दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की चौदहवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…
शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल।
काम क्रोध व्यापै नहीं, कबूँ न ग्रासै काल।।
कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि जो शब्द (वाणी) गुरु के मार्गदर्शन में, गुरु की कृपा से, सत्य और प्रेम से भरे होते हैं, वे मनुष्य को मोक्ष और आनंद की ओर ले जाते हैं। ऐसी वाणी बोलने वाला व्यक्ति ईश्वर के सान्निध्य को प्राप्त करता है, और उसके भीतर कोई काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसी बुराइयाँ नहीं रहतीं। धर्म के मार्ग पर चलते हुए, उसका आत्मिक उत्थान होता है और वह काल (मृत्यु) के भय से मुक्त हो जाता है।
समाज में शांति, प्रेम और एकता तभी स्थापित हो सकती है, जब व्यक्ति अपनी वाणी पर संयम रखे और उसे सत्य, करुणा और प्रेम से परिपूर्ण बनाए। क्रोध और वासना जैसे विकार न केवल व्यक्ति को, बल्कि समाज को भी दूषित करते हैं। जो व्यक्ति सच्चे ज्ञान और गुरु की शिक्षा को अपने जीवन में उतार लेता है, वह समाज में सकारात्मक योगदान देता है।
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