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Life Management-28 जीवन का प्रबंधन-यत्न पूर्वक चेष्टा करें : हितभुक्-हितकारी भोजन – भगवान महावीर की दृष्टि में


हितकारी आहार से आशय यह हैं कि कुछ भोजन ऐसे होते हैं जिनकी तासीर अथवा गुण आपस में मिलते है। इसका अर्थ यह हैं कि ये एक-दूसरे के अनुकूल होते है, जिन्हे हम हितकारी आहार कह सकते है। लगातार हितकारी आहार का सेवन करने से पाचन तंत्र के साथ-साथ शरीर के अन्य अंगों पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मुनिश्री प्रणम्य सागरजी महाराज की पुस्तक खोजो मत पाओ व अन्य ग्रंथों के माध्यम से श्रीफल जैन न्यूज Life Management निरंतरता लिए हुए है। पढ़िए इसके 28वें भाग में श्रीफल जैन न्यूज के रिपोर्टर संजय एम तराणेकर की विशेष रिपोर्ट….


हितभुक् – हितकारी भोजन:

भोजन शाकाहारी ही हो। मनुष्य का शरीर मांस भोजन के लिए प्रतिकूल है। मांसाहारी लोग जानवरों की बीमारी को अपने भीतर ग्रहण कर लेते हैं। फास्ट फूड और जंक फूड स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक हैं। जिन वस्तुओं को बने हुए कितना समय हुआ है, यह ज्ञात नहीं हो तो ऐसी वस्तुएं नहीं खाना चाहिए। बाजार के पैकेट बंद खाद्य पदार्थों में अब मांसाहार और जैविक उत्पादों का प्रवेश बहुतायत हो गया है। नशा देने वाले पदार्थ जैसे-तम्बाखू, सिगरेट, गुटखा स्वास्थ्य के लिए बहुत घातक हैं और कैंसर जैसी भयावह बीमारी के मुख्य कारण हैं। भगवान महावीर ने बताया कि वर्षा में 3 दिन, गर्मी में 5 दिन और शीत में 7 दिन बाद पिसा हुआ आटा, उससे बनी हुई वस्तुएँ और पिसे हुए मसालों में उसी रंग के, उसी गंध के जीवों की उत्पत्ति अपने आप हो जाती है। कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जिनका मुख की लार से संयोग होते ही जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। यह आम व्यक्ति भी प्रयोग करके समझ सकता है। दाल के बेसन से बने पदार्थों का दही, छाछ के साथ लार का संयोग होने से जीवों की उत्पत्ति हो जाती है, इसे ही द्विदल का दोष कहते हैं।

सबसे पहले तो अपवित्र आहार से बचें

अधिक नमक-मिर्च वाला, तला हुआ, भुना हुआ या अशुद्ध आहार जैसे-बाजारू, बासी भोजन, चाय, कॉफी, ब्रेड, फास्ट फूड आदि तामसी आहार से भी बचना चाहिए। यह देखा गया हैं कि मैदे से बनी वस्तुओं के कारण भी सांस की तकलीफ होने लगती है।

उपयोग से बचें 

अक्सर यह देखा गया हैं कि कई खाद्य पदार्थों के निर्माण व उनकी सुरक्षा हेतु रसायनों का उपयोग किया जाता है। जिसके कारण शरीर में व्याधियॉ उत्पन्न होती है। अतः सफेद चीनी, सफेद गुड़, वनस्पति घी, रिफाईंड तेल आदि से निर्मित भोजन तथा बाजार में मिलने वाले अधिकांशतः तैयार खाद्य पदार्थ जैसे-अचार, चटनियाँ, मुरब्बे, सॉस आदि का उपयोग स्वास्थ्यवर्धक नहीं है।

भोजन कब व कितना करें ?

सुबह की अपेक्षा शाम का भोजन हलका व कम मात्रा में करना चाहिए। रात में अन्न के पचन की क्रिया मंद होती है। अतः सोने से ढाई-तीन घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए। परंतु आजकल आमजन का सोने का समय ही लगभग रात्रि 11 बजे के बाद का हो गया है। बावजूद इसके सोने से कम-से-कम एक घंटा पूर्व तो भोजन ग्रहण कर ही लेना चाहिए। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अधिक भोजन की आवश्यकता नहीं होती अपितु जो भोजन खाया जाता है उसका पूर्ण पाचन अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।

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