तेमाल से महाभारत जैसी स्थितियां निर्मित हो जाती हैं।‘ मुनिश्री प्रणम्य सागरजी महाराज की पुस्तक खोजो मत पाओ व अन्य ग्रंथों के माध्यम से श्रीफल जैन न्यूज Life Management निरंतरता लिए हुए है। पढ़िए इसके 34वें भाग में श्रीफल जैन न्यूज के रिपोर्टर संजय एम तराणेकर की विशेष रिपोर्ट….
शब्द की ताकत शस्त्र से ज्यादा होती है
शब्दों में ताकत नहीं है किन्तु शब्दों से बढ़कर किसी शस्त्र में भी ताकत नहीं है। शब्दों में तेज होता है, शब्दों में प्रेम होता है, शब्दों में पराक्रम होता है और शब्दों में आग भी होती है। व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया में शब्दों का बहुत बड़ा योगदान है। आपने देखा होगा कि व्यक्ति के बारे में लोग वैसी धारणा बना लेते हैं, वैसा ही सोचते हैं जैसा वह बोलता है। कुल मिलाकर अच्छा या बुरा व्यक्ति वाणी से पहचाना जाता है और उसी रूप में जाना जाता है। अधिक बोलने वाला अपने आपको भले ही कहता है कि ‘मैं स्पष्ट वक्ता हूँ‘ परन्तु उसके स्पष्ट वचन सच होकर भी उसे बुरा बना देते हैं। इसका कारण यह नहीं कि लोग सच सुनना पसन्द नहीं करते हैं। लोग सच पसन्द करते हैं किन्तु बड़बोलापन पसन्द नहीं करते हैं। ऐसे लोगों के सच को भी लोग यह कहकर छोड़ देते हैं कि ‘वह तो मुँहफट है‘, ‘उसके मुँह पर कन्ट्रोल नहीं है‘ इत्यादि। इसलिए मौन रहना सरल है किन्तु सावधानी के साथ बोलना बहुत कष्ट साध्य है।
सब जानते हैं कि द्रोपदी के शब्दों ने महाभारत करा दिया था। द्रोपदी ने दुर्याेधन पर मजाक में व्यंग्य कसा था कि ‘अंधों के तो अंधे ही होते हैं।‘ मात्र इतने ही शब्दों ने विद्वेष की महाअग्नि प्रज्वलित कर दी थी। बाद में शब्दों के छल से ही द्रोणाचार्य को निष्क्रिय बनाया गया, जब उन्हें यह संदेश सुनाया कि अश्वत्थामा मारा गया है। हनुमान ने सीता को विश्वास दिलाया था कि वह राम के पास से आये हैं, आपका हित करने की हमारी इच्छा है। एक अपरिचित व्यक्ति होकर भी राक्षसों की लंका से बाहर निकालकर ले जाने का विश्वास सीता को हो गया था क्योंकि हनुमान के वचनों से सीता ने उनके निश्छल हृदय की पहचान कर ली थी। सीता को विश्वास दिलाने के लिए हनुमान ने राम के प्रति भक्ति भरे वचनों का प्रयोग किया। सीता को अपनी शक्ति का विश्वास कराने के लिए हनुमान ने पराक्रम, तेज से भरी वाणी बोली। वक्ता की कुशलता इसी में है कि वह परिस्थिति के अनुसार अपनी वाणी को परिवर्तित कर सके। वाणी का यह संतुलन मन के संयम से आता है। परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन छल नहीं है अपितु एक वाक् कौशल है। जब हम किसी की परिस्थिति का अपने स्वार्थ से कोई फायदा उठाना चाहते हैं तब वह छल कहलाता है।
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