सागर में विराजित निर्यापक मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज के प्रवचन सुनने के लिए बड़ी संख्या में जैन श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। 21 नवंबर को मुनि श्री ने अपने प्रबोधन में जल की शुद्धता की महत्ता पर प्रकाश डाला। पढ़िए सागर से यह खबर…
सागर। तुम अपनी हर चीज की कमाई का 50 प्रतिशत दान करो। धन, समय, शरीर, पुण्य सबका 50 प्रतिशत दान करो, आंखों से 50 प्रतिशत संसार देखोगे और 50 प्रतिशत परमार्थ देखोगे। 50 प्रतिशत कानों से संसार की बाते सुनोगे तो इतने ही प्रतिशत परमार्थ की बात सुनोगे 12-12 घंटे। यह प्रबोधन निर्यापक मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने सागर में चल रही धर्मसभा में अपने प्रवचन के दौरान दिए। मुनि श्री सुधासागर जी महाराज ने कहा कि गृहस्थ को कैसे इन पापों से बचाएं। लेकिन, वह पूर्ण धर्म को अंगीकार नहीं कर सकता।
हर कोई मुनि नहीं बन सकता। प्रतिमाएं नहीं ले सकता क्योंकि, उसके लिए शक्ति और साहस चाहिए। वह अपना विनाश देख सकते हैं लेकिन, अपनी कषायों का बलिदान नहीं कर सकते। संसार में देखो शराब पीने वाले स्वयं का पतन देखते हैं लेकिन, उसे छोड़ते नही।इसलिए ऐसा गृहस्थों का उपाय मिले जिसमें उनकी पूंजी में न लगे और कोई बहाना भी न मिले, वो है जिनेंद्रदेव का अभिषेक।
कैसे मिला तुम्हें जैन कुल: मुनि श्री
गृहस्थ जितनी भी क्रियाएं करता है।उनमें सबसे ज्यादा पुण्य का बंध अभिषेक के समय होता है। एक आचार्य दीक्षा देकर मुनि बनाते हैं और तुम श्रावक हो तुम गंधोदक बनाते हो तो एक आचार्य से ज्यादा पूज्य गंधोदक बनाने का सौभाग्य तुम्हें मिला है। जिसे आचार्य भी अपने मस्तक पर धारण करते हैं और उस अधिकार को भी तुम खो देते हो। कैसे मिला तुम्हें जैनकुल- मरते समय तुमने भाव किया होगा कि हे भगवन! मुझे ऐसा कुल मिले जहां मैं जिनेंद्र भगवान को छू सकूं मुनि की अंजलि में आहार दे सकूं।
पांच लोग हैं जिन्हें अभिषेक करने का अधिकार नही है- तिर्यंच, कुंदकुंद की मूल परम्परा के अनुसार स्त्री, कोड़ी-कुष्ठी, जिसने ऐसे कुल में जन्म में लिया है जो मंदिर नहीं जा सकते या कोई ऐसा पाप किया है जिसके कारण समाज से बहिष्कृत हैं। जैनियों को आरक्षण नहीं होता है क्योंकि, जैनी जन्म-जन्म के किस्मत वाले होते हैं। यदि तुम्हें जो अधिकार मिला है इस अधिकार का उपयोग नहीं करोगे तो डायरी में लिख लो, तुम्हारा इन पांच में से कोई एक में जन्म होगा।
बिना नहाए अभिषेक नहीं करना चाहिए
तुम पवित्र जल को गंदा कर देते हो, दूसरा अनछने पानी की एक बूंद में 36 हजार 450 जीव होते हैं तो एक लीटर बाल्टी पानी में कितने जीव होंगे? प्रतिदिन कितने जीवों की हत्या करते हो तो अब उससे बचने का एक ही तरीका है कि या तो इतने पवित्र हो जाओ कि जल तुम्हारे शरीर को छुए और गंधोदक बन जाए। अन्यथा ये जल तुम्हें अभिशाप देगा और डायलिसिस कराना पड़ेगा। अब दूसरा कहना कि मैंने तुझे गंदा नहीं किया है, मैंने तो अभिषेक का नियम लिया है और जिनवाणी ने कहा है कि बिना नहाए अभिषेक नहीं करना तो मैं तो जिनवाणी की आज्ञा मान रहा हूं, इसलिए नहाने के पहले संकल्प करो कि मैं अभिषेक के लिए नहा रहा हूं। वास्तु कहता है किसी भी चीज का तुम उपयोग करते हो तो उसे पूज्य बना दो, मकान का उपयोग करते हो तो कुछ स्थान को, एक आले को पूज्य बना दो। जल का उपयोग करते हो तो उसे पूज्य बना दो। वो जल कहेगा कि इसने मुझे इतना पवित्र बना दिया कि भगवान के मस्तिष्क पर पहुंचा दिया। अब भवान्तरों में तुम जल को नहीं तरसोगे।
गरीबी आए तो मां से भीख मांग लेना
गरीबी आ जाए तो अपनी मां से भीख मंगवा लेना यदि आपकी मां जिंदा है और आप घर में हैं तो मंदिर में आपकी मां दूसरे के बेटे से गंधोदक की भीख न मांग ले। जो बेटा अपनी मांको गंधोदक लाकर देता है। उस समय देवता भी उस मां और बेटे को नमस्कार करते हैं, अन्यथा भवों-भवों तक तुम अनाथ बनोगे। जैन नारी शादी इसलिए करती है कि जवानी में मुझे पति अपने हाथ से बना गंधोदक दे और बेटा इसलिए पैदा करती है कि बुढ़ापे में मेरा बेटा मुझे गंधोदक दे। मंदिर से कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए, मंदिर से एक छोटी सी कलशियां भरकर ले जाओ, एक जल से भरा जब मांगलिक होता है। गंधोदक से भरा हो तब तो बात ही अलग। एक हजार मुनिराजों के आशीर्वाद से भी अधिक प्रभावकारी पालने में लेटे बेटे और बिटिया के मस्तिष्क पर पिता के हाथ से लगाया गया गंधोदक है।ये आठ वर्ष तक करिये बाकी उसकी जिंदगी देखिए उसको कभी दुर्दिन नहीं देखने पड़ेंगे।
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