मुनिश्री सुधासागर जी महाराज ने सोमवार को अपनी धर्मसभा में जैन समुदाय के लोगों को प्रबोधन देते हुए जीवन, मृत्यु, कर्म और उसके फल आदि के प्रभावों के बारे में बताया। महाराज श्री ने सागर में विराजित होकर धर्म प्रभावना के माध्यम से गुरु भक्तों की जिज्ञासा का समाधान भी किया है। पढ़िए सागर से राजीव सिंघई की यह खबर…
सागर। सागर में विराजित मुनिश्री सुधासागर जी की धर्मसभा में गुरु भक्त धर्म प्रभावना का पुण्य लाभ ले रहे हैं। मुनिश्री अपने प्रवचनों में जैन धर्मावलंबियों को जीवन के रहस्यों से अवगत करवा रहे है। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि इस जीव के लिए कुछ ऐसा विचार करना है, जिस विचार में स्वयं का निर्णय लेना है। हमारी जिंदगी यदि संसार की नियति के अधीन कर देंगे तो संसार की नियति यह है कि संसार से कोई बाहर न निकल जाए क्योंकि, हर व्यक्ति अपनी पार्टी को मजबूत करता है।
मोक्ष है या नहीं यह सोचना है
संसार के दो भाग स्पष्ट रूप से हैं एक मोक्ष और एक संसार। मोक्ष की जहां तक बात होती है कि मोक्ष है या नहीं, यह प्रश्न हर व्यक्ति के मन में उठता है और इसी को लेकर के नास्तिक व्यक्ति के मन में कल्पना होती है। जब मोक्ष की कल्पना की बात जब आती है, तो इसमें सबसे बड़ा प्रमाण है कि जब आप लोग स्वयं किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाते हैं तो आप सोचते हैं कि हो सकता है। मेरा सोच गलत हो इसलिए चार लोगों की सलाह ले लेते हैं। हो सकता है मैं निर्णय करने में असमर्थ हूँ क्योंकि, मेरा अधिकार नहीं है। तीसरा यह है कि मैं अधिकृत नहीं हूं। निर्णय कैसे करूं? इसलिए मीटिंग बुलाते हैं।
बहुमत सिद्ध कीजिए
यदि स्वयं डाउटफुल रहता है कि पता नहीं मैं सही कर रहा हूं या नहीं, इसके लिए प्रकृति ने, समाज ने और कानून व्यवस्था बनाई कि यदि सामाजिक कार्यों में निर्णय करने में समर्थ या अधिकृत नहीं हो तो एक कमेटी की व्यवस्था बनाई कि आप कमेटी बुलाइए और बहुमत सिद्ध कीजिए। जब परिवार के संबंध में बात आए तो परिवार को बैठा लिजिए, परिवार की राय क्या है।
विश्वास हो कि मैं बिल्कुल सही हूं
जब स्वयं की जिंदगी के संबंध में बात आए तो आपको तीन व्यक्ति दिए जाते हैं। तुम अपनी जिंदगी में क्या स्वयं विश्वस्त हो, क्या तुम अपनी जिंदगी का निर्णय कर चुके हो, क्या तुम्हें यह विश्वास है कि मैं सही हूं। यदि आपको यह विश्वास हो कि मैं बिल्कुल सही हूं, मैं अपने निर्णय करने में समर्थ हूँ और मैंने अपनी जिंदगी का निर्णय कर लिया है और मुझे विश्वास है कि मैं अपनी जिंदगी का निर्णय कभी गलत नहीं कर सकता, यदि ऐसा आपके अंदर परिणाम आ रहा हो तो मैं तुम्हें सावधान करना चाहता हूं। तुम्हारी जिंदगी का विनाश निश्चित है।
सारी शक्तियां कर्मों ने कब्जे में ले ली
