मुनिश्री सुधासागर जी की धर्मसभा इन दिनों कटनी क्षेत्र में जैन समाज के लोगों को जीवन के विभिन्न रहस्यों और जिम्मेदारियों से परिचय करवा रही है। मुनिश्री के प्रवचनों का लाभ लेने के लिए बड़ी संख्या में समाजजन अतिशय क्षेत्र में चल रही धर्मसभा में पहुंच रहे हैं। बुधवार को भी उन्होंने समाजजनों को धर्म, कर्म और कर्तव्यों की महत्ता बताई। कटनी से पढ़िए राजीव सिंघई मोनू/शुभम जैन पृथ्वीपुर की यह खबर…
कटनी। मुनिश्री सुधासागर जी महाराज ने बहोरीबंद अतिशय क्षेत्र में अपने प्रवचनों से लोगों को धर्म कर्म और कर्तव्यों के प्रति जागृत किया है। बुधवार को भी उन्होंने यहां धर्मसभा में कहा कि व्यक्ति यह सोच लेता है कि मेरे पास जो है उससे मैं मालामाल हूं लेकिन, जब दुनिया की तरफ् देखते हैं तो हमसे भी बड़े रईस हैं। लोगों को बड़ी उम्मीदें होती हैं। अब बड़ा आदमी खड़ा हो गया है तो कुछ न कुछ तो मिलेगा लेकिन, देखने में यही आया कि देना तो दूर रहा, जो था वह भी कुचलकर चला गया। हम भूल जाते हैं कि दुनिया में हम ही जीने के लिए नहीं जन्मे हैं, वह भी जीना चाहता है, जिसे हमको कुचल रहे हैं। तुम अच्छा सोचना चाहते हो तो दुनिया भी अच्छा सोचना चाहती है। तुम अच्छा खाना चाहते हो तो दुनिया भी अच्छा खाना चाहती है फिर क्यों भिखारी को बासी रोटी देते हो। जिस दिन यह सोच आ जाए कि जो भोजन मुझे अच्छा लगता है वही तो भिखारी को भी लगेगा, हम क्यों उसकी मजबूरी का लाभ उठाएं। हम क्यों बासी रोटी उसके कटोरे में डालें। एक दिन बाद देने की अपेक्षा, उसी दिन दे दो न ताजी तो ताजी भी हो जाएगी और तुरंत हो जाएगी।
सुख नहीं दे सकते तो रुलाने का भी अधिकार नहीं
स्व की तरफ देखो क्योंकि, तुम्हारी अलावा भी दुनिया वैसी ही है, जैसे तुम हो। या तो दुनिया को तुम कुछ नहीं कर सकते हो तो कुचलने का भी तुम्हें अधिकार है। तुम झोपड़ी बनाकर नहीं दे सकते तो झोपड़ी उजाड़ने का अधिकार भी नहीं है। तुम पेड़ को नहीं सींच सकते तो पेड़ को काटने का भी अधिकार नहीं है। तुम किसी को सुख नहीं दे सकते तो रुलाने का भी अधिकार नहीं है। तुम किसी को सहारा नहीं दे सकते तो धक्का मारने का भी अधिकार नहीं है, उसको छोड़ दो अपने ऊपर। दूसरे का सहयोग करने की अपेक्षा उजाड़ने में हमें ज्यादा मजा आता है। 90 प्रतिशत लोग किसी के दुःख से सुखी रहते हैं। जिनवाणी ने कहा कि तुम्हें अपने आप को ही सुखी रखना है तो पर को सहारा देना बाद में छोड़ना, पर का सहारा लेना छोड़ दो। हम पर का सहारा तो लेना तो चाहते हैं लेकिन, पर को सहारा नहीं देना चाहते, यही जिंदगी का सबसे बड़ा डाउन फॉल है, यहीं से शुरू होता है व्यक्ति का पतन। तुम अपनी कहानी तो दूसरों को सुनाना चाहते हो लेकिन, दूसरों के दुख सुनना नहीं चाहते, बस तुम्हारे विनाश का समय निश्चित है, कभी दुःख दूर नहीं होगा।
तुम धर्म की रक्षा करोगे तो धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा
