आलेख श्रीफल ओरिजिनल

बाल दिवस के उपलक्ष्य में बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधी आलेखों की विशेष शृंखला-2 : बच्चों में चश्मे का नंबर न बढ़ने के उपाय, जानें क्यों और कैसे रखें आंखें स्वस्थ

बाल दिवस, जिसे "चिल्डर्न्स डे" के नाम 
से भी जाना जाता है,हर साल 14 नवम्बर 
को मनाया जाता है । यह दिन बच्चों के 
अधिकारों,उनके विकास और शिक्षा के 
महत्व को उजागर करने के लिए समर्पित 
होता है। बाल दिवस काउद्देश्य बच्चों को 
स्वस्थ,खुशहाल और सुरक्षित वातावरण में 
जीवन जीने का अधिकार दिलाना है। यह 
दिन बच्चों की न केवल शारीरिक,बल्कि
मानसिक और भावनात्मक भलाई के लिए 
भीसमर्पित है।श्रीफल जैन न्यूज ने बाल 
दिवस के उपलक्ष्य पर बच्चों के स्वास्थ्य 
जुड़ी समस्याओं और उनके समाधान के 
लिए आलेखों की एक विशेष शृंखला शुरू 
की है। इसकी दूसरी कड़ी में कैसे बच्चों 
की आंखों को रखें स्वस्थ...। यह स्टोरी 
पाठकों के लिए श्रीफल जैन न्यूज की 
संपादक रेखा संजय द्वारा लिखी गई है।

कम उम्र में चश्मा लगना आजकल की लाइफस्टाइल का हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम इसे अनदेखा करें। बच्चों को स्क्रीन से दूरी बनाए रखने, सही खानपान और नियमित आंखों की देखभाल से हम उनकी आंखों को स्वस्थ रख सकते हैं। इसके अलावा, वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि विशेष लेंस का उपयोग चश्मे का नंबर बढ़ने से रोक सकता है, जिससे बच्चों को साफ और तेज नजर मिल सकती है। अगर हम इन उपायों को सही समय पर अपनाते हैं, तो हम बच्चों के आंखों की सेहत को लंबे समय तक बनाए रख सकते हैं। आजकल बच्चों में चश्मे का नंबर लगना एक सामान्य सी बात बन चुकी है। खासकर स्कूल जाने वाले बच्चों में मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है। लाइफस्टाइल, स्क्रीन पर अधिक समय बिताना और अनहेल्दी आदतें इसके प्रमुख कारण हैं। जब एक बार मायोपिया हो जाता है तो चश्मे का नंबर समय के साथ बढ़ता ही रहता है, और इसका असर बच्चों की आंखों की सेहत पर भी पड़ता है। हालांकि, हाल के शोध ने इस समस्या का एक हल प्रस्तुत किया है, जिसमें एक नया लेंस विकसित किया गया है जो चश्मे का नंबर 67% तक रुकने या बहुत कम बढ़ने में मदद करता है, जबकि सामान्य ग्लास में यह संभव नहीं होता।

स्क्रीन टाइम और मायोपिया का संबंध

आज के दौर में बच्चों का अधिकांश समय स्मार्टफोन, टैबलेट, कंप्यूटर और टीवी जैसी स्क्रीन के सामने गुजरता है। इससे उनकी आंखों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है, जो मायोपिया का कारण बन सकता है। लगातार करीब से देखना आंखों की मांसपेशियों को कमजोर करता है, और यदि समय रहते इसका इलाज न किया जाए तो यह स्थायी समस्या बन सकती है।

चश्मे का नंबर बढ़ने से रोकने के उपाय

1. स्क्रीन का कम उपयोग: बच्चों को ज्यादा समय तक स्क्रीन पर बैठने से रोकना बेहद जरूरी है। बच्चों के लिए ’20-20-20′ नियम अपनाना एक अच्छा उपाय है। इसका मतलब है कि हर 20 मिनट में स्क्रीन से हटकर 20 फीट दूर किसी वस्तु को 20 सेकंड तक देखें। इससे आंखों को राहत मिलती है और मांसपेशियों पर दबाव कम होता है।

2. पारंपरिक लेंस के अलावा नए लेंस का विकल्प: नए शोध के मुताबिक, कुछ विशेष प्रकार के लेंस का उपयोग करने से बच्चों में चश्मे का नंबर बढ़ने की दर को 67% तक कम किया जा सकता है। ये लेंस मायोपिया को नियंत्रित करने के लिए तैयार किए गए हैं और इससे बच्चों के आंखों का नंबर स्थिर रह सकता है।

3.आंखों की एक्सरसाइज और प्रैक्टिस: बच्चों को आंखों की नियमित एक्सरसाइज करवाना भी महत्वपूर्ण है। खासकर जब वे लंबे समय तक किताबें पढ़ते या स्क्रीन पर काम करते हों। यह एक्सरसाइज आंखों की मांसपेशियों को मजबूत करती है और लम्बे समय तक ठीक रखती है।

4. स्वस्थ आहार: बच्चों को आंखों की सेहत बनाए रखने के लिए विटामिन A, C और E से भरपूर आहार देना चाहिए। हरी सब्जियाँ, गाजर, मटर, आम और अन्य फल आँखों की रोशनी को सुधारने में मदद करते हैं। इसके साथ-साथ ओमेगा-3 फैटी ऐसिड भी आंखों के लिए लाभकारी होता है, जिसे मछली, अखरोट और अलसी के बीज से प्राप्त किया जा सकता है।

5. प्राकृतिक रोशनी में समय बिताना: बच्चों को बाहर खेलने के लिए प्रोत्साहित करें, ताकि वे प्राकृतिक रोशनी में समय बिता सकें। कई शोधों से यह भी साबित हुआ है कि जितना अधिक समय बच्चा बाहर खुले में बिताता है, उतना ही उसकी आंखों की सेहत के लिए फायदेमंद होता है, और मायोपिया का जोखिम कम होता है।

