समाचार

भगवान की वाणी आत्मा को सुकून देती है- मुनि अपूर्व सागरजी  श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन सभा स्थल में हुई धर्मसभा   


जब वसंत आता है तो प्रकृति मुस्कुराती है और जब संत आता है तो संस्कृति मुस्कुराती है। वसंत हमें चेतावनी देने आता है कि संसार में सबकुछ नश्वर है। जो तेरा है वो तेरे पास न रहने वाला है और न रहेगा। वन में हो वसंत, टाउन में हो संत और मन में हो भगवंत तो क्यों न हो भव का अंत।’ उक्त विचार दिगंबर जैनाचार्य वात्सल्य वारिधी संत शिरोमणि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के ज्येष्ठ एवं श्रेष्ठ शिष्य मुनि श्री अपूर्व सागर जी महाराज ने श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन सभा स्थल पर आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। पढि़ए रिपोर्ट…


धरियावद। ‘जब वसंत आता है तो प्रकृति मुस्कुराती है और जब संत आता है तो संस्कृति मुस्कुराती है। वसंत हमें चेतावनी देने आता है कि संसार में सबकुछ नश्वर है। जो तेरा है वो तेरे पास न रहने वाला है और न रहेगा। वन में हो वसंत, टाउन में हो संत और मन में हो भगवंत तो क्यों न हो भव का अंत।’ उक्त विचार दिगंबर जैनाचार्य वात्सल्य वारिधी संत शिरोमणि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के ज्येष्ठ एवं श्रेष्ठ शिष्य मुनि श्री अपूर्व सागर जी महाराज ने श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन सभा स्थल पर आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

मुनि श्री अपूर्व सागर जी महाराज ने कहा कि अष्ट कर्मों का नाश करने के लिए भक्त भगवान जिनेंद्र के समक्ष अष्ट द्रव्य चढ़ाते हैं। सम्यक दर्शन के आठ अंगों की प्राप्ति के लिए अष्ट द्रव्य चढ़ाते हैं। संसार की तड़पन से बचना है तो रोज प्रवचन सुनना चाहिए। क्योंकि भगवान की वाणी गंगा जल के समान है, यह आत्मा को सुकून देती है। इसलिए रोजाना गुरुओं के प्रवचन सुनने चाहिए। संघस्थ मुनि श्री अर्पित सागर जी महाराज का भी प्रतिदिन प्रवचन हो रहा है। संघस्थ ब्रह्मचारी नमन भैया ने बताया कि सोमवार को धरियावद के निजी शिक्षण संस्थान आइडियल्स विद्यालय के छात्र-छात्राओं ने नवीन शैक्षणिक सत्र के प्रथम दिवस पर युगल मुनिराज के दर्शन करके अध्ययन प्रारंभ किया।

मुनिश्री ने छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि जिस दिन संत महात्मा के दर्शन होते हैं। वह पुण्य का दिन होता है। ढ्ढष्ठश्व्ररुस् (आइडियल्स) का अर्थ होता है आदर्श। आदर्श यानी जिसमें संस्कार, सदाचार, नैतिकता, बौद्धिक विकास किया जाए। हमें अपने शिक्षकों का विनय और सम्मान करना चाहिए, क्योंकि वे हमें विद्या का दान देते हैं। हमेशा अच्छा और ऊंचा सोचें। शिक्षक का अर्थ बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि जो शिष्टाचार को जानता है, क्षमावान होता है और कर्तव्य निभाता है, वही शिक्षक होता है। हमें शिक्षा प्राप्त करके हनुमान जैसा भक्त और राम जैसा आदर्श पुरुष बनना है।

सभी को अपने जीवन में शाकाहार को अपनाना चाहिए। जैन गजट के अशोक कुमार जेतावत ने बताया कि प्रतिदिन संघ सान्निध्य में सुबह 6.30 से 6.30 बजे तक स्वाध्याय, 7.30 बजे से अभिषेक और नित्य नियम पूजन, 8.30 बजे से प्रवचन सभा, दोपहर में 1.30 से 4 बजे तक संघ स्वाध्याय, शाम 5 से 6 बजे प्रतिक्रमण, 6 से 7 बजे सामायिक, 7 से 7.30 बजे तक कक्षा शिक्षण, 7.30 बजे से आरती एवं गुरु भक्ति और रात 9 बजे से संघस्थ मुनिराज की वैयावृत्ति होती है। इसमें प्रतिदिन श्रावक-श्राविकाएं यथासमय उपस्थित होकर धर्म लाभ ले रहे हैं।

आप को यह कंटेंट कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
+1
1
+1
0
+1
0

About the author

Shreephal Jain News

Add Comment

Click here to post a comment

You cannot copy content of this page

× श्रीफल ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें