आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में शनिवार दोपहर को सभा हुई। इसमें मुनियों के प्रवचन हुए। सभा में बड़ी संख्या में जैन समाज के श्रद्धालु मौजूद रहे। गीगंला से पढ़िए यह खबर…
गीगंला। आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में शनिवार दोपहर को हुई सभा में मुनि श्री अर्पित सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि किसी भी प्राणी को सुख अथवा दु:ख की प्राप्ति स्वयं के पूर्वोपार्जित सुकर्मों और बुरे कर्मों का ही फल होता है। अन्य कोई अपना भला या बुरा नहीं करता। व्यवहार नय से कहा जाता और देखने में भी आता है कि फलां व्यक्ति ने फलां का नुकसान कर दिया। पर वास्तव में देखा जाए तो अपने किए कर्मों का ही प्रतिफल होता है। उन्होंने ख़ब कि कोई अपना कितना भी बुरा करे लेकिन, यह सोच कर समता धारण कर लेनी चाहिए कि इसका मैंने पूर्व जन्म में कुछ बुरा किया होगा तभी तो यह मेरा अहित कर रहा है वरना क्यों करता। इस तरह पूर्व जन्म के बैर भाव को भी टाला जा सकता है और आर्द्र-रौद्र परिणामों भावों से बचने से नये कर्म बांधने से भी बचा जा सकता है। तात्पर्य यही कोई अपने साथ कैसा भी व्यवहार करे अपने भावों को नहीं बिगड़ने देना चाहिए। पैसा कमाना ही महत्वपूर्ण नहीं है। पैसे कमाने के साथ-साथ देव,शास्त्र,गुरु की भक्ति करते हुए जीवदया, कमजोर असहाय गरीबों की मदद आदि अच्छे कार्य करके पुण्यार्जन करें। पुण्यशाली को हर सुख सुविधा अपने आप उपलब्ध हो जाती है।
संसार के सारे विषय भोग विष के समान
इसके बाद आचार्य श्री अपूर्व सागरजी महाराज ने अपनी मंगल देशना में बताया कि आप हम सभी पुण्यशाली हैं कि हमें तीर्थंकर भगवंतों की वाणी को श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। बालक मेले में जाता है ।तरह-तरह के खिलौने विभिन्न मनोरंजन के साधन देख-देख कर खुश होता है पर वह तभी तक खुश रह पाता है जब तक अपनी मां की ऊंगुली पकड़ रखी हो। जैसे ही मां की अंगुली छूटी की मेले में मनोरंजन के साधन होते हुए भी बच्चा रोने चीखने चिल्लाने लगता है। गुरुदेव ने कहा कि संसार के सारे विषय भोग विष के समान है। जिनेन्द्र भगवान द्वारा उपदेशित जिनवाणी मां का हाथ अवश्य थाम कर रखें। तभी यह संसार रूपी मेला अच्छा लगेगा।
वेदी प्रतिष्ठा पत्रिका का विमोचन किया जाएगा
मोबाइल का जमाना है। आप सभी मोबाइल वापरते हो, जब तक मोबाइल में बैलेंस होता है मोबाइल चलता है बैलेंस खतम मोबाइल का होना नहीं होना समान हो जाता है। बस ठीक ऐसे ही संसार में रहकर अपने पुण्य को बढ़ाते रहे। हमें यह सब कुछ सोचने समझने की बुद्धि मानव जीवन में ही संभव है। अपने को सामने वाले के अनुरूप बना लें शांति ही शांति का अनुभव होने लग जाएगा। अपने आत्म स्वभाव में लीन रहना स्वभाव है और विपरित परिणामों में रहना विभाव है, विभाव सदा दुख दायी है स्वभाव में रहना सदा सुखदायी है। गीगंला आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में 9 अप्रैल और 10 अप्रैल को नूतन वेदी प्रतिष्ठा पत्रिका का विमोचन किया जाएगा।
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