दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की 55वीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…
दिल का मरहम न मिला, जो मिला है सो गर्जी।
कह कबीर आसमान फटा, क्यों कर सीवे दर्जी॥
कबीरदास जी इस दोहे के माध्यम से मनुष्य के मानसिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक संघर्ष को व्यक्त कर रहे हैं। वे बताते हैं कि बाहरी साधन या उपाय कभी भी हृदय के घावों को नहीं भर सकते। जैसे आसमान फट जाए, तो कोई दर्जी उसे सिल नहीं सकता, वैसे ही यदि मनुष्य का मन दुखी, प्रेम, शांति और करुणा से रहित हो, तो बाहरी चीजें उसकी पीड़ा को समाप्त नहीं कर सकतीं।
कबीरदास जी का यह संदेश है कि जब मनुष्य को सच्चा प्रेम, अपनापन और आंतरिक शांति नहीं मिलती, तो वह मानसिक और भावनात्मक रूप से घायल रहता है। बाहरी दुनिया उसे कोई वास्तविक मरहम नहीं दे सकती, क्योंकि अधिकतर रिश्ते और सहयोग स्वार्थ पर आधारित होते हैं। वे प्रतीकात्मक रूप से यह कह रहे हैं कि यदि आसमान फट जाए, तो कोई भी दर्जी उसे सिल नहीं सकता, उसी तरह यदि मनुष्य के अंदर प्रेम, शांति और करुणा का अभाव हो, तो बाहरी उपाय उस घाव को भर नहीं सकते।
कबीरदास जी इस दोहे के माध्यम से यह सिखाना चाहते हैं कि व्यक्ति को अपनी आत्मा की ओर ध्यान देना चाहिए। उसे सच्चे प्रेम, दया और आत्मज्ञान को अपनाना चाहिए, बजाय इसके कि वह बाहरी साधनों पर निर्भर रहे। जब तक व्यक्ति भीतर से शांत और संतुष्ट नहीं होगा, तब तक बाहरी उपाय किसी काम के नहीं होंगे।
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