राजस्थान के संत समाचार

राजस्थान के जैन संत 12 बारडोली के संत श्री कुमुदचंद्र जी का साहित्य को अमूल्य योगदान: उनकी गुजरात और राजस्थान में अच्छी प्रतिष्ठा थी


राजस्थान को जैन संतों की भूमि के रूप में ख्याति अर्जित है। प्राचीन काल में भी यहां कई दिव्य संतों का जन्म और भ्रमण हुआ है। संत श्री कुमुदचंद्र जी ऐसे ही संत थे। वे संवत 1656 तक भट्टारक रहे। इतने लंबे समय में इन्होंने देश के अनेक स्थानों पर विहार किया। जन साधारण को धर्म आध्यात्म का पाठ पढ़ाया। वे अपने समय के असाधारण संत थे। उनकी गुजरात और राजस्थान में अच्छी प्रतिष्ठा थी। जैन साहित्य एवं सिद्धांत का उन्हें अप्रतिम ज्ञान था। जैन धर्म के राजस्थान के दिगंबर जैन संतों पर एक विशेष शृंखला में 12वीं कड़ी में श्रीफल जैन न्यूज के उप संपादक प्रीतम लखवाल का संत श्री कुमुदचंद्रजी के बारे में पढ़िए विशेष लेख…..


इंदौर। बारडोली गुजरात का प्राचीन नगर है। वर्ष 1921में यहां सरदार वल्लभ भाई पटेल ने स्वतंत्रता के लिए सत्याग्रह का बिगुल बजाया था। बाद में वहीं की जनता ने उन्हें सरदार की उपाधि दी थी। 350 वर्ष पूर्व भी यह नगर आध्यात्म का केंद्र था। यहां पर ही संत श्री कुमुदचंद्र को उनके गुरु भट्टारक श्री रत्न कीर्ति जी एवं जनता ने भट्टारक पद पर आरूढ़ किया थ्ज्ञा। इन्होंने यहां के निवासियों में धार्मिक चेतना जाग्रत की। उन्हें सद्चरित्रता, संयम एवं त्यागमय जीवन अपनाने पर बल दिया। इन्होंने गुजरात एवं राजस्थान में साहित्य, आध्यात्म एवं धर्म की त्रिवेणी बहायी। संतश्री कुमुदचंद्रजी वाणी से मधुर, शरीर से सुंदर तथा मन से स्वच्छ थे। जहां भी उनका विहार होता जनता उनके पीछे हो जाती।

संतश्री कुमुदचंद्रजी का जन्म गोपुर गांव में हुआ था

शिष्यों ने अपने गुरु की प्रशंसा में विभिन्न पद लिखे। संयमसागर ने उनके शरीर को 32 लक्षणों से सुशोभित, गंभीर बुद्धि के धारक तथा वादियों के पहाड़ को तोड़ने के लिए व्रज समान कहा है। उनके दर्शन मात्र से ही प्रसन्नता होती थी। वे पांच महाव्रत तेरह प्रकार के चारित्र को धारण करने वाले और 22 परिषह को सहने वाले थे। एक दूसरे शिष्य धर्मसागर ने उनकी पात्र केशरी, जंबुकुमार, भद्रबाहु एवं गौतम गणधर से तुलना की है। उनके विहार के समय कुंकुम छिड़कने तथा मोतियों का चौक पूरने तथा बधावा गाने के लिए भी कहा जाता था। जीवों की दया करने के कारण लोग उन्हें दया का वृक्ष कहते थे। विद्याबल से उन्होंने अनेक विद्वानों को अपने वश में कर लिया था। संतश्री कुमुदचंद्रजी का जन्म गोपुर गांव में हुआ था। पिता का नाम सदाफल एवं माता का नाम पद्माबाई था। इन्होंने मोढ़ वंश में जन्म लिया था। वे जन्म से ही होनहार थे। युवावस्था से पूर्व ही उन्होंने संयम धारण कर लिया था। अध्ययन की ओर विशेष ध्यान था।

कुमुदचंद्र जी बारडोली के संत कहलाने लगे

ये रात-दिन व्याकरण, नाटक, न्याय आगम एवं छंद अलंकार शास्त्र आदि का अध्ययन करते थे। गोम्मट खार आदि ग्रंथों का इन्होंने विशेष अध्ययन किया था। विद्यार्थी अवस्था में ही ये भट्टारक रत्नकीर्तिजी के शिष्य बन गए थे। बारडोली में श्री रत्नकीर्ति जी ने इनको अपना पट्ट स्थापित किया था और संवत 1656 वैशाख मास में इनका जैेनों के प्रमुख संत भट्टारक के पद पर अभिषेक कर दिया। यह सारा कार्य संघपति कान्हजी, संघ बहन जीवादे, सहस्त्रकरण और उनकी धर्मपत्नी तेजलदे, भाई मल्लदास, बहन मोहनदे, गोपाल आदि की उपस्थिति में हुआ। तभी से कुमुदचंद्र जी बारडोली के संत कहलाने लगे थे।

सभी रचनाएं राजस्थानी भाषा में हैं

कुमुदचंद्रजी आध्यात्मिक एवं धार्मिक संत होने के साथ ही साहित्य के परम आराधक थे। अब तक इनकी छोटी-बड़ी 28 रचनाएं और 30 से अधिक पद प्राप्त हो चुके हैं। ये सभी रचनाएं राजस्थानी भाषा में हैं। जिन पर गुजराती का भी प्रभाव है। ऐसा माना जाता है कि ये चिंतन,मनन और धर्मोपदेश के अतिरिक्त अपना सारा समय साहित्य सृजन में लगाते थे। नेमिनाथ के तारणद्वार पर आकर वैराग्य धारण करने की अद्भुत घटन से ये अपने गुरु रत्नकीर्ति जी के सामन बहुत प्रभावित थे। इसलिए इन्होंने नेमिनाथ और राजुल पर कई रचनाएं लिखी हैं। उनमें नेमिनाथ बारहमासा,नेमिश्वर गीत, नेमिजिन गीत आदि उल्लेखनीय है।

संतश्री कुमुदचंद जी का शिष्य परिवार

संत श्री कुमुदचंद्र जी संवत 1656 तक भट्टारक रहे। इतने लंबे समय में इन्होंने देश के अनेक स्थानों पर विहार किया। जन साधारण को धर्म आध्यात्म का पाठ पढ़ाया। वे अपने समय के असाधारण संत थे। उनकी गुजरात और राजस्थान में अच्छी प्रतिष्ठा थी। जैन साहित्य एवं सिद्धांत का उन्हें अप्रतिम ज्ञान था। वैसे तो भट्टारकों के बहुत से शिष्य हुआ करते थे। इनमें आचार्य, मुनि, ब्रह्मचारी, आर्यिका आदि होते थे। अभी जो रचनाएं उपलब्ध हैं। उनमें अभयचंद, ब्रह्मसागर, धर्मसागर,संयमसागर, जयसागर, गणेशसागर आदि के नाम प्रमुख है। ये सभी शिष्य हिन्दी ओर संस्कृत के अच्छे विद्वान थे।

आप को यह कंटेंट कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
+1
0
+1
0
+1
0

About the author

Shreephal Jain News

Add Comment

Click here to post a comment

× श्रीफल ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें