भीलूड़ा । वैज्ञानिक धर्माचार्य कनक नंदी महाराज ने गुरुवार को अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार मैं कहा कि रक्षाबंधन पर्व का प्राचीन नाम वात्सल्य पर्व है। सम्यक दर्शन, स्वाध्याय तथा सोलह कारण भावना के अंतिम में वात्सल्य तथा प्रभावना आती है। उन्होंने कहा कि धर्म का उपदेश तथा प्रभावना वात्सल्य के बिना नहीं हो सकती। गुरुवाणी भावों को शुद्ध करने के लिए होती है। प्रकोष्ठ भावना का अर्थ प्रभावना है जिसकी भावना पवित्र है, वह घृणा, द्वेष से रहित होकर प्रभावना कर सकता है। पहले आत्मा का उद्धार करो फिर परोपकार करो क्योंकि जो स्वयं प्रकाशवान नहीं है, वह अन्य को प्रकाशित कैसे कर सकता है।
आचार्य जी ने कहा कि जो संकीर्ण स्वार्थी होता है, वह केवल परिवार के लिए ही सोचता है परंतु जो परोपकारी होता है वह किसी को कष्ट नहीं देता। हर जीव में जिनेंद्र के दर्शन करता है। वह आतंकवादी, दुष्ट, दुर्जन, पापी नहीं हो सकता। ऐसे लोग दान, पूजा दूसरों को नीचा दिखाने के लिए करते हैं तो वह प्रभावना नहीं है। धार्मिक लोगों से वात्सल्य होगा तब ही धार्मिक बन सकते हैं। वात्सल्य भाव से आत्मा का स्वभाव प्रकट होता है। विश्व कल्याण की भावना ही प्रायोगिक अहिंसा है।
हर जीव में जिनेंद्र के दर्शन करता है परोपकारीः वैज्ञानिक धर्माचार्य कनक नंदी महाराज

आप को यह कंटेंट कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
+1
+1
+1