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सिद्धों की आराधना से अशुभ कर्मों का क्षय होता है- जैनाचार्य ज्ञेयसागर : ज्ञानतीर्थ में विधान का हुआ समापन


ज्ञानतीर्थ जैन मंदिर में आठ दिवसीय श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान का आयोजन 8 से 15 जनवरी हुआ । विधान के समापन पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए सप्तम पट्टाचार्य श्री ज्ञेयसागर जी महाराज ने कहा की भक्ति एवम श्रद्धा पूर्वक की गई सिद्ध परमेष्ठि की पूजन अशुभ कर्मो का क्षय करती है । पढ़िए मनोज नायक की रिपोर्ट ।


मुरैना । सिद्धों की आराधना से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है । भक्ति एवम श्रद्धा पूर्वक की गई सिद्ध परमेष्ठि की पूजन अशुभ कर्मो का क्षय करती है । सर्वप्रथम सती मैना सुंदरी ने सिद्धचक्र विधान किया था । उक्त विधान के पुण्य से राजा श्रीपाल एवम उसके साथियों का कुष्ठ रोग दूर हुआ था । तभी से सिद्धचक्र विधान की महिमा प्रचलित है । श्री सिद्धचक्र विधान आठ दिन का होता है, सभी लोग आठों दिन भक्तिभाव से सिद्ध परमेष्ठि को अर्घ समर्पित करते हैं । सभी श्रावकों को अपने जीवनकाल में एकबार सिद्धचक्र का विधान अवश्य करना चाहिए । उक्त उद्गार सप्तम पट्टाचार्य श्री ज्ञेयसागर जी महाराज ने ज्ञानतीर्थ जैन मंदिर में सिद्धचक्र महामंडल विधान के समापन पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।

8 जनवरी से 15 जनवरी तक हुआ विधान
धौलपुर – आगरा हाइवे पर स्थित श्री दिगम्बर जैन ज्ञानतीर्थ क्षेत्र जिन मंदिर में दिगंबराचार्य श्री ज्ञेयसागर महाराज, मुनिश्री ज्ञातसागर महाराज, मुनिश्री नियोगसागर, क्षु.श्री सहजसागर महाराज के पावन सान्निध्य एवम प्रतिष्ठाचार्य पंडित राजेंद्र शास्त्री मगरोनी, महेंद्रकुमार शास्त्री मुरेना के आचार्यत्व में आठ दिवसीय श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान का आयोजन 08 जनवरी से 15 जनवरी तक पुण्यार्जक राजकुमार, विजय, विमलेश, जिनेंद्र, अनिल, संतकुमार जैन इंदुरिख्या परिवार जौरा ने कराया था ।

समापन पर हुआ विश्व शांति की कामना के साथ महायज्ञ
ब्रह्मचारिणी बहिन अनीता दीदी, मंजुला दीदी, ललिता दीदी के निर्देशन में विधान में प्रतिदिन सिद्ध परमेष्ठि को अर्घ अर्पित किए गए । विधान के अंतिम दिन विश्व शांति की कामना के साथ महायज्ञ किया गया । महायज्ञ के पश्चात श्री जिनेंद्र प्रभु को पालकी में विराजमानकर भव्य चल समारोह निकाला गया । बैंड बाजों के साथ श्री जिनेंद्र प्रभु को पांडुक शिला पर विराजमान किया गया । मुकुट – हार, आभूषणों से सुसज्जित इंद्रो द्वारा वीतरागी प्रभु का स्वर्ण कलशों द्वारा जलाभिषेक किया गया । विधान के मध्य प्रतिदिन शाम को महाआरती, शास्त्र सभा का आयोजन किया गया । भजन गायक एवम संगीतकार मनीष जैन एंड पार्टी द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए । विधान के समापन पर पुण्यार्जक इंदुरिख्या परिवार द्वारा सभी अथितियों का सम्मान किया गया एवम सभी के लिए सामूहिक वात्सल्य भोज की व्यवस्था की गई । उक्त विधान में स्थानीय समाज सहित जोरा, बांमोर, सुमावली, धौलपुर के सैकड़ों बंधुओं ने भाग लेकर पुण्यार्जन किया ।

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