स्वयं का निर्णय व्यक्ति जब स्वयं करता है तो कभी हित का निर्णय कर ही नहीं सकता, उसका मूल कारण है कि तुम्हारी जिंदगी की सारी की सारी शक्तियां कर्मों ने अपने कब्जे में ले रखी है। स्वयं की जिंदगी का निर्णय वही व्यक्ति कर सकता है, जिसने कर्मों पर काबू पा लिया है, जो कर्म के अधीन नहीं है, कर्म उसके अनुसार चलता है।
बालक बनने में बहुत फायदा
पूज्य शिवकोटी महाराज ने भगवती आराधना में लिखा कि अविरत सम्यकदृष्टि सदा जन्म से मृत्यु तक बालक ही रहता है। बालक बनने में बहुत फायदा है। घोषणा करो कि मैं अपनी जिंदगी का कोई भी निर्णय नहीं करूंगा, तुम अकेले रह सकते हो क्या? पुण्य के उदय में हंसोगे तो नहीं, पाप के उदय में रोओगे तो नहीं। अपनी जिंदगी को अशुभता से बचाना है तो एक विचार मत आने देना-जो जिस समय जैसा होना है वैसा होगा, मैं क्या कर सकता हूं। जिस दिन तुम्हें यह भाव आ गया समझ लेना तुम्हारा विनाश होना निश्चित है क्योंकि, प्रकृति कहती है नीयत तो है कि तू संसार से बाहर मत जा।
भगवान भरोसे जिंदगी मत छोड़़ो
दूसरा भगवान पर भरोसा तो करना लेकिन, भगवान भरोसे जिंदगी मत छोड़ना। बड़ों के भरोसे अपनी जिंदगी मत छोड़ना क्योंकि, बड़ों के भरोसे छोड़ देने का अर्थ है कि हमने उनको दास बना लिया। ये अमंगल है, सदा बड़ों के कार्य करना ये मंगल है। मेरे काम भगवान नहीं करेगा। मैं भगवान के काम करूंगा, समझ लेना तुम्हारा विकास चालू हो गया। ये परिणाम आते ही तुम्हारी ऐसी शक्ति जाएगी कि मैं भगवान के लायक हूं। मैं इतना लायक हूं कि भगवान के काम कर सकता हूं। इसी को कहते हैं बिल पावर।
पहले मंदिर बनेगा और…
मैं पहले जिनेंद्र देव का मंदिर बनाऊंगा बाद में अपना मकान बनाऊंगा। जिसके अंदर ये बहुमान और लायकी आ गई। एक दिन वह मिट्टी के महलों में नहीं रहेगा, मोक्ष नहीं मिला तो स्वर्ग के विमान में जाएगा। भगवान का मंदिर एक मंजिला है तो हमारा घर दो मंजिला नहीं हो सकता, ये बहुमान था पहले। पहले मंदिर बनेगा बाद में घर बनेगा, जाओ तुम कभी जन्म-जन्म तक कभी दरिद्र नहीं होंगे क्योंकि, तुम भगवान के मंदिर बनने लायक हो।
जैनी कभी भगवान को अन्नदाता नहीं कहता
जैनी को लक्ष्मी पुत्र कहा, जैनी कभी भिखारी नहीं होता, एक ही कारण है जैनी कभी भगवान को अन्नदाता नहीं कहता क्योंकि, भगवान की रोटी खाना दरिद्रता को निमंत्रण देना है। हमारे गुरु अन्नदाता नहीं है बल्कि महाराज के लिए मैं रोटी खिलाता हूं।
भगवान कभी चिंता नहीं करते
भक्त 24 घंटे चिंता करता है भगवान की और भगवान कभी चिंता नहीं करते, इसका नाम है जैन धर्म। जब तक मेरा मंदिर नहीं बनेगा तब तक मैं इस वस्तु का त्याग करता हूं, दुनिया की चिंता करने वाले की चिंता तुम कर रहे हो, अक्षय पुण्य बंधता है। यह व्यक्ति ऐसा पुण्य कमाएगा कि सारी दुनिया के संकटों के बीच भी कोई इसका बाल बांका नहीं कर पाएगा। अनपवर्त आयु वाला होगा।
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