आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज, एक महान जैन आचार्य और दिव्य तत्वज्ञानी थे, जिन्होंने भारतीय समाज में अहिंसा, सत्य, और आत्मकल्याण के मार्ग को फैलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे विशेष रूप से अपनी अद्वितीय साधना, गहन ज्ञान और साध्वी-वचनबद्धता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका जीवन और कार्य एक प्रेरणा है जो लाखों अनुयायियों को धर्म और आत्मा की सही राह दिखाता है। पढ़िए स्वप्निल जैन का विशेष आलेख
इंदौर।एक आत्मदर्शन, आत्मचिंतन, और आत्मकल्याण का भाव धारण किए हुए साधक, जिनकी अप्रतिम मुस्कान ने न जाने कितने जीवों का कल्याण किया। और जिन्होंने समाधि धारण करके मृत्यु को भी पराजित कर दिया। हम धन्य हैं कि हमने आचार्य श्री विद्यासागर के युग में जन्म लिया।
आचार्य श्री जाते-जाते नश्वर देह का उपदेश देकर समस्त संसार को आत्मदर्शन करवा गए। जाना सभी को एक दिन है, परंतु एक वीतरागी होकर समाधि मरण द्वारा मृत्यु को महोत्सव बनाने का दर्शन ही असली भारतीय दर्शन है, जो आत्मा को मोक्ष मार्ग पर ले जाने का मार्ग भी दर्शाता है।
“जिंदगी समझ नहीं आई तो मेले में अकेला, समझ आ गई तो अकेले में मेला।”
आचार्य श्री के समाधि मरण के पश्चात यह बात समस्त संसार को समझ में आ गई। आपने एकांत रूपी आत्मदर्शन और मोक्ष मार्ग की यात्रा को सिद्धों के मेले के रूप में चुना। मोक्ष प्राप्ति हेतु सिद्ध शिला को चुना। भारत के दर्शन को जो उन्होंने समझाया, वह हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
आचार्य श्री विद्यासागर के युग में उनके द्वारा आध्यात्मिक चेतना के माध्यम से जो अलख जगी है, उससे अध्यात्म की राह पर चलने वाले लोग अछूते नहीं रह सकते। आचार्य श्री का आभामंडल इतना विशाल था कि उसके चुंबकीय प्रभाव में हर कोई खींचा चला जाता था। एक बार जो उन्हें देख लेता, वह देखता ही रह जाता था, जैसे अब मन के सारे सवालों के उत्तर मिल गए हों। यह आध्यात्मिक अनुभूति लाखों अनुयायियों ने महसूस की है। आचार्य श्री के समाधि के पश्चात वह आभामंडल अब उनके आशीर्वाद स्वरूप मौजूद है, और उनके अनुयायियों को धर्म की राह पर चलने के लिए सतत मार्गदर्शन प्रदान कर रहा है।
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