आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का प्रथम समाधि दिवस मनाया गया। इस अवसर पर श्रीजी की आरती, सिद्धचक्र महामंडल विधान की आरती की गई। इस अवसर पर उनके जीवन आदर्शों पर आधारित नाटक का मंचन किया गया। इसे देखकर श्रद्धालुजन भाव विह्वल हो गए। पढ़िए रामगंजमंडी से अभिषेक लुहाड़िया की खबर…
रामगंजमंडी। गुरुवार की संध्या बेला में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का प्रथम समाधि दिवस मनाया गया। इस अवसर पर श्रीजी की आरती, सिद्धचक्र महामंडल विधान की आरती के बाद आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की भक्ति भाव से मंगल आरती की गई। पंडित जयकुमार जैन निशांत ने आचार्यश्री के विषय में प्रकाश डाला। आचार्यश्री विद्यासागरजी पर आधारित नाटिका का मंचन किया गया। नाटिका के मंचन से पूर्व आचार्य श्री विद्यासागरजी के चित्र के समक्ष पंडित निशांत, संतोष जैन शास्त्री एवं समाज के प्रमुखजनों ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
यह कार्यक्रम पाठशाला की संचालिका कनकमाला जैन के निर्देशन में किया गया। इस आयोजन में भक्ति भाव प्रदर्शित करते हुए आचार्यश्री के प्रकल्पों को नाटकीय रूपांतरण के माध्यम से बताया। जिसमें आचार्यश्री के इंडिया नहीं भारत बोलो, गोशाला का निर्माण, बालिकाओं के शिक्षा के लिए प्रतिभा स्थली एवं मूक माटी, हथकरघा के बारें में दिखाया गया। उनके जन्म से लेकर दीक्षा तक के समय को भी इसमें दर्शाया गया।
मैं रुकूंगा नहीं मैं जाऊंगा’
‘इंडिया नहीं भारत बोलो यह पहचान है’ को प्रदर्शित कर गुरुवर को समर्पित किया गया। इसमें जब आचार्यश्री के अंतिम शब्द जो उनके द्वारा कहे गए थे ‘मैं रुकूंगा नहीं मैं जाऊंगा’ और उसके बाद जब गुरुदेव की अंतिम यात्रा का दृश्य चकडोल यात्रा के रूप में दिखाया गया तो मौजूद भक्त भावुक हो उठे और गुरुदेव को श्रद्धा से नमन किया। जब यह चकडोल यात्रा आ रही थी तब भजन चला ‘कहां मिलेंगे हमें गुरु के चरण दोबारा’ उसे सुन हर कोई भावुक हो उठा और सभी की पलके भीग र्गइं।
बच्चों और महिलाओं की प्रस्तुति सभी ने सराही
इन क्षणों में पूरा मंदिर प्रांगण स्तब्ध एवं भावुक हो उठा। छोटे-छोटे बच्चों एवं समाज की महिलाओं द्वारा दी गई प्रस्तुति को सभी ने सराहा। यह सच्चे अर्थों में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के प्रति सच्ची विनयांजलि थी। यह कार्यक्रम दिलीप कुमार, कमल कुमार, अरुण कुमार, संजय कुमार विनायका द्वारा हो रहे सिद्ध चक्र महामंडल विधान में हुआ। संचालन प्रशांत जैन आचार्य ने किया।
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