शब्दों का प्रयोग करने से पहले उसे मन के तराजू में तोल लेना चाहिए। यदि वह शब्द आपको अच्छे लगते हैं तभी वह दूसरों को प्रभावित कर पाएंगे, यदि आपको वह शब्द कड़वे लगते हैं तब वह शब्द दूसरों को भी उतने ही बुरे लगेंगे। ‘ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोये। औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।‘ संत कबीरदासजी का मत है कि यदि वाणी में शीतलता हो तब वह सुनने वाले को प्रभावित करती है यह न केवल स्वयं को सुख पहुंचाती है अपितु दूसरों को भी सुख प्रदान करती है। मुनिश्री प्रणम्य सागरजी महाराज की पुस्तक खोजो मत पाओ व अन्य ग्रंथों के माध्यम से श्रीफल जैन न्यूज Life Management निरंतरता लिए हुए है। पढ़िए इसके 35वें भाग में श्रीफल जैन न्यूज के रिपोर्टर संजय एम तराणेकर की विशेष रिपोर्ट….
पहले तोलो, फिर बोलो
भगवान् महावीर बचपन से ही हित-मित-प्रिय वचनों को बोलते थे। केवल सच बोलना ही पर्याप्त नहीं है किन्तु सच के साथ वचनों में प्रियता भी हो। प्रियता से भी बढ़कर शर्त यह है कि वह हितकर हो। जिन वचनों में प्राणी का हित नहीं है वह वचन सच होकर भी झूठ हैं। हित से तात्पर्य उस प्राणी की रक्षा से है।
एक बार एक शिकारी गाय के पीछे दौड़ रहा था। एक चौराहे से वह गाय गुजरी। वहीं एक साधु खड़ा था। साधु के पास थोड़ी देर में वह शिकारी आया। साधु को गाय के जाने की दिशा ज्ञात थी। उन्होंने तत्काल अपना मुख मोड़ लिया और दिशा बदल ली। शिकारी ने पूछा क्या इस दिशा में गाय को जाते देखा है ? साधु ने कहा जब से मैं इस ओर खड़ा हूँ तब से अभी तक यहाँ से कोई नहीं गुजरा है। साधु की बात सुनकर शिकारी लौट गया। गाय की जान बच गई। जीव रक्षा हेतु साधु के ये वचन छल नहीं किन्तु उनका विवेक है। भगवान् महावीर ने कहा कि –
ऐसा सत्य भी मत बोलो जो किसी को विपत्ति में डाल दे। अहिंसा की रक्षा के लिए ही वचन प्रयोग करना चाहिए।
इसी तरह एक शिकारी अपने हाथ में चिड़िया बन्द किये पूछता है कि बताओ मेरे हाथ में बंद चिड़िया मृत है या जीवित ? यदि आपने कहा कि जीवित है तो वह मारकर आपकी बात गलत सिद्ध कर देगा। ऐसी स्थिति में आपका कर्तव्य है कि आप कह दें कि वह चिड़िया मृत है, तो वह उसे उड़ा कर दिखा देगा, चिड़िया के प्राण बच जायेंगे। इसीलिए भगवान् महावीर ने कहा कि यत्न पूर्वक बोलो अर्थात् सोच समझकर बोलो। इसलिए कहा है कि-‘पहले तोलो फिर बोलो।‘
आज बोलने की प्रवृत्ति बहुत बढ़ गयी है। इसका मुख्य कारण मोबाइल जैसे उपकरणों का अति प्रयोग है। पहले जब फोन का प्रचलन प्रारम्भ हुआ था तो बात करने का बहुत पैसा लगता था। लोग पैसा खर्च होने के भय से सीमित और आवश्यक बात करते थे। आजकल प्राइवेट कंपनियों की प्रतिस्पर्धा में मोबाइल फोन पर बात करना बहुत सस्ता हो गया है। बच्चों से लेकर बड़ों तक यह प्रवृत्ति इतनी अधिक बढ़ गयी है कि घंटों तक दूर के संबंधियों से, मित्रों से, रिश्तेदारों से और परिजनों से लोग बातचीत करते रहते हैं। इस बातचीत से आदमी वाचाल हो जाता है। इसी कारण से अनचाहे सम्बन्ध बनते हैं और अपराधिक प्रवृत्तियाँ बढ़ती हैं। अनेक दुर्गुणों का प्रवेश इस मोबाइल फोन पर घण्टों बातचीत करने से हो रहा है। अधिक बोलने का एक आधुनिक दुष्परिणाम क्या हो सकता है। इस पर नजर डालें-‘आज जब युवक-युवती की शादी तय होती है तो मोबाइल की सस्ती दरें उनके बीच इतनी अधिक बात करने का जरिया बन जाती हैं कि वे एक दिन में चार-चार घंटे लुभावनी बातें करते हैं, शादी होने के बाद वो हकीकत साकार नहीं हो पाती। जैसी उन्होंने फोन पर घंटों डिसकस की थीं फलस्वरूप उनका वैवाहिक जीवन कलहपूर्ण बन जाता है।‘ विद्यार्थियों का दिमाग पढ़ने से डिस्टर्ब ऐसी ही बातचीत के कारण होता है। बोलना कम होगा तो विद्यार्थी को अपने कोर्स का पाठ याद रहेगा। जब अधिक बात करने से बहुत समय निःसार व्यतीत हो जाता है तो मस्तिष्क में स्मृति पर प्रभाव पड़ता है। विद्यार्थी के लिए स्मृति अप्रभावित होनी चाहिए। जो अपना विषय नहीं है उस विषयों में अधिक समय लगाने से मस्तिष्क में से मूल विषय विस्मृत हो जाता है। मस्तिष्क की कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
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