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तुम गृहस्थ हो तो सारी क्रियाओं में अंतराल करना : कटनी में मुनिश्री के प्रवचनों से बह रही धर्म प्रभावना


मुनिश्री सुधासागर जी के प्रवचन जन उपकारकारी साबित हो रहे हैं। उनकी नित धर्मसभाओं में बड़ी संख्या में जैन श्रावक-श्राविकाएं शामिल होकर धर्म लाभ ले रही हैं। मुनिश्री के उपदेश और संदेश गृहस्थ जीवन को सुखमय बनाते हुए धर्म के मार्ग पर ले जाने के लिए प्रेरक साबित हो रहे हैं। कटनी से पढ़िए राजीव सिंघई की यह खबर…


कटनी। मुनिश्री सुधा सागर जी महाराज ने कटनी में अपनी धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जो परमार्थ का मार्ग होता है वह निरंतर होता है, उसमें गैप नहीं होता। जब भी परमात्मा की उपलब्धि होती है, वह शाश्वत होती है। पर्याय तीन प्रकार की होते हैं- अनादि अनंत पर्याय, सादि शांत पर्याय और एक सादि अनंत पर्याय। तीन पर्यायों से यह संपूर्ण सृष्टि की व्यवस्था बनी हुई है। पर्याय की परिभाषा है-जो उत्पन्न हो और समाप्त हो लेकिन, एक पर्याय मात्र दुनिया में ऐसा है अभयत्व पर्याय, जो न उत्पन्न होता है और न मिटता है, निरन्तर बना रहता है और फिर भी पर्याय है। दूसरा भव्यत्व पर्याय जो अनादिकाल से कभी उत्पन्न तो नहीं हुआ लेकिन, नाश जरूर होगा। सादि अनंत पर्याय तो वह है जो परमार्थ रूप है, जिसे अपन सिद्धत्व कहते हैं, उत्पन्न तो होगा लेकिन, कभी सिद्धत्व का नाश नहीं होगा। अपन जिस जिंदगी में जी रहें, अपनी सारे पर्यायें सादि शांत हैं।

अब बीच का रास्ता यह है अधर्म को सादि शांत पर्याय बनाओ

यदि गृहस्थ ने अधर्म को निरंतर बना दिया कि निरंतर राग द्वेष, कषाएं करता है तो तुम पूर्णतः बर्बाद हो जाओगे। अपनी जिंदगी को पूरा पापमय मत बनाना। आंखों और कानों से राग द्वेष की बातें सुनकर ही संतुष्ट मत होना। ये शरीर दिन-रात आरंभ परिग्रह के कार्य में न जाए। अपने परिवार को भी संसार का साधन मत बनने देना। धन भी संसार के लिए मत कामना, जो कुछ भी करते हो उसको थोड़ा सा विराम देना। पूर्ण धर्मात्मा बन गए तो गृहस्थ नहीं रह पाओगे, मुनि बनना पड़ेगा और पूर्ण अधर्मी बन गए तो गृहस्थी बर्बाद हो जाएगी। अब बीच का रास्ता निकालते हैं अधर्म को सादि शांत पर्याय बनाओ। यदि बर्बाद नहीं होना है तो थोड़ा गैप करो, मन से थोड़ा अधर्म की बातें सोचना बंद करो, आंखों से पाप की बातें मत देखो, कहो भी मत। नियम लो हम 24 घंटे में एक घंटे, दो घंटे, तीन घंटे, या 10 मिनट मन में गलत विचार नहीं लाएंगे, संसार के संबंध में नहीं सोचेंगे और क्रोध, मान, माया, लोभ नहीं करेंगे।

कानों से हम राग की बात नहीं सुनेंगे

एक मिनट के लिए सही संकल्प करना है। इतने बजकर इतने मिनट में मैं अपने मन मे कोई सावद्य की बात नही सोचूंगा। 24 घंटे में हम राग की बात नहीं देखेंगे। जिसकों देखने के बाद राग जागता हो। कानों से हम राग की बात नहीं सुनेंगे। कुछ अंतराल करना है। मैं 24 घंटे में मुंह से कोई संसार की बात नहीं बोलूंगा- एक घंटे, आधे घंटे, 5 मिनिट। सम्यक दृष्टि जिंदगी भर के लिए कोई कषाय या पाप का त्याग नहीं कर देता है, बीच में गैप कर देता है। पाप का निषेध नहीं कर रहे, अष्टमी को मत करना। भोजन का निषेध नहीं कर रहे, रात में मत करना। सारी क्रियाओं में अंतराल कराना है। सवाल पाप को छोड़ने का नहीं है, सवाल पाप में गैप करने का है। एक दिन का गैप कर दो बस, वो गैप करने से वासना काल टूट गया, वासनाकाल टूटते ही जो अनंतानुबंधी कषाय निरंतर थी, उसमें टुकड़ा आ गया।

न राग द्वेष होगा, होगा तो शुभोपयोग होगा 

क्यों देवदर्शन जरूरी बता दिया। मात्र आंख को गैप करना है, आंख 24 घंटे अशुभ, रागी द्वेषी वस्तुओं को देखती है, 10 मिनट के लिए मंदिर चला जा, इन आंखों से वीतराग मुद्रा देख ले, जिसको देखकर न राग है, न द्वेष। 10 मिनट सही हम वो बातें सुनेंगे जिन बातों में न आरंभ होगा, न राग द्वेष होगा, मात्र होगा तो शुभोपयोग होगा। क्या होता है पूजा करने से, जितनी देर पूजा बोलोगे उतनी देर वचन से सावद्य का गैप हो गया। इन पैरों से दिन भर संसार के कार्यों में घूमते रहते हो, 10 मिनट के लिए मंदिर चले जाओ, सावद्य-आरंभ में गैप हो गया। धन में गैप करो-मैं परोपकार और परमार्थ के लिए कमाऊंगा।

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