6. सही चश्मा और नियमित जांच: अगर बच्चे को चश्मा पहना है, तो यह सुनिश्चित करें कि उनका नंबर नियमित रूप से चेक किया जाए। समय-समय पर आंखों की जांच और सही चश्मे का चुनाव मायोपिया के बढ़ने को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।

बच्चों की आंखों से जुड़े कुछ प्रमुख शोध

बच्चों की आंखों की सेहत को लेकर हाल के वर्षों में कई महत्वपूर्ण शोध किए गए हैं, जो उनके दृष्टि विकास और आंखों से संबंधित समस्याओं के बारे में नई जानकारियां प्रदान करते हैं। बच्चों में दृष्टि दोष, खासकर मायोपिया (निकट दृष्टि दोष), एस्टिग्मैटिज़्म (आंखों का असमान आकार), और हाइपरमेट्रोपिया (दूर दृष्टि दोष) के मामलों में वृद्धि देखने को मिल रही है। आइए जानते हैं कुछ महत्वपूर्ण शोधों के बारे में, जो बच्चों की आंखों की सेहत से जुड़े हैं:

1. मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) और स्क्रीन टाइम

   शोध ने यह पाया कि बच्चों में मायोपिया के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है, और इसका प्रमुख कारण उनके जीवनशैली और डिजिटल उपकरणों के अत्यधिक उपयोग को माना गया है। ब्रिटिश जर्नल ऑफ ओप्थल्मोलॉजी में प्रकाशित एक शोध ने यह सिद्ध किया कि जिन बच्चों का स्क्रीन टाइम अधिक था, उनमें मायोपिया का खतरा दो से तीन गुना बढ़ गया था। शोधकर्ताओं ने बच्चों को अधिक समय तक बाहर खेलने और प्राकृतिक रोशनी में समय बिताने की सलाह दी ताकि उनकी आंखों का विकास सही तरीके से हो सके।

2. आंखों का विकास और बाहरी गतिविधियां

 राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (NIH) के एक अध्ययन में यह पाया गया कि बच्चों को प्राकृतिक रोशनी में समय बिताने से मायोपिया के जोखिम को 30% तक कम किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि 2 घंटे से ज्यादा समय तक बाहर खेलने से बच्चों की आंखों की मांसपेशियां बेहतर ढंग से काम करती हैं, जिससे उन्हें दूर की चीजें साफ दिखाई देती हैं।

3. नया लेंस और मायोपिया का नियंत्रण

हाल के वर्षों में एक शोध सामने आया है जिसमें यह पाया गया कि विशेष प्रकार के लेंस, जिन्हें मायोपिया कंट्रोल लेंस कहा जाता है, बच्चों में मायोपिया के विकास को रोकने में मदद कर सकते हैं। एक जर्नल ऑफ ओप्थल्मोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, ये लेंस चश्मे का नंबर 67% तक रोकने या बहुत कम बढ़ने में मदद करते हैं। इसके साथ ही, ये लेंस बच्चों की आंखों को भविष्य में होने वाली समस्याओं से भी बचा सकते हैं।

4. स्मार्टफोन और आंखों का विकास

 एक अध्ययन, जो किंग्स कॉलेज लंदन द्वारा किया गया था, ने यह पाया कि स्मार्टफोन और अन्य डिजिटल स्क्रीन से बच्चों की आंखों में आने वाली समस्याओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह शोध बताता है कि स्क्रीन के अत्यधिक उपयोग से आंखों में थकावट, सिरदर्द, और दृष्टि दोष जैसे लक्षण बढ़ सकते हैं, जिन्हें डिजिटल आई स्ट्रेन (ब्लू लाइट) कहा जाता है। इसका असर बच्चों के दृष्टिकोण पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है।

5. आहार और आंखों की सेहत

एक अध्ययन, जो अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रीशन में प्रकाशित हुआ था, ने यह पाया कि बच्चों का आहार भी आंखों की सेहत पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। इस अध्ययन में पाया गया कि जिन बच्चों का आहार विटामिन A, C और E से भरपूर होता है, उनकी आंखों में कम दृष्टि समस्याएं होती हैं। हरी पत्तेदार सब्जियां, गाजर, और मछली जैसे ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर खाद्य पदार्थ बच्चों की आंखों की सेहत को बनाए रखने में मदद करते हैं।

6. आंखों के विकास में जेनेटिक कारक

 हाल ही में एक शोध ने यह पाया कि बच्चों में दृष्टि दोषों का 40-60% कारण जेनेटिक हो सकता है। यह शोध ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी द्वारा किया गया था, जिसमें यह दिखाया गया कि बच्चों के माता-पिता में यदि मायोपिया या अन्य दृष्टि दोष हैं, तो उनके बच्चों में भी इन समस्याओं का जोखिम बढ़ सकता है। हालांकि, पर्यावरणीय कारक और लाइफस्टाइल भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

 

7. प्रारंभिक दृष्टि परीक्षण और प्रभाव

   सेंटर फॉर विजन रिसर्च द्वारा किए गए एक शोध ने यह दिखाया कि बच्चों में दृष्टि दोष की पहचान पहले कर लेने से उनकी आंखों की सेहत को बचाया जा सकता है। यदि बच्चों में दृष्टि दोष की शुरुआत उम्र के शुरुआती सालों में ही पहचान ली जाती है, तो उसका इलाज आसानी से किया जा सकता है और आंखों की गंभीर समस्याओं से बचा जा सकता है।

 

 

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Rekha Jain

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