ये पेड़ हमें फल दें लेकिन, पेड़ को हम खाद-पानी नहीं देना चाहते तो वो फल तुम्हें पचेगा ही नहीं। यदि तुम छाया लेना चाहते हो तो पेड़ की सुरक्षा करो, प्रकृति कहती है कि छाया तुम्हें अच्छी लगती है तो पेड़ को बचाओ, उसको काटो मत। कभी भाव नहीं आता कि इससे हवा प्रदूषित हो जाएगी, हमेशा एक ही भाव कहते हो कि मुझे अच्छी हवा मिलती रहे। ये कब भाव आया है कि मैं अच्छी हवा चाहता हूं तो मेरा प्रयास रहेगा मैं हवा को गंदा नहीं करूंगा। हम सोचते है हमें पानी अच्छा मिलें, कभी हम ये नहीं सोचते कि पानी को अच्छा रखूंगा। यही स्थिति धर्म क्षेत्र में भी आ रही है, हर व्यक्ति धर्म से चाहता है लेकिन, कभी धर्म की सुरक्षा करने का भाव नहीं करता। तुम धर्म की रक्षा करोगे तो धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा। जिस दिन तुम्हारा ये भाव आ जाए कि मैं धर्म की रक्षा करूंगा, पर तुम्हें अपनी रक्षा की याचना करना नहीं है, अपने आप तुम्हारी रक्षा होगी।
एक वेदी, नहीं मिले तो मंदिर में फर्श लगाना
पिता स्वयं के मरने के बाद, बेटे का इंतजाम करता है कि एक गद्दी तो बना दो और गुरु तुम्हारे मरने के बाद का इंतजाम करते हैं, उन्हें चिंता है कि गर तुम मर गए तो कम से कम बाप का बना बनाया मकान तो मिल जाए, पिता की गद्दी तो मिल जाए। मेरे भक्तांे से कहना है कि जिंदगी में एक मंदिर बनाकर मरना, एक वेदी, नहीं मिले तो मंदिर में फर्श लगाकर मरना, मंदिर की शिखर, मंदिर में किवाड़ और कुछ न मिले तो जब शिलान्यास हो तो एक ईंट लगाकर मरना, वो ईंट साधारण नहीं है, वो ईंट तुम्हारे मरने के बाद का इंतजाम है। जीते जी तो तुम्हारी व्यवस्था तुम्हारे बाप ने कर दी, मैं तुम्हारे मरने के बाद की व्यवस्था कर रहा हूं।
किसी के काम आने पर मिलता है संतोष
जब तुम पेड़ की कटिंग भी करते हो तो वह पेड़ कहता है कि भले ही मैं कट गया लेकिन, इनका तो मनोरंजन हो गया। कोई बात नहीं लेकिन, तूने तो यूं तोड़ा और यूं फंेक दिया, वो एक पत्ता तुम्हारी जिंदगी को बर्बाद कर देगा, मैं तो अपनी जिंदगी में सुख नहीं ले पाया लेकिन, मेरी जिंदगी से कोई दूसरा भी सुख नहीं ले पाया। हाथ पैर बिना कारणों के कोई पत्ता भी नहीं तोडना। पानी के लिए कोई बात नहीं तुम पियो, अभिषेक करो, पानी को खुशी है कि भली मैं नष्ट हो गया लेकिन, किसी की प्यास बुझ गई लेकिन, तुमने तो एक गिलास पानी पिया और फेंक दिया। अब पानी कहता है कि मैं तो कंही का नहीं रहा, मैं मिट्टी में मिल के बर्बाद हो गया और किसी के काम भी नहीं आया। किसी के काम आता तो संतोष रहता कि भली मैं मिट गया लेकिन, किसी की प्यास बुझ गई।
साधु का समय है मूल्यवान
अन्न का कण और साधु का क्षण कभी बर्बाद मत करना क्योंकि, वो मूल्यवान है। अन्न मूल्यवान है, प्राण बचाता है तो उसके कण को बर्बाद मत करना। साधु का समय भी मूल्यवान है, एक क्षण को मिले तो जीवन को धन्य कर लो। कीमती चीज ज्यादा देर संयोग में नहीं रहती क्योंकि, वो कीमती है। मैं अपने समय की कीमत करूं या ना करूं साधु का समय बर्बाद नहीं करूंगा। जितना साधु अपनी साधना में रहेगा और जो अतिशय प्रकट होगा, इसका लाभ तुम्हें मिलना है।
Add Comment