मुनि श्री सुधासागर जी महाराज के प्रवचन इन दिनों कटनी में गजरथ महोत्सव में धर्मसभा में चल रहे हैं। रोज उनके प्रवचन सुनने के लिए बड़ी संख्या में जैन समाज के लोग उपस्थित रहकर धर्मलाभ ले रहे हैं। मुनिश्री धर्म आधारित संदेशों के माध्यम से कई गूढ़ रहस्य की आध्यात्मिक बातें बता रहे हैं। पढ़िए कटनी से राजीव सिंघई की यह खबर…
कटनी। मुनिश्री सुधासागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में गुरुवार को कहा कि नदी जब निकलती है तो बहुत छोटी होती है। इतनी छोटी लगती है कि नदी है या पोखर है लेकिन, धीरे-धीरे नदी अपना स्थान बड़ा बना लेती है कि अथाह अनंत सागर में मिलने की भी ताकत आ जाती है। ऐसे ही अपनी जिंदगी एक छोटे से रूप में शुरू होती है। जब बालक का जन्म होता है तो कोई नहीं कह सकता कि इतना बड़ा भी कभी होगा, इतना बड़ा सोच होगा लेकिन, वह छोटे से अबोध बालक की जिंदगी बढ़ते-बढ़ते केवलज्ञान तक पहुंच जाती है। एक कदम नहीं चलने वाला व्यक्ति मोक्ष तक पहुंच जाता है। अपनी जिंदगी के संबंध में भी नहीं सोच पाता और एक दिन सारी दुनिया के संबंध में सोच लेता है। यह सारे विकासवाद के सूत्र प्रकृति ने हमें दिए हैं। योग्यता के रूप में। अब उस योग्यता को पकाना हमें है और पकने के बाद फिर वह कितना बीज बनेगा। फिर श्रृंखला बन जाती है।
मन की यात्रा बहुत तेज है
रेकी एक ऐसा ओरा है, शास्त्र की भाषा में भावना और विज्ञान की भाषा में ऊर्जा बोलते हैं। ये सब साधक अपनी साधना के बल पर कहीं भी कितनी भी दूर भेजी जा सकती है क्योंकि, आना-जाना साधु का हो नहीं पाता, वह पदयात्री है लेकिन, मन की यात्रा बहुत तेज है। साधु का शरीर कम काम करता है, मन ज्यादा काम करता है। आप श्रावक भी साधु को शरीर से कम चाहा करो, मन से ज्यादा चाहा करो। तीन चीजों से प्राप्त करना है हमें वह वस्तु जो हमारे बुझे हुए दीपक को जला दे तो एक शरीर से छूना होता है जो हमेशा सबके लिए हर समय संभव नहीं। दूसरा वचन से छूना, जैसे- हे! भगवान मैं आपके चरणों में चढ़ा रहा हूं, वचनों में स्त्री पुरुष का भेद नहीं होता। तीसरा मन से छू सकते हो, आंख बंद करो और मन से भगवान के चरणों में सिर रखो, आंख बंद करो और सिद्धालय पहुंच जाओ। सबसे ज्यादा ताकतवर होता है। मन का स्पर्श, शरीर के स्पर्श में इतनी ताकत नहीं, शरीर के स्पर्श में सबसे कम ताकत होती है, उससे ज्यादा वचन के स्पर्श में और सबसे ज्यादा मन के स्पर्श में ताकत होती है।
जिस भगवान की एनर्जी लेना है, उनका ध्यान कीजिए
रेकी लेना है हमें सिद्ध भगवान से, अपने मन को सिद्धालय भेज दो और जैसे पारसनाथ का ध्यान करना है तो पारसनाथ की टोंक पर पहुंचों और ठीक मन को सिद्धालय भेज दो और जो भगवान की काया थी। उस काया प्रमाण सिद्धालय को मन से स्पर्श करो। वहां से एनर्जी आपको ऐसी चालू हो जाएगी कि जैसे मैना सुंदरी ने मन से सिद्धों को छुआ और 700 कोढियों का कोढ़ दूर हो गया। जिस भगवान की एनर्जी लेना है, उनका ध्यान कीजिए। हमंे अपना बुझा हुआ दीपक जलाना है तो पर्टिकुलर किसी एक भगवान को चुनना पड़ेगा, वो कहा है तो शास्त्रों में कहां-जहां उनका निर्वाण भूमि हो। उस निर्वाण भूमि के ठीक 90° के एंगल पर वह सिद्ध परमेष्ठी मिलेंगे क्योंकि, वह ऋजुगति से गए हैं।
ध्यान और ऊर्जा लेने में अंतर है
आप कही संकट में है, आप द्वंद्वों में हैं, आप मन से भगवान का स्पर्श कीजिए। अपने मन के माध्यम से उस मूर्ति से संपर्क कीजिए, पूरी मूर्ति का अवलोकन कीजिए, वहां का स्पर्श करते ही आपको उस मूर्ति से एनर्जी प्राप्त हो जाएगी लेकिन, आपको मन से टच करना पड़ेगा और वह आपको मूर्ति फिक्स करना पड़ेगी। सभी मूर्तियां तब ध्यान में करना जब हमें कुछ नहीं चाहिए, हमें सिर्फ दर्शन, पूजन करना है। इसी प्रकार जब हमें अपने गुरु से एनर्जी चाहिए तो किसी एक महाराज को आंख बंद करके मन से चरणों में स्पर्श कीजिए। उनसे एनर्जी मिलना चालू हो जाएगी। ध्यान और ऊर्जा लेने में अंतर है। ध्यान में हम तदरूप होते हैं, ध्यान में एनर्जी मिलती नहीं है, ध्यान में एनर्जी जागती है।
एनर्जी प्राप्त होगी तो हाथ से छूने पर होती है
महिला है, बालक है या जंगल में है तो कैसे एनर्जी प्राप्त करें तो उस स्थिति में आप मन का स्पर्श करें। मन का स्पर्श करने पर आपको वही एनर्जी प्राप्त होगी तो हाथ से छूने पर होती है। 24 घंटे में एक बार भगवान को छू लिया करो। उसके लिए धोती दुपट्टा पहनना पड़ेगा, नहाना पड़ेगा और सब नहीं छू सकते। अब गंधोदक की बात आती है कि भगवान को जिसने छू लिया है उस जल को छू लिया करो, उसको महिला, पुरुष सब छू सकते। राहु-केतु को पचाने की सबसे बड़ी ताकत पुष्पदंत भगवान में है, भगवान को कुछ नहीं करना उनका मगरमच्छ ही निपटा देता है। शनिवार को कहीं मत भटको, न शनि देवता को तेल लगाओ, उस दिन मुनिसुव्रतनाथ भगवान का अभिषेक कर लो।
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