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भूलने की आदत अच्छी भी है और खराब भी: ज्ञानतीर्थ पर धर्मसभा में गुरुमां का उद्बोधन


सारांश

मुरैना में श्री ज्ञानतीर्थ क्षेत्र पर धर्मसभा को संबोधित करते हुये आर्यिका श्री स्वस्तिभूषण माताजी ने स्मरण और विस्मरण पर प्रकाश डाला। बताया कि याद रखना स्मृति नामक मतिज्ञान कर्म के कारण ही सम्भव है। मनोज नायक की रिपोर्ट।


मुरैना। जैन साध्वी गणिनी आर्यिका श्री स्वस्तिभूषण माताजी ने श्री ज्ञानतीर्थ क्षेत्र पर आयोजित धर्मसभा में कहा कि वर्तमान में प्राणी को भूलने की आदत बहुत है। जिन बातों को भूलना चाहिये, वह याद रहती हैं और जिन बातों को याद रखना चाहिए, वह भूल जाते हैं। यह स्मरण की शक्ति मतिज्ञान कर्म के उदय में मिलती है। जैन साध्वी गुरुमां ने कहा कि सभी को कितना याद रहता है, कितने समय तक रहता है ये सब चीजें स्मृति नामक मतिज्ञान कर्म के कारण सम्भव हैं। स्मरण के साथ विस्मरण भी है।

यानी याद के साथ भूलना भी है। एक तरह से भूलने की आदत अच्छी भी है और खराब भी है। अच्छी इसलिए कि यदि संसार की सभी बातें याद रहें तो जीना मुश्किल हो जाएगा। याद रहना इसलिए अच्छा है कि सभी कुछ भूल जाएंगे तो अच्छी बातें कैसे याद रहेगी। किसी को लड़ाई-झगड़े, चुगली, दुश्मनी, वैमनस्यता आदि की बातें याद रहती हैं। किसी को वेद, शास्त्र, ग्रन्थ, भजन, आरती, मंत्र आदि याद रहते हैं। यह सब आपकी रुचि पर निर्भर करता है। जिस व्यक्ति की जिन बातों में रुचि होती है, वह उन्हें याद रखता है और जिन बातों में अरुचि होती है वह उन्हें भूल जाता है।

ज्ञान को जाग्रत करके अच्छे- बुरे का निर्णय जरूरी
उन्होंने आगे कहा कि जिनकी संसार में रुचि है, वह धर्म की चर्चा में बोर हो जाएगा। जिन्हें आत्मज्ञान जाग्रत हो गया है, वह संसार की बातों को नहीं सुनना चाहते। इसलिये ज्ञान को जाग्रत करके अच्छे बुरे का निर्णय जरूरी है। हम जो भी कर रहे हैं, वह मात्र यहीं तक सीमित नहीं हैं, ये सब भव- भव तक साथ जाएगा।

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