चर्चा कॉलम के माध्यम से “एक पद, एक संस्था, एक व्यक्ति” पर चर्चा शुरू की तो उसे लेकर देश की कई राष्ट्रीय-राज्य स्तरीय संस्थाओं के अध्यक्ष, मंत्री सहित अन्य पदाधिकारियों से बात हुई तो उनके विचार आप सुधि पाठकों तक गेस्ट राइटर के जरिए पहुंचाए भी। इस सारी चर्चा का यही निचोड़ निकला कि जब तक आप लोगों में यानी हमारे समाज में जागृति नहीं आएगी, तब तक बदलाव संभव नहीं है। पढ़िए श्रीफल जैन न्यूज की संपादक रेखा संजय जैन का यह विशेष आलेख…
चर्चा कॉलम के माध्यम से “एक पद, एक संस्था, एक व्यक्ति” पर चर्चा शुरू की तो उसे लेकर देश की कई राष्ट्रीय-राज्य स्तरीय संस्थाओं के अध्यक्ष, मंत्री सहित अन्य पदाधिकारियों से बात हुई तो उनके विचार आप सुधि पाठकों तक गेस्ट राइटर के जरिए पहुंचाए भी। इस सारी चर्चा का यही निचोड़ निकला कि जब तक आप लोगों में यानी हमारे समाज में जागृति नहीं आएगी, तब तक बदलाव संभव नहीं है। इसके लिए मीडिया, सोशल मीडिया, जैन पत्रकार, विद्वान और युवा वर्ग को आगे आना होगा। यानी अब बारी हम सब की है कि सब अपने-अपने स्तर पर इसे अभियान बनाएं और इस पर चर्चा करें। एक-दूसरे से बात करें, एक-दूसरे को समझें – समझाएं, तभी एक नई सोच का जन्म होगा। जिसके बाद मात्र धर्म, धर्मात्मा और क्षेत्रों को ध्यान में रखकर कोई निर्णय किया जा सकेगा। हम क्या कर सकते हैं, हम क्यों करें, ऐसी बातों को छोड़कर एक बात यही सोचें कि हमारी एकता नहीं रही। हमारी शक्तियां बंट गई हैं, धन बंट गया है। हम बिखरे के बिखरे रह गए हैं। आप देखें कि इन सबके कारण आज तक हम न तो शिखर जी मुद्दे पर, न ही गिरनार जी के मुद्दे पर, न ही केसरिया जी के मुद्दे पर और न ही गोमटगिरी के मुद्दे पर किसी निर्णय पर पहुंच पाए हैं। जब देश में हिंदुत्व की आंधी चली तो ज्ञानवापी, भोजशाला का सर्वे चल रहा है। कहीं ना कहीं हिंदू मंदिर के अवशेष मिले हैं, राम मंदिर साकार हो पाया। यह सब हिंदुत्व की आंधी से ही संभव हुआ। लेकिन हमारे जैन समाज में हम अनेक संस्थाओं, पदों, व्यक्ति जैसे मुद्दों में उलझ कर रहे गए और समाज में एक मानस ही नहीं बना पाए। एक बार हम इन सब बातों को दूर रखकर मात्र धर्म, धर्मात्मा, तीर्थ संस्कार, संस्कृति पर दृष्टिपात कर देखें कि क्या अनेक संस्थाएं बनने से, एक ही व्यक्ति के अनेक पद पर रहने जैसे कारणों से हम अपने कार्य में सफल नहीं हो पा रहे। आज आम लोग आगे नहीं आ रहे हैं तो युवा पीढ़ी भी उसी पुराने सांचे में ढलती जा रही है। क्षमता के अनुसार एक व्यक्ति अनेक पद पर रह सकता है लेकिन समय तो सीमित है न, फिर क्यों एक ही कार्य में अपना समय लगाएं और अपनी ही समान क्षमता वाले अन्य व्यक्ति को अन्य काम में या अपने साथ काम में लगाएं। अलग-अलग नदियों का पानी जब एक जगह जमा होना शुरू होता है, तब वह समुद्र बनता है। उसे बांधना और सुखाना संभव नहीं। बस उसी तरह हम अलग- अलग क्षेत्र में काम करें लेकिन ध्यान मात्र धर्म, धर्मात्मा, तीर्थ आदि की सुरक्षा का रहे।
इतिहास में साक्ष्य मिले हैं कि तिरुपति जी का मंदिर, नेमिनाथ भगवान का मंदिर, कुतुब मीनार जैनों का है। इनके अलावा और भी कुछ ऐसे प्राचीन क्षेत्र या ऐतिहासिक जगह हैं, जो जैनों की हैं लेकिन हम अलग- अलग संस्थाओं में एक ही व्यक्ति अनेक पदों पर बैठा है, जिससे हम मजबूत आवाज ही नहीं उठा पा रहे। इससे अधिक दुर्भाग्य और क्या हो सकता है। अब आपकी बारी है कि अब आप सब मिलकर अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को छोड़कर “एक पद, एक संस्था, एक व्यक्ति” अभियान को अपने-अपने स्तर पर आगे बढ़ाते हुए समाज को जागृत करें।आपको हमारा यह विचार कैसा लगा, हमारे 9591952436 नंबर पर अवश्य बताएं।
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