दोहों का रहस्य समाचार

दोहों का रहस्य -74 सच्चे कर्म, भक्ति और आत्मिक साधना का फल कभी व्यर्थ नहीं जाता : समय आने पर हमें हमारा उचित फल अवश्य मिलेगा


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की 74वीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


कबीर कमाई आपनी कबहूं न निष्फल जाय।

सात समुद्र आड़ा पड़े, मिले अगाड़ी आय।।


कबीरदास जी के इस प्रसिद्ध दोहे का अर्थ है कि सच्चे कर्म, भक्ति और आत्मिक साधना का फल कभी व्यर्थ नहीं जाता, चाहे कितनी भी बाधाएं क्यों न आएं। यहाँ “कमाई” शब्द सांसारिक धन के बजाय सत्कर्म, भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान को दर्शाता है।

कबीरदास जी यह स्पष्ट करते हैं कि जब कोई व्यक्ति सच्चे मन से धर्म, सत्य और भक्ति के मार्ग पर चलता है, तो उसे प्रारंभ में संघर्ष और कठिनाइयाँ सहनी पड़ती हैं। लोग उपहास उड़ा सकते हैं, संसार विरोध कर सकता है, लेकिन जो सत्य है, वह एक दिन प्रकट होकर ही रहता है।

“सात समुद्र” का प्रतीकात्मक प्रयोग जीवन में आने वाली कठिनाइयों, संघर्षों और बाधाओं के लिए किया गया है। यह संकेत करता है कि जब कोई व्यक्ति सत्य, भक्ति या ज्ञान की राह पर चलता है, तो संसार उसकी परीक्षा लेता है। लेकिन अंततः सत्य की विजय होती है, और हर कठिनाई के बावजूद, उसकी मेहनत और साधना का परिणाम सकारात्मक रूप में मिलता है।

कबीरदास जी हमें यह सिखाते हैं कि चाहे सत्कर्म, भक्ति या ध्यान का मार्ग कठिन क्यों न हो, उसका अंत हमेशा सफलता और मोक्ष की ओर ही होता है। यदि हम सही मार्ग पर हैं, तो हमें किसी भी बाधा से घबराने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि समय आने पर हमें हमारा उचित फल अवश्य मिलेगा।

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